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Hindi Essay on “Atamnirbharta” , ”आत्मनिर्भरता” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

आत्मनिर्भरता

Atamnirbharta

Best 4 Hindi Essay on ” Atmanirbharta”

निबंध नंबर :01 

स्वावलम्बन अथवा आत्मनिर्भरता दोनों का वास्तविक अर्थ एक ही है – अपने सहारे रहना अर्थात अपने आप पर निर्भर रहना | ये दोनों शब्द स्वय परिश्रम करके, सब प्रकार के दुःख –कष्ट श कर भी अपने पैरो पर खड़े रहने की शिक्षा और प्रेरणा देने वाले शब्द है | यह हमारी विजय का प्रथम सोपान है | इस पर चढकर हम गन्तव्य-पथ पर पहुँच पाते है | इसके द्वारा ही हम सृष्टि के कण-कण को वश में कर लेते है | गांधी जी ने कहा है कि व्ही व्यक्ति सबसे अधिक दुःखी है जो दुसरो पर निर्भर रहता है | मनुस्मृति में कहा गया है – जो व्यक्ति बैठा है उसका भाग्य भी बैठा है और जो व्यक्ति सोता है , उसका भाग्य भी सो जाता है, परन्तु जो व्यक्ति अपना कार्य स्वय करता है, केवल उसी का भाग्य उसके हाथ में होता है | अत : सांसारिक दुखो से मुक्ति पाने की रामबाण दवा है – स्वावलम्बन |

स्वावलम्बी या आत्मनिर्भर व्यकित ही सही अर्थो में जान पाता है कि संसार में दुःख पीड़ा क्या होते है तथा सुख- सुविधा का क्या मूल्य एव महत्त्व हुआ करता है | वह ही समझ सकता है कि मान अपमान किसे कहते है ? अपमान की पीड़ा क्या होती है ? परावलम्बी व्यक्ति को तो हमेशा मान-अपमान की चिन्ता त्याग कर , व्यक्ति होते हुए भी व्यक्तित्वहीन बनकर जीवन गुजार देना पड़ता है | एक स्वतंत्र व स्वावलम्बी व्यक्ति ही मुक्तभाव से सोच-विचार कर के उचित कदम उठा सकता है | उसके द्वारा किए गे परिश्रम से बहने वाले पसीने की प्रत्येक बूंद मोती के समान बहुमूल्य होती है | स्वावलम्बन हमारी जीवन – नौका की पतवार है | यह ही हमारा पथ – प्रदर्शन है | इस कारण से मानव – जीवन में इसकी अत्यन्त महत्ता है |

विश्व के इतिहास में अनेको ऐसे उदाहरण भरे पड़े है जिन्होंने स्वावलम्बन से ही जीवन की ऊचइयो को छुआ था | अब्राहम लिंकन स्वावलम्बन से ही अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे | मैकड़ानल एक श्रमिक से इंग्लैण्ड के प्रधानमत्री बने थे | फोर्ड इसी के बल पर विश्व के सबसे धनी व्यक्ति बने थे | भारतीय इतिहास में भी शंकराचार्य , ईश्वरचन्द्र विद्दासागर, स्वामी रामतीर्थ , राष्ट्रपति गांधी जी , एकलव्य लाल भुदुर शास्त्री आदि महापुरुषों के स्वावलम्बन शक्ति के उदाहरण भरे पड़े है |

अनुचित लाड़-प्यार , मायामोह , आलस्य , भाग्यवाद, अन्धविश्वास आदि स्वावलम्बन में बाधाएँ उत्पन्न करते है | इनके अतिरिक्त बच्चो को हतोत्साहित करना या उन पर अंकुश लगाना भी उनके विकास में बाधा उत्पन्न करते है | वास्तव में ये सभी स्वावलम्बन के शत्रु है | अत: इनसे दूर रहना ही हितकर है | स्वावलम्बन की महिमा अपरम्पार है | परिश्रमी को सदा ही सुखद फल की प्राप्ति हई है |

आज का व्यक्ति अधिक – से-अधिक धन तथा सुख प्राप्त करना तो चाहता है पर वह दुसरो को लुट – खसोट कर प्राप्त करना चाहता है अपने परिश्रम और स्वय पर विश्वास व निष्ठा रखकर नही | इसीलिए वह स्वतंत्र होकर भी परतंत्र और दुखी है | इस स्थिति से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है और वह है स्वावलम्बी एव आत्मनिर्भर बनना |  

निबंध नंबर :02

स्वावलम्बन (आत्मनिर्भरता)

Swavlamban – Atamnirbharta

प्रस्तावना- स्वावलम्बन अथवा आत्मनिर्भरता दोनों का ही अर्थ है- हमें अपने सहारे रहने अर्थात् स्वयं पर निर्भर रहना। ये दोनों ही शब्द हमें स्वयं परिश्रम करने, सभी प्रकार के दुःख एवं कष्टों को सहकर भी अपने पैरों पर खड़े रहने की शिक्षा और प्रेरणा देते हैं। यह हमारी जीत की प्रथम सीढ़ी है। इस पर चढ़कर ही हम ऊंचाई पर पहुंच पाते हैं। इसे अपनाकर सृष्टि के कण-कण को वश में किया जा सकता है।

स्वावलम्बन की विशेषता-गाँधी जी के अनुसार-‘जो व्यक्ति आत्मनिर्भर न होकर दूसरों पर निर्भर रहता है, वह सबसे अधिक दुःखी व्यक्ति होता है।

स्वावलम्बी या आत्मनिर्भर व्यक्ति ही सही अर्थों में जान पाता है कि संसार मे दुःख-दर्द क्या है, मान-सम्मान किसे कहते हैं, अपमान की पीड़ा क्या होती है, सुख-सुविधा का क्या मूल्य एवं महत्व होता है?

एक स्वतन्त्र व स्वावलम्बी व्यक्ति ही मुक्त भाव से सोच-विचार करके उचित कदम उठाता है। स्वावलम्बी मानव ही जीवन रूपी नौका की पतवार है। यह ही हमारा प्रदर्शक है।

स्ववालम्बन की आवश्यकता- विश्व में अनेक ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होनें स्वावलम्बन पर आत्मनिर्भरता से ही संसार की बुलंदियों को छुआ है। स्वावलम्बन से ही अब्राहम लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति बने। मैक्डानल एक श्रमिक थे लेकिन स्वावलम्बन के बल पर वे एक दिन इंग्लैड के प्रधानमन्त्री बने। भारतीय इतिहास में भी धीरूभाई अम्बानी, लक्ष्मी मितल, राष्ट्रपिता गाँधी जी, अमिताभ बच्चन, लाल बहादुर शास्त्री, शंकराचार्य, एकलव्य आदि अनेक महापुरूषों ने स्वावलम्बन शक्ति के उदाहरण प्रस्तुत किये।

स्वावलम्बन के शत्रु- अत्यधिक लाड़-प्यार, धन-मोह, आलस्य, अन्धविश्वास, भाग्यवाद आदि स्वावलम्बन के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न करते हैं। इनके अतिरिक्त बच्चों का उत्साह कम करना, या उन्हें किसी काम को करने से रोकना बच्चों में स्वावलम्बन की कमी पैदा करता है। वास्तव मंे ये सभी स्वावलम्बन के शत्रु हैं। स्वावलम्बन की महिमा अपरम्पार है। स्वावलम्बन के द्वारा परिश्रमी व्यक्ति सुखद फल प्राप्त करता है।

उपसंहार- युग में अनेक व्यक्ति दूसरों को लूट-खसोट कर अधिक-से-अधिक धन तथा सुख प्राप्त करना चाहते हैं। उन्हें अपने परिश्रम और स्वंय पर अधिक विश्वास नहीं होता जिस कारण वे स्वतन्त्र होकर भी दुःखी और परतन्त्र रहते हैं।
अतः स्वावलम्बन अथवा आत्मनिर्भरता द्वारा हम ऐसी स्थितियों से छुटकारा पा सकते हैं।

निबंध नंबर :03

स्वावलम्बनआत्मनिर्भरता

Swavlamban-Atmanirbhar

 

अपने ही बल के भरोसे पर काम करने को स्वावलम्बन कहते हैं। कुल का बल, धन का बल, चतुरंगिणी सेना का बल आदि ऐसे बल हैं जिनके सहारे मनुष्य उन्नति कर सकता है परन्तु बाहुबल के आगे सारे के सारे बल क्षीण हैं। मनुष्य का अपना बल ही उसके लिए सबसे अधिक सहायक है और इसी आत्मबल के सहारे वह आत्मोद्धार कर सकता है। समस्त लोक सम्पत्तियों का उपार्जन करता हुआ वह स्वयं अपने आप को अमूल्य बना सकता है। गीता का कथन है, “मनुष्य अपना उद्धार आप ही करे, अपने को गिरने न दे,क्योंकि प्रत्येक मनुष्य अपना मित्र या शत्रु आप है।” महर्षि वशिष्ठ ने सत्य कहा है कि मनुष्य जो कुछ कहीं और कभी भी प्राप्त करता है वह अपनी ही शक्ति या अपने ही बल पर करता है, किसी और की शक्ति या बल पर नहीं । स्वावलम्बी व्यक्ति मनुष्यों और देवताओं को भी अधिक प्रिय है। एक जापानी दार्शनिक का कहना है, “हमारी दस करोड़ उंगलियां सारा काम करती हैं, इन्ही उंगलियों के बल पर सम्भव है. हम जगत को जीत लें।”

मनुष्य जीवन में जितनी भी उन्नति करता है या सफलता प्राप्त करता है वह केवल स्वावलम्बन के बल पर ही करता है। आलसी और निकम्मे व्यक्ति जो स्वयं कछ नहीं करना चाहते, वे ही केवल भाग्य और ईश्वर को दोष देते रहते हैं—“दैव दैव आलसी पुकारा। परन्तु वे यह भूल जाते हैं कि ईश्वर भी सानुकूल और सहायक उन्हीं का होता है जो अपनी सहायता आप करते हैं। अंग्रेज़ी की कहावत है – God helps those who help themselves.

स्वावलम्बन से ही मनुष्य को सच्चे सुख और मन की शान्ति प्राप्त होती है। प्रो. पर्ण सिंह अपने निबन्ध मज़दूरी और प्रेम में लिखते हैं-“सच्चा आनन्द तो मुझे मेरे काम से मिलता है। मुझे मेरा काम मिल जाए तो फिर स्वर्ग की प्रा की भी इच्छा नहीं ।” खून पसीना एक करके जब मज़दूर शाम को घर आकर अपनी मेहनत की कमाई से जो दो सखी रोटियाँ खाता है उससे उसको जो आनन्द मिलता है,वह एक बेकार रहकर या दसरों के आगे हाथ फैलाकर खाए गए स्वादिष्ट भोजन में नहीं मिलता । स्वावलम्बी व्यक्ति को चाहे सफलता न भी मिल पर उसे इतना सन्तोष तो अवश्य होता है कि उसने दिन भर मेहनत की है, उसने किसा के आगे दीनतावश हाथ नहीं जोड़े क्योंकि वह यह जानता है-“जब आवै सन्तोष धन, सब धन धूरि सम

इस संसार में वही व्यक्ति जीता है जिसे यश मिलता है। जिसे रोज़ रोज़ अपमानित होना पड़े वह व्यक्ति तो मृतक समान है। यश इस संसार में उसी व्यक्ति को मिलता है जो व्यक्ति स्वावलम्बी है। विद्वानों का मत है कि वे लोग ही संसार में यश प्राप्त करते हैं जो विपत्ति में पड़ जाने पर भी दीनता से प्रेरित होकर धन से मलिन चित्त वाले पुरुषों के पास नहीं जाते । समाज उसी की प्रशंसा करता है जो कठोर परिश्रम द्वारा अपने मनोरथ सिद्ध करता है। एक आम व्यक्ति मेहनत करके भूखा, प्यासा रहकर धन एकत्रित करता है और रहने के लिए एक सुन्दर घर का निर्माण करता है,लोग उसकी प्रशंसा ही करते हैं। इसी प्रकार यदि कोई निर्धन घर का विद्यार्थी अनेक कठिनाइयों को झेलता हुआ, मेहनत से अच्छे अंक लेकर उर्तीण होता है तो उसे अवश्य ही मान मिलता है। स्वावलम्बी व्यक्ति मृत्यु के बाद भी अमर होकर लोगों के लिए मार्गदर्शक का काम करता है।

स्वावलम्बी मनुष्य की आत्मा पवित्र होती है। परिश्रमी व्यक्ति के मन में किसी प्रकार की दूषित भावनाएँ या विचार पैदा नहीं होते । स्वावलम्बन के सम्बन्ध में हमें शिक्षा मनुष्य के चरित्र, आत्मदमन, दृढ़ता, धैर्य, परिश्रम आदि पर दलि रखने से मिलती है। यह सब गुण मनुष्य जाति की उन्नति के लिए आवश्यक हैं। इनके अभाव में वह आत्मसंस्कार नहीं कर सकता। इसलिए आत्मशद्धि लिए स्वावलम्बी होना अति आवश्यक है।

स्वावलम्बी व्यक्ति केवल अपना ही कल्याण नहीं करता अपितु वह देश और समाज की उन्नति और कल्याण में भी सहायक होता है। यूरोप आदि देशों के जो आज उन्नति की है और सारे विश्व के सरताज बने हुए है उसका मुख्य का यही है कि उन देशों के लोगों ने अपने भरोसे, अपने पैरों पर खड़े होना स्वयं लिया है। अपने निरन्तर परिश्रम द्वारा ही एक वैज्ञानिक नए नए आविष्कार करता है, एक विद्वान साहित्य की रचना करके समाज और देश को एक नई दिशा देता है। एक व्यापारी व्यापार द्वारा देश की उन्नति में सहायक हो सकता है और उसकी आर्थिक दशाओं में सुधार ला सकता है।

इतिहास साक्षी है कि शिवा जी ने थोड़े से मराठा सैनिकों की सहायता से औरंगज़ेब को चैन से बैठने नहीं दिया था। एकलव्य बिना किसी गुरु की सहायता के ही जंगल में अकेला ही धनुषबाण चला कर अभ्यास करता रहा और एक दिन बड़ा धनुर्धारी बना । अपने परिश्रम के बल पर ही कोलम्बस अमेरिका को खोजने में सफल हुआ । श्री लाल बहादुर शास्त्री, जो एक निर्धन किसान के बेटे थे, अपने परिश्रम और आत्म बल पर ही आगे जाकर देश के प्रधानमन्त्री बने । ऐसे एक नहीं अनेकों महापुरुषों की कहानियाँ इतिहास में भरी पड़ी हैं जिनका सुबह उठ कर नाम लेने मात्र से सारा दिन मंगलमयी एवं कल्याणकारी हो जाता है। ऐसे गौरवशाली व्यक्ति जिस वंश में, जिस धरती पर.जिस देश में जन्म ले लेते हैं. वह वंश, वह धरती, वह देश उज्ज्वल एवं पवित्र बन जाता है। ऐसे ही व्यक्ति देश और जाति के उद्धारक हो सकते हैं।

बड़े दुःख की बात है कि आज भारतवासी अपने भरोसे पर रहना भूल गए हैं, इसीलिए देश पर संकट छाया हुआ है। इस संकट को दूर करने का केवल एक ही उपाय है कि सभी अपने अपने पैरों पर खड़े हों, अपने अपने हाथों से काम करें, अपनी अपनी दृष्टि से देखें और अपनी अपनी बुद्धि से विचार कर अपने अपने कर्तव्य कर्म पर आगे बढ़ें ।

निबंध नंबर :04

आत्मनिर्भरता

Atmanibharta 

 

संकेत बिंदुआत्मनिर्भरता का अर्थएक श्रेष्ठ गुणआत्मनिर्भर व्यक्ति के गुण

आत्मनिर्भरता का अर्थ है-अपने ऊपर निर्भर रहना अर्थात् अपना सहारा आप बनना। इसका समानार्थक शब्द है-स्वावलंबन। बिना किसी की सहायता लिए अपना कार्य सिद्ध कर लेना आत्मनिर्भरता कहलाता है। आत्मनिर्भरता एक श्रेष्ठ गुण है। यह गुण साधना और परिश्रम से विकसित होता है। आत्मविश्वास इसका मूल आधार है। आत्मनिर्भरता का गुण मानव का एकमात्र सच्चा मित्र है। ईश्वर भी उन्हीं लोगों की सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं -“God helps those, who helps themselves.” आत्मनिर्भरता के बल पर व्यक्ति अपनी किसी भी आकांक्षा की पूर्ति कर सकता है। आत्मनिर्भर व्यक्ति स्वाभिमानी और एकांतप्रिय होता है। जिस देश के नागरिकों में आत्मनिर्भरता का गुण आ जाता है, वह प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति करने में समर्थ हो जाता है। आत्मनिर्भर व्यक्ति न तो भाग्य का सहारा लेता है और न आलसी होता है। आलस्य अकर्मण्यता को जन्म देता है। आत्मनिर्भर या आत्मविश्वासी के लिए यह सारा विश्व ही कर्मक्षेत्र है। वह अपने परिश्रम के बलबूते पर आगे बढ़ता है, ऐसा व्यक्ति कर्मवीर होता है। तुलसीदास की कीर्ति उनकी आत्मनिर्भरता के कारण ही थी, जबकि उनके समकालीन कवि केशवदास विलासी राजाओं की कठपुतली बने रहे और दुर्गति को प्राप्त हुए। आत्मनिर्भरता के बलबूते पर हनुमान सीता की खोज कर सके और कोलंबस ने अमेरिका को ढूंढ निकाला है। राष्ट्रीय-उत्सवों का सीधा प्रसारण भी दूरदर्शन पर होता है। मनोरंजन के क्षेत्र में तो दूरदर्शन ने क्रांति ही ला दी है। दूरदर्शन पर विभिन्न प्रकार के मनोरंजक कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। फीचर फिल्म, चित्रहार, हास्य-व्यंग्य के कार्यक्रम तथा अनेक प्रायोजित कार्यक्रम इस पर प्रसारित होते हैं। ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ ने तो लोकप्रियता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। इन कार्यक्रमों को देखने के लिए लोग सब काम छोड़ देते थे। इसके अतिरिक्त अन्य कार्यक्रम भी बहुत लोकप्रिय हुए हैं। दूरदर्शन पर मैचों का प्रसारण भी होता है। रंगीन दूरदर्शन ने तो इसकी लोकप्रियता बहुत बढ़ा दी है। दूरदर्शन के कार्यक्रमों में गुणात्मक सुधार आ रहा है। अब दूरदर्शन के अनेक चैनल कार्य कर रहे हैं। केबल की सहायता से दूरदर्शन पर अनेक कार्यक्रम देखे जा सकते हैं। दूरदर्शन ने हमारे पारिवारिक जीवन पर बड़ा प्रभाव डाला है। इसके कुछ दुष्परिणाम भी देखने में आ रहे हैं। इन पर नियंत्रण करना परमावश्यक है।

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