Hindi Essay, Moral Story “Sher ka dar nahi, jitna tapke ka” “शेर का डर नहीं, जितना टपके का” Story on Hindi Kahavat for Students of Class 9, 10 and 12.
शेर का डर नहीं, जितना टपके का
Sher ka dar nahi, jitna tapke ka
जंगल से करीब एक मील की दूरी पर एक गांव था। रात के समय गांव में प्रायः जंगली जानवर घूम जाते थे और गांव के बाहरी हिस्से में चौपायों को मार जाते थे। कभी-कभी आदमी भी शिकार होते-होते बच जाते थे।
गांव के बाहरी इलाके में एक बुढ़िया का परिवार रहता था। उसके मकान के पीछे खाली हिस्से में चौपायों का घेर था। बुढ़िया के कमरे के पीछे चौपायों के लिए छप्पर पड़ा था। इस समय घेर में एक भी चौपाया नहीं था। इसीलिए घेर की विशेष देखभाल नहीं की जा रही थी। गांव का कोई भी पशु उसमें आ जाता था और चला जाता था।
बरसात के दिन थे। रात के करीब दो बजे थे। आकाश में बादल घिरे हुए थे। बरसात होने वाली थी। रह-रहकर बिजली चमक रही थी। थोड़ी देर में बूंदाबांदी के बाद बरसात शुरू हो गई। जोर से बादल गरजा, तो बुढ़िया की नींद टूट गई। बुढ़िया के साथ उसका पोता लेटा हुआ था। बुढ़िया उठी, तो वह भी उठकर बैठ गया। बुढ़िया ने बाहर झांककर देखा तो पानी बरस रहा था। पिछले वर्ष बुढ़िया की छत टपकी थी। इस वर्ष भी वह डर रही थी। अभी बहुत जोर से वर्षा नहीं हुई थी। अपनी दादी को चिंतित देखकर उस लड़के ने कहा, “दादी, इतनी घबराई हुई क्यों हो?”
बुढ़िया ने कहा, “बेटा, पारसाल छत खूब टपकी थी। सोचा था, बरसात के बाद छत पलटवा लेंगे, नहीं पलटवा पाई।” वह बोला, “दादी, टपका से डरती हो?” दादी बोली, “अरे बेटा तुम क्या जानो? मुझे इतना शेर का डर नहीं, जितना टपके का है।”
पीछे चौपायों के घेर में छप्पर के नीचे शेर बुढ़िया की बातों को सुन रहा था। शेर बुढ़िया के कमरे के ठीक पीछे खड़ा था। कमरे की पटान की कड़ियां दीवार के आर-पार थीं। उन्हीं खाली जगहों से आवाज शेर तक पहुंच रही थी। शेर बुढ़िया की बात सुनकर हैरान था कि टपका ऐसा कोई जीव है, जो मुझसे भी अधिक ताकतवर है। अब तक तो मैं अपने को ही सबसे शक्तिशाली जानवर मानता था। शेर शिकार के लिए इधर आया था। बरसात शुरू हो जाने पर उसे यहां शरण लेनी पड़ी थी। रिमझिम पानी बरसता रहा और शेर छप्पर में खड़ा-खड़ा टपके के बारे में सोचता रहा।
उसी गांव के एक धोबी का गधा खो गया था। सुबह पांच बजे उसे कपड़ों की लादी लेकर घाट पर जाना था, इसलिए धोबी सुबह तीन बजे जगकर गधे को खोजने के लिए निकल पड़ा था। हालांकि घुप्प अंधेरा था, लेकिन जब-जब बिजली चमकती थी, रास्ता नजर आ जाता था।
खोजते-खोजते धोबी बुढ़िया के चौपायों के घर के सामने खड़ा होकर इधर-उधर देखने लगा। उसने घेर की ओर भी नजर डाली। जैसे ही बिजली कड़क कर चमकी, उसे छप्पर के नीचे खड़ा गधा नजर आया। शेर दीवार की तरफ मुंह करके खड़ा था। धोबी गया और शेर को गधा समझकर कान पकड़कर दो हाथ पीठ पर जमाए और कहा, “काम चोर कहीं का। यहां खड़ा है? तुम्हें कहां-कहां ढूंढ़ आया।”
शेर ने समझा कि आ गया टपका। जो बुढ़िया बता रही थी, वह यही टपका जान पड़ता है। शेर भीगी बिल्ली की तरह खड़ा रहा। धोबी उछलकर शेर की पीठ पर बैठ गया, आगे गरदन के बाल पकड़े और दो एड़ पेट पर लगाईं और कहा, “चलो बेटा।”
शेर दौड़ने लगा। धोबी ने अपने पैरों के पंजे शेर के आगे वाली कांख में फंसा लिए, जिससे वह गिरे न। धोबी सावधानी से शेर की पीठ पर बैठा जा रहा था। इसी बीच जोर से बिजली कड़की। बिजली की चमक शेर पर पड़ी, तो शेर के बाल और रंग देखकर धोबी हैरत में रह गया। उसने सोचा-यह तो गधा नहीं है। कुछ और ही है। अब कुछ-कुछ दिखाई देने लगा था। फिर भी कोई चीज साफ नजर नहीं आ रही थी। उसने देखा कि सामने रास्ते में पेड़ की एक मोटी डाल नीची है। उसे थोड़ा उचककर पकड़ा जा सकता है। जैसे ही शेर पेड़ के नीचे से निकला, धोबी ने उचककर डाल पकड़ी और लटक गया।
शेर ने जब अनुभव किया कि पीठ पर अब टपका नहीं है, तो वह पूरी ताकत के साथ जंगल की ओर दौड़ा। शेर दौड़ते हुए सोचता जा रहा था, बुढ़िया ठीक कह रही थी कि
‘शेर का डर नहीं, जितना टपके का।