Hindi Essay on “Anterrashtriya Bal Diwas” , ”अन्तर्राष्ट्रीय बाल-वर्ष” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
अन्तर्राष्ट्रीय बाल-वर्ष
Anterrashtriya Bal Diwas
अन्तर्राष्ट्रीय बाल-वर्ष का आयोजन सन् 1979 में संयुक्त राष्ट्र संघ के आहान पर किया गया था। इस आयोजन से विश्व-स्तर पर एक समस्या उत्पन्न हुई। बालक प्रकृति की परम अनुपम कृति है। विश्व का भावी कर्णधार हे। आज का बालक कल विश्व का नियामक और संचालक होगा। अतः बालक को जितना अधिक सुयोग्य, शक्तिशाली और कर्मठ बनाया जाएगा, वह उसी अनुपात में विश्व की सेवा में सक्षम होगा। बालक का मन-मस्तिष्क कोरा कागज है, जिस पर कुछ भी लिखा जा सकता है। बच्चे चाहे जिस वर्ग, जाति, वर्ण, देश के हों, उनमें पारस्परिक सौजन्य और प्रेम होता है। संसार का भ्रातृ-भाव बालकों में सम्पूर्ण पारस्परिक सौजन्य और प्रेम होता है। संसार का भ्रातृ-भाव बालकों में सम्पूर्ण भक्ति से निहित होता है। विश्व-बन्धुत्व और मानव-प्रेम की भावना जिस मात्रा में बालकों मंे पाई जाती है, उतनी अन्यत्र दुलर्भ है। बच्चे स्वाभाविक रूप से बिना किसी भेद-भाव के आपस में एकीकृत हो जाते हैं। यदि हम बालकों के इस भाव बोध को विकसित और सुरक्षित कर सकें तो विश्व की अनेक समस्याओं का समाधान अपने आप हो जाए।
संयुक्त राष्ट्रसंघ विश्व का सबसे बड़ा और व्यापक संगठन है। यह एक ऐसी संस्था है जो मात्र युद्ध रोकने और मानव जाति को विनाश से बचाने का ही उद्योग नहीं करती, बलिक मानव जाति के उत्थान, उसके पिछड़ेपन को दूर करने के संघर्ष, भूखों के पेट भरने का उपाय और मानवीय सभ्यता की रक्षा के भी विविध उपाय करती है। इसी संस्था के तत्वाधान में वर्ष 1979 को अन्तर्राष्ट्रीय बाल वर्ष के रूप में मनाने का आयोजन किया गया था। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने विश्व के सभी देशों का आहान किया कि वे अपने-अपने देश में बालकों के कल्याण के लिए विविध कार्यक्रम बनाएं और उन्हें क्रियान्वित करें। वैसे संयुक्त राष्ट्रसंघ प्रतिवर्ष बालको के कल्याण हेतु कार्य करता रहता है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थय, आदि प्रमुख हैं किन्तु सन् 1979 वर्ष को उसने बालकों को दृष्टि में रखकर करने का आहान किया था। यह संस्था विश्व के बच्चों के लिए दवाएं, पौष्टिक आहार आदि की व्यवस्था करने को अपना प्रमुख कर्तव्य समझती है।
भारत के संदर्भ में बाल वर्ष की अत्यन्त उपयोगिता है। भारत विश्व के निर्धन देशों में गिना जाता है, जहां बालकांे के शिक्षा की बात तो दूर, उन्हें भरपेट भोजन भी सुलभ नहीं होता। पौष्टिक आहार की कमी के कारण लाखों बच्चों का स्वास्थय अक्षुण्ण नहीं रह पाता है। इस व्यवस्था में भी बच्चों की जनसंख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। भारत के लिए बालकों की जीवन रक्षा, चिकित्सा, शिक्षा-दीक्षा और पालन-पोषण की समस्या अत्यन्त जटिल होती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ के आहान पर भारत सरकार ने भी अनेक योजनाएं इस दिशा में बनाई। गरीब और मध्यम वर्ग के बच्चांे हेतु मुफ्त दवाइयों के वितरण-सम्बन्धी कार्यक्रम सम्पन्न हुए। विभिन्न प्रकार की प्रतियोगताएं आयोजित की गई। अन्तर्राष्ट्रीय बाल वर्ष में बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं को तीन मास की बजाय चार मास का अवकाश दिया गया। सरकार ने संकल्प लिया कि पिछड़े वर्ग के बच्चों के स्वास्थय और शिक्षा-दीक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। भारत में संयुक्त राष्ट्रसंघ की मान्यताओं के अनुसार कार्य करने में विशेष सक्रियता दिखाई गई।
उन्नत देशों का यह कर्तव्य है कि पिछड़े देशों के बालकों के जीवन-उत्थान हेतु आर्थिक और शैक्षणिक सहयोग दें जिससे इस दिशा में प्रभावशाली कार्य हो सके। विकसित देशों ने इस क्षेत्र में कुछ कार्य अवश्य किए हैं, किन्तु उतने ही पर्याप्त नहीं हैं। मानवीय भावना को दृष्टि में रखकर विकसित देश पूरी आस्था से कार्य करें और अविकसित देश भी बालकों के कल्याण और उन्नति को प्राथमिकता दें तभी यह कार्य सही अंजाम पा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय बाल वर्ष का उद्देश्य पावन रहा है। उससे विश्व के बालकों का कल्याण भी हुआ है। लेकिन जितना हुआ वह पर्याप्त नहीं है। यदि विश्व को शांति, सुरक्षा और विकास की ऊंची मंजिल तय करनी है तो वह बालकों के कल्याण मंे तल-मन-धन से अपने को समर्पित कर दे अन्यथा यह मान लेना होगा कि विश्व का भविष्य अंधकारमय है। आने वाली पीढ़ी ही सब कुछ होती है, उसका विकास ही भावी का सही विकास है। यदि अन्तर्राष्ट्रीय बाल-वर्ष हमारे मन में यह चेतना जाग्रत करने में कुछ भी सफल रहा तो उसकी सफलता निश्चित है। हम आशावादी हैं, अतः यह मानने में हिचकिचाहट नहीं है कि विश्व बालकों की उन्न्नति के प्रति उपेक्षा भाव नहीं बरतेगा।