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Hindi Essay on “Bharat me Nari ka Sthan ” , ”भारत में नारी का स्थान” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

भारत में नारी का स्थान

Bharat me Nari ka Sthan 

भारत में भिन्न-भिन्न स्थानों तथा समयों पर नारी का मान व स्थान भिन्न-भिन्न रहा है। उसे बौद्धिक क्षेत्र में पुरुष से कम माना जाता था। मनु के मतानुसार उन्हें जीवन के किसी भी क्षेत्र में स्वतंत्रता नहीं मिलनी चाहिये। उन्हें बालकपन में अपने पिता के विवाहित जीवन में अपने पति के तथा विधवा होने पर अपने पुत्रों के कठोर नियन्त्रण में रहना चाहिये।

वैदिक युग में स्त्रियां धार्मिक तथा सामाजिक जीवन (क्रियाकलापों) में स्वच्छन्द रूप से भाग ले सकती थीं। दम्पती इकट्ठे मिलकर यज्ञ किया करते थे। पुत्री के जन्म से पुत्र का जन्म अधिक आनन्ददायक होता था। जिन विवाहित स्त्रियों के भाई नहीं होते थे उन्हें सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त था। स्त्रियां सामाजिक उत्सवों में सम्मिलित होती थीं और अपरिचितों के साथ मिल सकती थीं तथा वार्तालाप कर सकती थीं। दुल्हन का भव्य स्वागत होता था। वह घर की शासिका होती थी। स्त्रियां वैदिक मन्त्रों का उच्चारण कर सकती थीं। एक विधवा स्त्री अपनी इच्छा के अनुकूल अपने देवर के साथ पुनर्विवाह कर सकती थी। समाज महिलाओं का सम्मान करता था। नैतिक नियमों का उल्लंघन करने वाली स्त्री के साथ भी नम्रता और भद्रता का व्यवहार होता था। सारे घरेलू विषयों में वह अपने पति की सहायक व संगिनी होती थी। समाज उनके प्रति सहनशील था। एक कुमारी लड़की से समुत्पन्न पुत्र को भी समाज अपनाता था। पुत्र को मुक्तिदायक माना जाता था परन्तु स्त्रियों के योगदान के बिना सारे धार्मिक कृत्य अधूरे समझे जाते थे।

कुछ समय के उपरान्त धार्मिक क्षेत्र में स्त्रियों का सम्मान घट गया। पुत्री के जन्म को हेय दृष्टि से देखा जाने लगा। सामाजिक नियमों तथा रीतियों के अनुसार उसे अल्पबुद्धि समझा गया। भाग्यहीन लड़की को एक घुसपैठिया जैसा समझा गया। कई कबीलों में तो कन्याओं को पैदा होते ही मार दिया जाता था। घरेलू देख-रेख तक ही उसे सीमित रखा जाता था। गम्भीर विषयों में उन पर विश्वास नहीं किया जाता था। खर्च करने के लिए उसे अनुमति नहीं थी। शुद्ध चरित्रा तथा पतिव्रता सीता को भी उनके पति राम ने निष्कासित कर दिया था। गुप्त काल में स्त्रियों को काफी स्वतन्त्रता थी। वे दर्शनों का अध्ययन कर सकती थीं। पर्दा तथा सती प्रथा भी नहीं थी। विधवाओं को पुनर्विवाह का अधिकार नहीं था। विधवाओं की यह पहचान होती थी कि उनके बाल मुण्डे/कटे हुए होते थे।

राजपूत स्त्रियां सर्वाधिक सराहना तथा दया की पात्र हैं। बेचारी राजपूत स्त्रियां सदैव मृत्यु के मुख में रहती थीं। जब कभी भी उनके सम्मान को ठेस/आंच आने का भय होता था, वे जौहर दिखाती थीं तथा अग्नि में प्रविष्ट होकर अपनी जीवन-लीला को समाप्त कर देती थीं। मुस्लिम युग में स्त्री-शिक्षा की अवहेलना हुई। मुसलमानों के घरों में हिन्दू स्त्रियों को सेविका के रूप में कार्य करना पड़ता था।

स्त्रियां प्रायः पीड़ित तथा नियन्त्रित रहती थीं। दुःखदायक तथा अवहेलना पूर्ण व्यवहार से संतप्त होकर वे आत्महत्या कर बैठती थीं या घर छोड़कर निकल जाती थीं। उनके साथ दुर्व्यवहार होता था तथा उन्हें बन्दी के रूप में रखा जाता था। जीवन पर्यन्त वे अपने पति के घर को अपना घर नहीं समझ पाती थीं। घर के प्रबन्ध में उसकी कोई सलाह नहीं ली जाती थी। वह बिना रुचि के ही कार्य करती रहती थी।

आधुनिक युग में स्त्री का पद ऊंचा हुआ है। अब वह केवल बावर्ची (खाना पकाने वाली सेविका) नहीं है, बल्कि गृहस्वामिनी भी है। उसे शिक्षा ग्रहण करने का, मत देने का तथा बोलने का अधिकार है। वह अपरिचितों से बातें कर सकती है। वह सभाओं में बोल सकती है। वह निर्वाचन में भाग ले सकती है। अब वह बन्दी नहीं है। वह स्वच्छन्द विचरण कर सकती है। बिना पर्दे वाली स्त्री की अब आलोचना नहीं होती है। यह मनुष्य की सहकर्मी तथा समान है। घर में उसका प्रभाव होता है तथा उसकी सलाह ली जाती है। उसे अच्छा सलाहकार माना जाता है। वह केवल मनुष्य की पाश्विक इच्छाओं की पूर्ति का साधन नहीं है; वह गृहलक्ष्मी है। समाज में लड़कों तथा लड़कियों को समान स्थान प्राप्त है। वह एक-जैसी वेशभूषा पहन सकते हैं। स्त्रियां अपनी उदर पूर्ति के लिए अपने पति पर निर्भर नहीं हैं। वे नौकरियां कर सकती हैं, तथा अपने पति की आय को बढ़ा सकती हैं। एक स्वतः जीविकोपार्जन करने वाली स्त्री को घर तथा समाज में अधिक सम्मान प्राप्त है।

स्त्रियों की आवश्यकताओं तथा रुचियों की अवहेलना नहीं की जाती है। वे सिनेमा देख सकती हैं, बारातों में जा सकती हैं तथा मृतक की शव-यात्रा में भी शामिल हो सकती हैं। उन पर से सारे प्रतिबन्ध हटा दिये गये हैं। सती प्रथा तथा दहेज प्रथा जैसी कुरीतियां भी समाप्त कर दी गई हैं। एक विधवा की परछाई को अब घृणा की दृष्टि से नहीं देखा जाता है। वह जीवनपर्यन्त दुःखी तथा भूखी रहने की बजाय पुनर्विवाह कर सकती है। स्त्रियां समाज की रीढ़ की हड्डियां हैं। सारे घरेलू व्यापार उसी की इच्छा के अनुकूल चलते हैं।

वे सर्वोत्तम शिक्षा तथा प्रशिक्षण प्राप्त कर सकती हैं। वे मनुष्य की प्रतियोगी हैं। उन्हें सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त है। वे अपनी ससुराल को अपना घर मानती हैं तथा हर सम्भव रूप में पुरुषों के साथ सहयोग देती हैं। वह बुद्धिमती हैं। पृथ्वी की खनिजों से अधिक सोना स्त्री के मस्तिष्क से उत्पन्न हो सकता है।

सरकार ने महिलाओं के कल्याण के लिए कई आयोग तथा कमेटियां स्थापित की हैं। आयोग, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक तथा शिक्षा के क्षेत्र से सम्बन्धित कार्यप्रणाली पर मार्गदर्शन देते हैं। कमेटियां सुनिश्चित करती हैं कि महिलाओं के साथ होने वाला भेद-भाव मिटाया जाए। कुछ इस प्रकार की योजनाए बनाई जा रही हैं जिनके माध्यम से छोटे पैमाने पर उनके लिए आमदनी के स्रोत सृजित हो सकें। बीमा योजनाएं, बचत योजनाएं तथा ऋण योजनाएं भी उनके लिए लागू की जा रही हैं। थोड़े समय पहले महाराष्ट्र की सरकार ने महिलाओं के लिए विभिन्न विभागों में 30% नौकरियां आरक्षित करने का निर्णय लिया है। उन्हें दिए गा मानव अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई नियम और अधिनियम बनाए गए हैं। केन्द्रीर समाज कल्याण बोर्ड तथा जिला कल्याण बोर्ड और दूसरे विभाग भी उनके उत्थान के लिए जागरूक हैं। ‘प्रधानमंत्री रोजगार योजना’ भी उनके लिए हितकर सिद्ध होगी।

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