Hindi Essay on “Adhunik Bharatiya Nari ke Kartvya aur Adarsh ” , ”आधुनिक भारतीय नारी के कर्त्तव्य और आदर्श” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.
आधुनिक भारतीय नारी के कर्त्तव्य और आदर्श
Adhunik Bharatiya Nari ke Kartvya aur Adarsh
नारी व्यापक जीवन और समाज का आधा अंग कहा जाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले तक परिस्थितिवश उसके जीवन व्यवहारों पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध लगे हए थे। उसकी तनिक-सी भी चेष्टा को उड़ने का प्रयास मान कर संदेह की नजर से देखा जाता था। उसे प्रायः शिक्षा भी नहीं दी जाती थी। यदि दी भी जाती, तो बस पढ़ना-लिखना सिखा दिया, ताकि वह रामायण-महाभारत आदि धार्मिक ग्रन्थ पढ़ सके। अधिक से अधिक अवसर पड़ने पर चिट्ठी पत्री लिख सके। यह अब भी बड़े शहरों में ही हो पाता था, कस्बों और ग्रामों में कतई नहीं। अपने आप को धनी मानी एवं आधुनिक मानने वाले परिवारों की नारियाँ धीरे-धीरे स्कूल-कॉलेज भी जाने लगीं, पर उन पर तरह-तरह के लाँछन लगाए जाते। “तितलियाँ और “मधुमक्खियाँ तक की उपाधि दी जाती। आर्यसमाज, बाद में सनातन धर्म, इधर बंगाल आदि में ब्रह्मसमाज, महाराष्ट्र में प्रकृति समाज थ्योसोफीकल सोसायटी आदि के प्रयासों से भारतीय नारी समाज में जागृति के कुछ लक्षण प्रकट होने लगे। फलस्वरूप चिकित्सा क्षेत्र में कुछ नारियाँ डॉक्टर और कछ नर्स के रूप में नजर आने लगीं। दूसरी ओर कुछ ने शैक्षिक ट्रेनिंग करके अध्यापिका का पेशा भी अपना लिया-बस। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले भारतीय नारी समाज का क्षेत्र यहीं तक सीमित रहा आम तौर पर। किन्तु कुछ ओजस्वी व्यक्तित्व वाली ऐसी नारियाँ भी हुई कि जिन्होंने क्रान्तिकारी संगठनों की सदस्या बनकर महत्त्वपूर्ण कार्य किये, अर्थात् महात्मा गांधी द्वारा चलाये गए आंदोलनों का अंग बन गई। ऐसी नारियों में से क्रान्तिकारी संगठनों से जुड़ने इतिहास को अवश्य गिनकर बता पाना संभव नहीं, जबकि गांधीवादी गबनने वाली प्रायः सभी नारियों के नाम इतिहास में सर्वविदित है।
अब क्रम आता है एकदम आधुनिक नारी का। कहा जा सकता है कि स्वतंत्र भारत की नारी के कर्तव्य और आदर्श का। पहले आदर्श की बात कर लें। यों तो आधुनिक भारतीय नारी में सभी परम्परागत उच्च नारीत्व के भाव और गुण, कहा जा सकता है कि आदर्श भी विद्यमान है,
फिर भी वह उतनी ही आदर्श कही जा सकती है कि जितना देश का वातावरण और पुरुष समाज आदर्श है। इतने पर भी नारी को पुरुष की तुलना में सामान्यतः अधिक भारतीय आदर्शों की रक्षिका और पालिका कहा जा सकता है। कहा जा सकता है कि भारतीय घर-परिवारों के जो आदर्श बचे हए हैं, जिन परम्पराओं आज भी निर्वाह हो पा रहा है, वह नारियों के कारण हो पाया है। भारतीय नारी का के हो जाता है, आदर्श भी इसी बात में है कि वह भारतीयता और उस की आदर्श, प्रगतिशील परम्पराएँ इसी प्रकार बचाए रखे ताकि पाश्चात्य प्रभावों से आज जो भारतीयता के हास और विनाश का संकट उपस्थित है, उसे टाला जा सके।
यो आर्थिक कमाई की दृष्टि से तो घर-परिवार का मुखिया पहले भी पुरुष ही रहा है और अधिकतर आज भी वही है; लेकिन जहाँ तक घर-परिवार को चलाने का प्रश्न है. पहले भी यह कार्य नारियाँ ही करती रही हैं, अधिकतर आज भी वही कर रही हैं। रसी स्थिति में उन का आदर्श कर्त्तव्य हो जाता है कि वे अपने घरों-परिवारों को उन विघटनकारी प्रवृत्तियों से बचाएँ कि जिन का पाश्चात्य प्रभावों से आज भारत में भी बोलबाला हो रहा है। ऐसा घर परिवार के प्रत्येक सदस्य की इच्छाओं का अपनी सीमाओं में उचित बान करके ही संभव हो सकता है; क्योंकि स्वतंत्र भारत उनके प्रकार से अपने नव-निर्माण के दौर से गुजर रहा है, ऐसी दशा में नारियाँ उनका उचित पथ-प्रदर्शन कर सकती हैं । उचित आय में घर-गृहस्थी को सम्भाल कर अपने पुरुषों को सत्प्रेरणा है कि वे राष्ट्र निर्माण के कार्यों में किसी भी प्रकार से भ्रष्टाचार न आने दें। बहिष्कार कर उनका भण्डा फोड़ें, ताकि दूसरे भी सावधान रह सकें। ऐसे राष्ट्र का निर्माण संभव हो सके कि जिससे किसी भी प्रकार के अभाव का सामना न करना पड़े। आज की पढ़ी-लिखी समझदार नारी सचमुच ऐसा बहुत कुछ कर सकता है।
भारत को स्वतंत्र हुए अड़तालीस वर्ष हो गए हैं, फिर भी यह देश, इस का समाज, अनेक प्रकार की कुरीतियों के शिकार हैं। बच्चे के जन्म से लेकर वृद्ध हा, उसके बाद भी हमें अनेक प्रकार की मार, तत्त्वहीन कुरीतियों का उस निर्वाह अक्सर विवश होकर करना पड़ता है। कई बार तो मात्र इसलिए करना पड़ता है कि घर-परिवार की अच्छी-भली पढ़ी-लिखी और समझदार स्त्रियाँ न चाहते हुए भी इस कारण करना चाहती हैं कि बाकी सब-आस-पास रहने वाले किये जा रहे हैं। अब सोचिए पुरुष तो चाहते नहीं और चाहती नारियाँ भी नहीं, फिर केवल करने के लिए अर्थात दिखावा करने के लिए करना है, है कोई तुक इस बात में। आधुनिक नारी को सोचना है। जीवन समाज को आडम्बरहीन और साफ-सुथरा बनाने के लिए, अनचाहे का बलपूर्वक त्याग करना है। लोग कहते रहें, तब भी करना है। हम यहाँ दहेज प्रथा का उदाहरण देना चाहेंगे। अक्सर आधुनिक विचारों वाले पढे-लिखे बेटे (सब की बात नहीं की जा रही) और उनके पिता दहेज लेकर बेटों का विवाह नहीं करना चाहते; पर नारियाँ वे अड़ जाती हैं कि भई अभी तक तो हमने दिया ही दिया है (अपनी बोटियों को), लेने का मौका तो अब आया है। हम तो खूब लेंगे या फिर कल को अपनी सन्ध्या (बेटी) का विवाह भी तो करना है। जितना अधिक से अधिक ले सकते हो लो, उसके काम आएगा। इस प्रकार अपने को आधुनिक कहने वाली नारी ही दूसरी की दुश्मन बन जाया करती है। दहेज की निरन्तर बढती माँग पूरी न कर पाने वाली नारी ही बाद में जलती मरती हैं। नहीं, आधुनिक नारी का आदर्श और कर्त्तव्य यह नहीं है। इस का पवित्र कर्त्तव्य और आदर्श तो है मानवता का शोषण करने वाली, मानवता के लिए कोढ़ और अभिशाप सिद्ध होने वाली प्रत्येक प्रथा का अनुपयोगी बात का विरोध करना ताकि स्वतंत्र देश में सभी के लिए वास्तव में जीवन जीने के लायक बन सके।
आधुनिक नारी के लिए सभी दिशाएँ खुली हैं। पक्का इरादा करके आज यह कुछ भी कर सकती है। किसी भी दिशा में जाकर अपनी बुद्धिमत्ता और कार्य कौशल दिखा सकती है। इसके लिए सद्विचारों, नए और आधुनिक विचारों को अपनाने की सब से पहली आवश्यकता है। उसके बाद सुरक्षा, सुविचार, आत्म-विश्वास और अनवरत कार्य ऐसा हो जाने पर वह क्या नहीं कर सकती? सचमुच वह जीवन और समाज को सुखी तथा समृद्ध बनाने वाले नये मंत्रों अर्थात् रास्तों का, कार्य स्थलों का इच्छित एवं उचित निर्माण कर सकती है। देर-सबेर आधुनिक भारतीय नारी को अपने इसी आदर्श कर्तव्य की राह पर आना ही है। सचमुच, वह दिन बड़ा ही शुभ होगा, जिस दिन आधुनिक नारी सभी तरह की कुरीतियों, पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर घर-परिवार को सम्हालती हुई, इस प्रकार के आदर्श-कर्त्तव्य पालन की राहों पर चल निकलेगी। हमें पूर्णतया आशावादी रहना चाहिए।