Hindi Essay, Moral Story “Jo hal jote kheti vaki, aur nahi to jaki taki” “जो हल जोते खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी” Story on Hindi Kahavat.
जो हल जोते खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी
Jo hal jote kheti vaki, aur nahi to jaki taki
तालाब के किनारे एक मंदिर था। एक जमींदार मंदिर के चबूतरे पर बैठा-बैठा कुछ सोच रहा था। आमदनी ‘घटती जा रही थी। सभी खेत आध-बटाई पर दे रखे थे। बिना हाथ-पैर चलाए लगभग आधी फसल का अनाज मिल जाता था। उसने खुद तो कभी हल की मूंठ तक नहीं पकड़ी थी।
खेत वर्षों से आध-बटाई पर चले आ रहे थे, लेकिन इधर चार-पांच महीने से वह अपने खेत आध-बटाई पर दूसरों को देना नहीं चाहता था। इस बात को लेकर काफी कहा-सुनी हुई। फौजदारी होते-होते बची। अतः यह मसला मुखिया के पास जा पहुंचा। मुखिया ने पंचायत बैठाने का फैसला किया।
एक दिन पंचायत बैठी। पंचायत मुखिया की चौपाल में जुटी। क्या फैसला होता है, यह जानने के लिए गांव के तमाम लोग इकट्ठे हुए। पंचों ने दोनों ओर की बात सुनने के बाद, दोनों ओर के लोगों से कुछ बातें पूछी, “जमींदारजी, आपको आधा अनाज मिल जाता है, फिर क्यों इनसे काम नहीं कराना चाहते हैं? उस जमीन का आप क्या करेंगे? आप तो खुद जोतेंगे नहीं, क्योंकि आपने खेती कभी की ही नहीं।”
जमींदार ने उत्तर दिया, “खेती मेरी है। मैं अपनी खेती का कुछ भी करूं। किसी से भी काम कराऊं।”
इसके बाद पंचों ने दूसरे पक्ष से पूछा, “तुम लोग क्या कहते हो?” खेतिहर किसान बोले, “हे पंचो! वर्षों से हम खेती करते आ रहे हैं। इसी से अपने परिवारों का पालन-पोषण कर रहे हैं। ईमानदारी से आधा अनाज इनको दे रहे हैं। हमारे पास अलग से जमीन नहीं है और यहां पर काम नहीं है। हम लोग तो भूखों मर जाएंगे।”
पंचों ने आपस में विचार-विमर्श करने के बाद जमींदार से कहा, “देखिए जमींदारजी, यह तो निश्चित है कि आप खुद तो खेती करोगे नहीं। किसी दूसरे से ही करवाओगे। इससे अच्छा है, इनसे ही खेती करवाते रहिए, वरना इन लोगों को जीविका का भीषण संकट आ जाएगा।”
जमींदार ने पंचों की बात नहीं मानी। पंचों ने जमींदार को फिर एक बार समझाया। जब जमींदार नहीं माना तो पंचों ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा
‘जो हल जोते खेती वाकी, और नहीं तो जाकी ताकी।‘