Hindi Essay on “Bharat ki vartman Shiksha Niti” , ”भारत की वर्तमान शिक्षा नीति” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
भारत की वर्तमान शिक्षा नीति
Bharat ki vartman Shiksha Niti
निबंध नंबर : 01
शिक्षा किसी राश्ट्र अथवा समाज की प्रगति का मापदंड है। जो राष्ट्र शिक्षा को जितना अधिक प्रोत्साहन देता है वह उतना ही विकसित होता है। किसी भी राष्ट्र की शिक्षा नीति इस पर निर्भर करती है कि वह राष्ट्र अपने नागरिकों में किस प्रकार की मानसिक अथवा बौद्धिक जागृति लाना चाहता है। इसी नीति के अनुसार वह अनेक सुधारों और योजनाओं को कार्यान्वित करने का प्रयास करता है जिससे भावी पीढ़ी को लक्ष्य के अनुसार मानसिक एंव बौद्धिक रूप से तैयार किया जा सके।
स्वतंत्रता के पश्चात देश में कई आयोग व सीमितियों का गठन हुआ है। सभी को बुनियादी शिक्षा के प्रारंभिक लक्ष्य में आशातीत सफलता मिली है। स्वतंत्रता पूर्व की शिक्षा पद्धति ममें परिवर्तन लाते हुए प्राथमिक शिक्षा को चौथी से पांचवीं तक किया गया। सन 1964, 1966, 1968 तथा 1975 ई. में शिक्षा संबंधी आयोगों का गठन हुआ। 10+2+3 की शिक्षा पद्धति को सन 1986 ई. में लागू किया गया। इसे देश के अनेक राज्यों में लागू किया गया। इसे ही नई शिक्षा नीति की संज्ञा दी गई। इसमें पूर्वकालीन शिक्षा संबंधी अनेक विषमताओं व त्रुटियों को दूर करने का प्रयास किया गया। इसकी प्रमुख विशेषतांए इस प्रकार हैं।
- एकरूपता : नई शिक्षा नीति के माध्यम से पूरे देश के विद्यालयों में 10+2 के प्रारूप पर तथा सभी महाविद्यालयों में एक समान तीनवर्षीय उपाधि पाठयक्रम लागू किया गया। देश के सभी शिक्षण संस्थाओं में एक समान पाठयक्रम लागू होने से छात्रों को सुविधा होती है।
- बुनियादी स्तर में परिवर्तन : नई शिक्षा नीति में बुनियादी स्तर पर ठोस उपाय किए गए हैं। उसके तहत प्रत्येक गांव में अनिवार्य रूप से विद्यालय खोलने का प्रस्ताव है तथा सभी वर्ग के लोगों को कम से कम बुनियादी शिक्षा देने का प्रावधान है। इसमें पिछड़े वर्ग के लोगों को विशेष सुविधा दी गई है तथा साथ ही साथ प्रौढ़ शिक्षा पर भी विशेष बल दिया गया है। प्रौढ़ों को शिक्षित करने के उद्देश्य से देशभर में विभिन्न स्थानों पर अनौपचारिक शिक्षा के तहत आंगनबाड़ी केंद्र खोले गए हैं। हालांकि ऐसे केंद्रों की संख्या अभी भी काफी कम है।
- जीवन शिक्षा की एकरूपता : इस शिक्षा नीति को जीवन के अनुरूप प्रायोगिक बनाया गया है। इसमें शिक्षा के विकास हेतु विभिन्न संसाधनों, सरकारी, अर्धसरकारी तथा नीजी सहायता स्त्रोतों की उपलब्धि को सुलभ बनाया गया है।
- आधुनिक संसाधनों पर विशेष बल : नई शिक्षा नीति में आधुनिक संसाधनों जैसे आकाशवाणी, दूरदर्शन व कंप्यूटर आदि के प्रयोग पर विशेष बल दिया गया है। इन संसाधनों के प्रयोग को और भी अधिक व्यापक बनाने हेतु प्रयास जारी है।
- केंद्रीय विद्यालयों को प्रोत्साहन : नई शिक्षा नीति में देश के प्रत्येक जिले में कम से कम केंद्रीय विद्यालय खोलने का प्रस्ताव है। समस्त केंद्रीय विद्यालयों को समान सुविधांए उपलब्ध कराई जा रही हैं।
- प्रतिभाशाली विद्यार्थियों की खोज : इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जिला स्तर पर नवोदय विद्यालयों को स्थापित किया गया है जिनमें विशेष स्तर की शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था है। यहां सभी विद्यार्थियों को आवासीय सुविधा उपलब्ध कराई गई है।
- परीक्षा पद्धति में सुधार : नई शिक्षा नीति में परीक्षा पद्धति में विशेष परिवर्तन किया गया है। इसमें छात्र के व्यावहारिक अनुभव व ज्ञान को विशेष आधार बनाया गया है।
इस प्रकार यदि हम देश की नई शिक्षा पद्धति का मूल्यांकन करें तो हम देखते हैं कि इसका आधार प्रयोगिक तथा व्यावहारिक है। यह पूर्वकालीन अनेक अटकलों का खंडन करती है। नई शिक्षा नीति राष्ट्र को विकास की ओर ले जाने में विशेष भूमिका अदा कर रही है।
निबंध नंबर : 02
शिक्षा नीति – कितनी सार्थक
Shiksha Niti – Kitni Sarthak
प्रस्तावना-शिक्षा हमारे ज्ञान अनुभूति और संवेदनशीलता को विकसित करती है। यह हमारे शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक विकास का सर्वप्रथम साधन है। किसी भी राष्ट्र का भविष्य उसके शैक्षिक स्तर, उसके शिक्षा प्रतिमानों, शिक्षा प्रणाली, राष्ट्र जीवन की आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा के विभिन्न पक्षों, आयागों और उसके अपेक्षित क्रियान्वयन एवं परिणामों पर आधारित है। शिक्षा के आधार पर ही अनुसन्धान और विकास को बल मिलता है। इस प्रकार शिक्षा वर्तमान तथा भविष्य के निर्माण का अनुपम साधन है। शिक्षा के बगैर नर अर्थात मनुष्य के निर्माण का अनुपम साधन है। शिक्षा के बगैर नर अर्थात मनुष्य को पशु के समान कहा गया है। देश की आजादी के बाद देश के प्रत्येक अर्थात् मनुष्य को पशु के समान कहा गया है। देश की आजादी के बाद देश के प्रत्येक नागरिक को साक्षर बनाने का अभियान चलाया गया। उसमें नई शिक्षा नीतियों को जोड़ा गया है।
नई शिक्षा नीति की आवश्यकता- लार्ड मैकाले ने हमारे देश के लिए एक ऐसी शिक्षा नीति प्रस्तुत की थी जिसका उद्देश्य अधिक से अधिक ऐसे क्लर्क तैयार करना था, जो कम वेतन लेकर प्रशासनिक कार्य कर सकें। वह शिक्षा प्रणाली पश्चिमी ढंग पर तैयार की गई थी जिसमें अंग्रेजी भाषा और संस्कृति पर आधारित शिक्षा दी जाती थी। उस शिक्षा के बीच भारतीय संस्कृति और नैतिक मूल्यों से दूरी रखी गयी थी।
परिणामतः देश की अनेक पीढ़ियां उस शिक्षा प्रणाली के अन्तगर्त शिक्षा प्राप्त कर अपनी संस्कृति एवं जीवन मूल्यों से दूर चली गई। उस शिक्षा पद्धति से निकले लोग अंग्रेजी शासन की शक्ति प्रदान करने के साध नही बन सके। यही कारण है कि हमारे देश भारत को शिक्षा की एक नई प्रणाली की आवश्यकता महसूस हुई और उसके निर्माण के लिए एक नई शिक्षा नीति को शामिल करते हुए, कुछ नए सुधार ऐसे किये गये जो भारत की सभ्यता व संस्कृति के अनुकूल हो।
राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था- नवीन राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था के अनुसार पूरे देश में एक प्रकार की शैक्षिक संरचना के अन्तर्गत 10$2$3 प्रणाली के रूप में स्वीकार किया गया। इस प्रणाली को केन्द्रीय शिक्षा बोर्ड तथा इसी प्रकार की अन्य संस्थानों के परामर्श स्वीकार किया गया था, यह नीति देश में विद्यार्थियों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति करती है।
इस प्रणाली के अनुसार एवं विद्यार्थी चैदह वर्ष के स्थान पर पन्द्रह वर्षो में स्नातक हो सकेगा। इसमें शिक्षा के व्यावसायिक शिक्षा पर बल दिया गया और जो विद्यार्थी अच्छे परिणाम लाने में असमर्थ हैं वे आगे का अपना अध्ययन रोक कर स्वयं अपने छोटे-छोटे उद्योग या व्यवसाय प्रारम्भ कर सकते हैं। इस दिशा का प्रयास सफल रहा। शिक्षित नौजवानों के सामने इससे रोजगार का रास्ता खुला।
विभिन्न स्तरों पर शिक्षा का पुनगंठन
नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत पाठ्यक्रम का विभिन्न स्तरों पर पुनर्गठन किया गया जो इस प्रकार है-
(1) प्रारम्भिक शिक्षा- प्रारम्भिक शिक्षा की पहली आवश्यकता यह है कि बच्चों को सजह और स्वभाविक ढंग से शिक्षा प्रदान की जाये। यदि कोई बच्चा पढ़ाई में कमजोर है तो उसे अलग से ज्ञान दिया जाये। जैसे-जैसे बच्चे की अवस्था में वृद्धि हो, उसे प्रारम्भिक स्तर के लिए अपेक्षित ज्ञान की बातें बताई जायें, नई जानकारी प्रदान की जाये जिससे अभ्यास के साथ-साथ उसकी बौद्धिक योग्यता भी बढ़े। नई शिक्षा पद्धति के अन्तर्गत शारीरिक दण्ड पूरी तरह समाप्त कर दिया जाये।
स्कूल का समय और यहां तक कि छुटिटयां भी बच्चों के सुविधानुसार तय की जानी चाहिये। इससे बच्चों का समग्र विकास अर्थात् सभी तरह का शारीरिक और बौद्धिक विकास होगा।
माध्यमिक शिक्षा- यह वह शिक्षा है जिसमें छात्रों को विज्ञान, कम्पयूटर और अन्य प्रकार के विषयों की जानकारी प्रदान की जानी चाहिये। माध्यमिक स्तर के छात्रों को राष्ट्रीय परिवेश और इतिहास की भी जानकारी प्रदान की जानी चाहिये। माध्यमिक स्तर के छात्रों को राष्ट्रीय परिवेश और इतिहास की भी जानकारी होनी चाहिये। उन्हें संवैधानिक कर्तव्यों और नागरिक अधिकारों का समुचित ज्ञान प्रदान किया जाना चाहिये।
नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत स्तर के स्कूलों को उन क्षेत्रों में खोला जायेगा, जहां ऐसे स्कूलों का अभाव है। उस पद्धति को अपनाकर शिक्षा का प्रचार और प्रसार बढ़ेगा।
उच्च शिक्षा- शिक्षा लोगों को सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, नैतिक और आध्यात्मिक समस्याओं के सम्बन्ध में चिन्तन करने का अवसर प्रदान करती है।
वर्तमान समय में भारत में अनेक काॅलेज एंव विश्वविघालय सम्बद्ध काॅलेज के साथ-साथ स्वायत काॅलेजों को भी विकसित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त उच्च शिक्षा परिषदों के माध्यम से उच्च शिक्षा के राज्यस्तरीय आयोजन और समन्वय के साथ-साथ शैक्षिक स्तरों पर निगरानी रखने के लिए विश्वविघायल अनुदान आयोग और अन्य परिषदें समन्वय पद्धतियां विकसित करेगी।
भारतीय विद्या, मानविकी और सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधानकर्ताओं को प्रर्याप्त सहायता दी जायेगी। इसके अतिरिक्त भारत के प्राचीन ज्ञान भण्डार को खोलने और इसे समकालीन वास्तविकता से जोड़ने के प्रयास भी किये जाएंगे। ऐसी शिक्षा के द्वारा विद्यार्थियों को क्लक्र्स नौकरियों को ध्येय से हटाकर विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भी आगे बढ़ने का पूरा अवसर मिलने के अवसर रहेगें।
खुला विश्वविद्यालय- नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत खुला विश्वविद्यालय प्रणाली शुरू की गई, जिससे उन लोगों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अधिक से अधिक अवसर मिल सकें, जो अपने निजी कारणों एवं समस्याओं से औपचारिक शिक्षा पूर्ण नहीं कर सके। इस प्रकार शिक्षा को लोकतांत्रिक साधनों से सम्पन्न बनाने के प्रयास भी किये गये हैं। खुला विश्वविद्यालय के द्वारा नौकरियों में आ चुके, पर उच्च शिक्षा का ध्येय पूरा कर आगे प्रगति करने वालों के लिए भी अच्छे अवसर प्राप्त हैं।
डिग्रियां नौकरी से अलग- कुछ चुने हुए क्षेत्रों में डिग्रियों को नौकरियों से अलग करने की व्यवस्था की गयी है। इसमें डिग्री के महत्व को कम किये जाने ही योजना लागू है जिनके लिए विश्वविद्यालय को डिग्री अपेक्षित योग्यता के रूप मंे आवश्यक नहीं। योग्यता, परीक्षण के आधार पर आंकी जायेगी।
डिग्रियों की आवश्यकता को कम करने के लिए राष्ट्रीय परीक्षण सेवा जैसी उपयुक्त व्यवस्था कुछ चरणों में लागू की जायेगी। इस प्रकार नौकरियां, डिग्री के आधार पर नहीं, वरन् राष्ट्रीय परीक्षण के आधार पर प्रदान की जा सकेगी। उससे वे लोग लाभान्वित हो। सैकड़ों जो अच्छी बौद्धिक क्षमता के होते हुए उच्च डिग्री नहीं प्रान्त कर सके हैं।
ग्रामीण विश्वविद्यालय- नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत ग्रामीण विश्वविद्यालयों को विकसित किया जायेगा, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में भी नई चुनौतियो का सामना किया जा सकें। ग्रामीण क्षेत्रों से भी प्रतिभाआंे को आगे बढ़ने, उच्च शिक्षा प्राप्त करने और प्रतियोगिता परीक्षाओं में शामिल होकर अच्छी नौकरियां पाने का अवसर मिल सकेगा।
उपसंहार- देश की नवीन पद्धति मंे असीम सम्भावनाएं हैं, लेकिन यह पद्धित अच्छी व्यवस्था, साधन सम्पन्नता और लगन के साथ सफलता की सीढ़ियां चढ़ सकती है। इसके लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक स्तर पर शिक्षक अपनी पूर्ण योग्यता से छात्रों को ज्ञान प्रदान करें और छात्र पूरे मन से एकाग्रचित होकर शिक्षा ग्रहण करें। तभी हमारे देश में शिक्षा की प्रगति हो सकती है। पारदर्शिता और ईमानदारी भी आवश्यक है। जैसा कि माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक परीक्षाओं के ग्रामीण इलाकों के परीक्षा केन्द्रों में अक्सर देखा गया है कि परीक्षा केन्द्रों के व्यवस्थापक थोक में नकल कराने का ठेका लेकर विद्यार्थियों को नकल कराकर परीक्षा पास कराने के गारण्टी लेते हैं। ऐसा ही मामला खुला विश्वविद्यालय, ग्रामीण विश्वविद्यालयों में होेने लगे तो नई शिक्षा नीति की ये योजनाएं धराशयी हो जायेगी। बावजूद उसके शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्ति के लिए नई शिक्षा नीति की यह योजनाएं सही ही है। इसके द्वारा सबको साकर बनाने की सरकार की योजना अवश्य ही सफल होती नजर आ रही है।