Hindi Essay on “Arakshan” , ”आरक्षण” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
आरक्षण
Aarakshan
निबंध नंबर : 01
‘आरक्षण’ शब्द और उसका अर्थ यद्दपि नया और अपरिचित नही है तो भी पिछले कुछ वर्षो से इसको लेकर समाज में जो बावेला मच रहा है , उससे तो ऐसा लगता है जैसे यह कोई नया और महत्त्वपूर्ण शब्द है | ‘आरक्षण’ का सामान्य अर्थ है – अपने या किसी के लिए, स्थान सुरक्षित करना –कराना | संविधान में इसका अभिप्राय है कि जो लोग सदियों से दलित एव पीड़ित जीवन व्यतीत कर रहे है, समाज के विभिन्न क्षेत्रो में उनके लिए स्थान सुरक्षित रखकर उन्हें प्रगति और विकास के अवसर प्रदान कराना | परन्तु आजकल ‘आरक्षण’ शब्द का व्यावहारिक व राजनीतिक अर्थ लिया जा रहा है – केवल पिछडो के नाम पर राजनीतिक खेल खेलकर अथवा दुकानदारी करके सत्ता की कुर्सी हथियाना | इसके लिए उन्हें चाहे जातिवाद , विमनस्थ एव वर्गसंघर्ष जैसे अनैतिक कार्यो का सहारा ही क्यों न लेना पड़े |
प्रारम्भ में तो ‘आरक्षण’ शब्द का प्रयोग केवल रेलों – बसों में यात्रा करने के लिए ‘एडवास बुकिग’ के लिए करते थे | परन्तु भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् जीवन – क्षेत्र के कुछ सभागो में अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाती आदि के लिए कुछ स्थान आरक्षित रखे जाने लगे थे | फिर कांग्रेस की एकाएक उभर कर सामने आई पीढ़ी को सत्ता भोगने का स्वाद कुछ ऐसा पड़ा कि चुनावो के समय वोट पाने के लिए उन्होंने इसका सहारा लेना प्रारम्भ कर दिया | इस ‘आरक्षण’ को स्थिरता प्रदान करने के लिए यद्दपि कांग्रेस ने ‘मण्डल कमिशन’ बैठा तो दिया परन्तु वे इसकी फाइल को खोलने का साहस नही कर सके | परन्तु यह आरक्षण-ज्वर’ अन्दर ही अन्दर बढ़ता रहा |
समय पाकर तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री वी.पी. सिंह ने कुर्सी पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाए रखने के लिए ‘मण्डल कमीशन’ की फाइल को सब के सामने उजागर कर दिया | यद्दपि इसके विरोध और समर्थन में जो मारा –मारी , तोड़ –फोड़ व आत्म-दाह हुए वे भुलाए नही जा सकते | बाद में इसी ‘आरक्षण’ का सहारा लेकर कांशीराम-मायावती एण्ड पार्टी (बहुजन समाजवादी पार्टी) उभर कर आई | आजकल तो यह ‘आरक्षण’ शब्द इतना प्रचलित हो गया है कि सभी, चाहे वे मुसलमान है, सिख है, नारियाँ है या कोई और, अपना –अपना आरक्षण चाहते है | यह आग अब सभी जातियों में इतनी रस्साकस्सी हो रही है जिससे ऐसा लगता है कि आम आदमी के लिए अनारक्षित स्थान उपलब्ध ही नही होगा | विधान सभाओ तथा संसद भवन में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की मांग अभी भी जीवित है |
इस समस्या के समाधान पर विचार करने से इसका सबसे उत्तम उपाय लगता है कि ‘आरक्षण’ शब्द के स्थान पर ‘भारतीय’ शब्द रखकर सबको एक छत के नीचे खड़ा कर दिया जाए तथा वे अपनी योग्यता के आधार पर आगे आऐ | ऐसा करने पर ही देश का और हम सभी का कल्याण हो सकता है अन्यथा नही |
निबंध नंबर : 02
आरक्षण
Aarakshan
प्रस्तावना- आरक्षण एक विशेषधिकार है, पर दूसरों के लिए बाधक और ईष्र्या का कारण बन जाता है, किन्तु आरक्षण समाज में आर्थि विषमताओं को दूर करने का एक उपयुक्त साधन माना जाता है।
आरक्षण के पक्ष एंव विपक्ष सम्बन्धी मान्यताएं-देश में आरक्षण के पक्ष एवं विनक्ष सम्बन्धी मान्यताएं निम्न हैं, जो इस प्रकार हैं-
(1) जातिगत एवं शैक्षिणक आधार-पक्ष में तर्क-
(1) भारतीय संविधान में जातिगत एवं शैक्षिणक पिछड़ेपन को आरक्षण का आधार बनाया गया है, इसीलिए यह विधिसम्मत है।
(2) नौकरी और ऊंचा पद किसी ऊंचे कुल की धरोहर नहीं हैं, ये तो किसी को भी मिल सकते हैं।
(3) कुछ विचारकों का मत है कि पिछड़ी जातियों एवं स्वर्ण जातियों के अधिक पिछड़ेपन की कोई समाजशास्त्रीय समानता नहीं है। सामाजिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ वर्ग वास्तविक रूप से पिछड़ा हुआ है।
विपक्ष में तर्क-
(1) जातिगत आधार पर आरक्षण करने से जातिवाद और अधिक दृढ़ हो जाता है जब तक जातिगत आधार पर आरक्षण मिलेगा, तब तक जातिगत पक्षपात की भावना की समाप्ति नहीं हो सकती।
(2) जातिगत आधार पर आरक्षण दिए जाने से अयोग्य व्यक्तियों को भी महत्वपूर्ण पद मिल जाता है।
(3) जातिगत आधार पर आरक्षण करने से केवल धनी और प्रभावी लोग ही इस सुविधा का लाभ उठा लेते हैं, और जो व्यक्ति इसके वास्तविक अधिकारी हैं, वे इससे वंचित रह जाते हैं।
(2) आर्थिक आधार – पक्ष में तर्क- अर्थप्रधान युग में प्रतिष्ठा एवं अप्रतिष्ठा तथा विकसित एवं पिछड़ेपन का कारण धन है, जिससे समाज में धनी व्यक्ति ही प्रतिष्ठित होते हैं। इसीलिए आरक्षण का सच्चा न्यायोचित आधार आर्थिक दशा ही होना चाहिए।
प्रायः ऊंचे पदों पर ऊंची जाति के लोगों की ही नियुक्ति की जाती है। आरक्षण का आधार आर्थिक दशा को मानने से ऊंची जाति के निर्धन लोग भी पहुंच जाते हैं जिनका परिणाम यह होता है कि उनमें आर्थिक सम्पन्नता को लेेकर प्रतिस्पद्र्धा छिड़ जाती है, जिस कारण सामाजिक विषमता तथा वैमनस्यता और अधिक बढ़ जाती है।
राजनीति क्षेत्र में आरक्षण- आधुनिक युग में राजनीति क्षेत्र में भी आरक्षण की नीति को एक राजनीतिक अस्त्र के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। हमारे देश में जातीयता के आधार पर चुनाव जीते जाते हैं, जिसके फलस्वरूप जातीयता का विष निरन्तर बढ़ता जा रहा है। समाज के सभी लोगों के हितों को दृष्टिगत रखते हुए सरकार को अपने दुराग्रही दृष्टिकोण का त्याग करना चाहिए और सभी की उन्नति और विकास में समान रूप से सहयोग देना चाहिए।
आरक्षण के परिणाम- आरक्षण के द्वारा जातिवाद को प्रोत्साहन मिला है। प्रत्येक राजनीतिक दल बहुमत प्राप्त करने के लिए जातिगत आधार को अभी भी स्वीकार किए हुए है इसीलिए अभी तक इसकी समाप्ति नहीं हो सकी।
उपसंहार- यद्यपि आरक्षण की नीति का मूल उद्देश्य वर्ग विशेष की आर्थिक स्थिति को सुधारना और समाज में शैक्षणिक सुविधाएं देकर सभी को समानता का स्तर प्रदान करना है, किन्तु आरक्षण की नीति का आधार जातिगत हो जाने से इस व्यापक उद्देश्य की पूर्ति में बाधा उत्पन्न हो गई है।
निबंध नंबर : 03
आरक्षण
Aarakshan
जनता पार्टी की सरकार ने 1 जनवरी, 1979 को श्री बी. पी. मंडल की अध्यक्षता में दुसरा ‘पिछड़ी जाति आयोग’ गठित किया था। भूतपूर्व (तत्कालीन) प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 7 अगस्त, 1990 को (सामाजिक न्याय वर्ष के दौरान) संसद में जल्दबाजी में घोषणा कर दी कि उनकी सरकार तत्काल प्रभाव से केन्द्रीय सरकार के अधीन नौकरियों और सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों की नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण के निर्णय को लागू करेगी। इस निर्णय को जन्दी और शान्तिपूर्ण ढंग से लागू करने की दृष्टि से उन्होंने घोषणा की कि सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ी जिन जातियों के नाम मंडल-सूची और राज्य-सूची दोनों में हैं, उनको इसका लाभ दिया जाएगा। संसद की दोनों सभाओं में उन्होंने अपने इस बयान को समाज के वंचित वर्गों के साथ सामाजिक न्याय किए जाने की दिशा में ‘अत्यधिक महत्वपूर्ण निर्णय’ बताया।
आरक्षण के इस नए कोटे को ‘राजनैतिक चाल और वोट समेटने की नग्न तरकीब’ कहकर बदनाम किया गया। राजनैतिक सूझबझ और चातुर्यपूर्ण राजकौशल के अभाव के फलस्वरूप विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार टूट गई।
इसके बाद 21 सितम्बर, 1991 को नरसिंह राव सरकार ने एक ज्ञापन जारी किया जिसमें 1990 के ज्ञापन को कुछ परिवर्तनों के साथ शामिल किया गया था। श्री राव ने नौकरियों में आरक्षण सम्बन्धी नीति में आर्थिक तत्व को सम्मिलित कर लिया। इस प्रकार ऊंची जातियों के निर्धन वर्ग के लोगों को भी आर्थिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ी जातियों में सम्मिलित किया जाएगा। इस प्रकार नए सूत्र (फार्मूले) के अनुसार अनुसूचति जातियों, अनुसूचित जनजातियों, विकलांगों, सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ी जातियों और ऊंची जातियों के निर्धन वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण क्रमशः 15%,7%,2%, 27% और 10% होगा। आर्थिक कसौटी को इसलिए जोड़ा गया कि केवल जाति के आधार पर आरक्षण एक हास्यास्पद विचार है; क्योंकि ऐसा करने से सामाजिक न्याय की धार कुंठित हो जाएगी।
मंडल आयोग की सिफारिशें सरकार के अधीन सभी नौकरियों और सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों की सभी नौकरियों पर लागू होंगी। पिछड़ी जातियों के विद्यार्थियों को सभी विश्वविद्यालयों और सम्बद्ध कालेजों में दाखिला दिया जाएगा।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला 16 नवम्बर, 1992 को दिया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों सरकारों – वी. पी. सिंह सरकार और राव सरकार – द्वारा जारी की गई दोनों अधिसूचनाओं को अंशतः नामंजूर कर दिया। कोर्ट ने पिछड़ी जातियों के लिए सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण को इस शर्त पर मंजूरी दे दी कि उसमें से उन लोगों को निकाल दिया जाए, जो अब निर्धन और पिछड़े नहीं रह गए हैं।
केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को और अधिक अधिकार सौंपने के बारे में नीतिगत निर्णय किया है। कल्याण मन्त्रालय के सूत्रों के अनुसार अब अल्पसंख्यक आयोग भी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग की भांति व्यापक दायरे में काम कर सकेगा।
आरक्षण का लाभ नौकरी प्राप्त करने के समय पर होगा। इसका प्रभाव अग्रिम पदोन्नतियों में नहीं होगा।
अन्त में, यह बात स्पष्टतः समझ लेनी चाहिए कि किसी संगठन की नौकरियों में किसी प्रकार के आरक्षण का मतलब यह है कि उस संगठन की कार्य-कुशलता का स्तर गिर जाएगा; क्योंकि ऐसी प्रणाली लागू होने से निकम्मे लोग ऊँचे पदों पर पहुंच जाएंगे और योग्य लोग निराश और असहाय होकर देखते रहेंगे। पिछड़ी जातियों के लोगों की सहायता करने का सबसे बढ़िया तरीका यह है कि उन्हें अच्छी शिक्षा प्राप्त करने की सब सुविधाएं प्रदान की जाएं ताकि वे अगड़ी जातियों के समान स्तर तक आ जाएं। उनकी सहायता जरूर की जाए किन्तु सरकारी विभागों की कार्य-कशलता के स्तर को गिराकर नहीं।
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