Hindi Essay on “Bird Flu” , ”बर्ड फ्लू” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
बर्ड फ्लू
Bird Flu
एवियन इन्फ्लूएंजा को ‘बर्ड फ्लू’ भी कहते हैं। यह छूत की बीमारी है लेकिन मानव से सम्बन्धित नहीं है। इसका प्रभाव सबसे अधिक पक्षियों पर पड़ता है और उसके बाद कमोबेश पशुओं में भी प्रभाव डालता है। पशुओं में भी विशेष रूप से ‘सूअर’ इससे प्रभावित होते हैं। पक्षियों में भी महामारी के रूप में इसका प्रत्यक्ष अनुभव मुर्गियों में किया जा सकता है। घरेलू मुर्गी फार्मों में बर्ड फ्लू से दो तरह की विषाक्तता फैलती है- 1. निम्न और 2. उच्च। निम्न विषाक्तता मंे मुर्गियों के पंख बिखर जाते हैं यानी मुर्गियां देखने में वीभत्स लगने लगती हैं। साथ ही साथ एक और पहचान है कि मुर्गियां अंडे कम देने लगती हैं। उच्च विषाक्तता होने पर मुर्गियों को 48 घंटे तक बचाया जा सकता है या 48 घंटे तक उनकी जिन्दगी रह सकती है।
अगर बर्ड फ्लू मनुष्य को हो जाए तो प्रभावित मनुष्य में बुखार, खांसी, गले में खराश, मांसपेशियों में दर्द, न्यूमोनिया, सांस लेने में कष्ट तथा जीवन को संकट में डालने वाली अन्य जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। बर्ड फ्लू वायरस जनित रोग है। यह वायरस से फैलता है। ‘बर्ड फ्लू’ के लक्षण इसको फैलाने वाले वायरस पर निर्भर करते हैं। बर्ड फ्लू से प्रभावित पक्षियों की लार, नाक से निकलने वाला पानी तथा मुंह से निकलने वाले झाग में वायरस होता है। इन स्रावित द्रवों के सम्पर्क में आने पर अन्य पक्षियांे को भी बर्ड फ्लू हो जाता है। लेकिन बर्ड फ्लू एक पक्षी से दूसरे पक्षी में तो फैलता है लेकिन एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में फैलते इसे नहीं पाया गया है।
मुर्गियों और पक्षियों के लिए घातक रोग बर्ड फ्लू ने लगभग सारी दुनिया का चक्कर लगा लिया है और अब यह खत्म होता नजर नहीं आता। हाल ही में भारत में भी इसके कारण लाखों मुर्गियों को जान गंवानी पड़ी। अब सबसे बड़ा खतरा इंसानों के बीच इस रोग के फैलने का है। कुछ देशों में अब तक लगभग 200 आदमी बर्ड फ्लू से मर चुके हैं। कुछ समय पूर्व वियतनाम में अनेक लोग बर्ड फ्लू से प्रभावित हुए थे, और तब कहा गया था कि इसका घातक वायरस भ्5छ1 इस प्रकार रूप बदल रहा है कि यह आदमी से आदमी में फैल सकता है और अगर ऐसा हो गया तो दुनिया में तबाही मच जाएगी। न जाने कितने लोग इसके शिकार बनेंगे।
.भारत में इस बीमारी के फैलने के भी कारण हैं। बहुत से प्रवासी पक्षी भारत आते हैं। अतः यदि वे बर्ड फ्लू वायरस से प्रभावित हैं तो स्वाभाविक है कि यह बीमारी भारतीय पक्षियों में भी फैल जाएगी। जहां तक मनुष्यों में इस बीमारी के फैलने की बात है तो वायरस अपने रूप एवं कार्य बदलते रहते हैं। इसलिए अगर बर्ड फ्लू का वायरस एक ऐसे रूप में आ जाता है कि जिससे मनुष्य प्रभावित हो सकते हैं तो यह रोग फैल जाएगा, बहुत हद तक संभव है।
बर्ड फ्लू कब ऐसा रूप ले लेगा कि इंसान से इंसान मंे आसानी से फैलने लगे, कहना कठिन है। कौन जाने ऐसा हो चुका हो या होने ही वाला हो। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक एक्सपर्ट डविड नेबारो अपने अनुभव से कहते हैं कि बर्ड फ्लू वायरस सारी दुरिनया में फैल जाएगा। गत अक्टूबर में उन्होंने कहा था कि वायरस जल्द ही अफ्रीका में फैलेगा, क्योंकि वहां निगरानी नाम की कोई चीज नहीं है। वहां चूजों और इंसानों की मौतांे का हफ्तों पता नहीं चलेगा। गत फरवरी में उनकी बात सच हो गई। दरअसल हर संक्रमित पक्षी या व्यक्ति सूक्ष्म मात्रा में अलग-अलग प्रजातियों से ग्रस्त रहते हैं और हरेक की पहचान करने के लिए लंबे समय तक जेनेटिक परीक्षण करने होते हैं। इसलिए यदि महामारी का रूप धारण करने वाली कोई प्रजाति प्रकट भी होती है, तो उसे पहचानना बहुत मुश्किल होगा।
इंसानों को बर्ड फ्लू से बचाने के लिए लगातार निगरानी रखनी होगी। इंसान ने कई चुनौतियां झेली हैं और वह इस संकट से उबरने का भी माद्दा रखता है।
इस बीमारी को ठीक करने के लिए अभी तक दो दवाओं का प्रयोग किया जाता है। ये दवाएं है-1. ओसेल्टामाइविट- जिसको वाणिज्यिक भाषा में ‘टैमिफ्लू’ कहते हैं। 2. दूसरी दवा है जनामाइविर- जिसको वाणिज्यिक भाषा में ‘रेलेंजा’ कहते हैं। ये दवाएं इस बीमारी से प्रभावित मनुष्यों को ठीक करने में भी दी जाती हैं। यदि इन दवाओं को बीमारी की शुरूआत में ही दे दिया जाए तो ठीक होने की संभावना अधिक रहती है। भ्5छ1 वायरस इस वर्ग की दवाओं के प्रति बहुत ही संवेदनशील है। ये दवाएं वायरस की सतह पर पाए जाने वाले ‘न्यूरामिनिडेस’ नामक प्रोटीन को निष्क्रिय कर देती हैं, जिससे यह एक कोशिका से दूसरी कोशिका में नहीं जाने पाती हैं। ‘टेमिफ्लू’ स्वीडन की कंपनी रोश द्वारा, रेजेंसा अमेरिका की कम्पनी ग्लैक्सो स्मिथलाइन द्वारा बनाई जाती है। ये दवाएं भारत में उपलब्ध हैं।
इधर हाल ही में भारत के विभिन्न प्रदेशांे में छिटपुट बर्ड-फ्लू के मामले सामने आए। पक्षियों के सामान्य रोग भी संदेह से देखे जाने लगे। लेकिन महाराष्ट्र के जलगांव तथा नंदूरबार जिलों के कुछ क्षेत्रों में रोग भयावह रूप से फैला। इस कारण लाखों मुर्गियों को मारकर दफनाना पड़ा।