Hindi Essay, Moral Story “Jaan bachi, lakho paye” “जान बची, लाखों पाए” Story on Hindi Kahavat for Students of Class 9, 10 and 12.
जान बची, लाखों पाए
Jaan bachi, lakho paye
एक रियासत में एक नाई और एक पंडित बहुत चालाक और मक्कार किस्म के थे। इनकी मक्कारी से वहां का राजा भी परेशान था। उनसे छुटकारा पाने के लिए राजा ने एक उपाय सोचा। राजा ने नाई और पंडित से अपनी लड़की के लिए एक रियासत में राजकुमार को देखने के लिए कहा। उस रियासत तक पहुंचने के लिए जंगल से होकर रास्ता जाता था। उधर से जाएंगे तो निश्चित ही जानवर उन दोनों को खा जाएंगे। जब उनसे कहा गया, तो उनके होश उड़ गए। अगले दिन दोनों जाने के लिए इकट्ठे हुए। नाई और पंडित ने आपस में विचार-विमर्श किया कि अगर हम जाने से इनकार करते हैं तो राज्याज्ञा के उल्लंघन में फांसी दी जाएगी। इसलिए दोनों ने जाने का निश्चय कर लिया। सोचा मरना तो यहां पर भी है। जाने से शायद बचने का कुछ रास्ता निकले।
एक-एक झोला लेकर दोनों रियासत से निकल पड़े। जैसे ही जंगल शुरू हुआ, तो दोनों को भय सताने लगा। जाना तो था ही, इसलिए वे आगे बढ़ते गए। करीब एक कोस अंदर जाने पर उनको एक शेर नजर आया। वह सामने ही आ रहा था। शेर को देखकर पंडित कांपने लगा। डर तो नाई को भी था, लेकिन उसने हिम्मत से काम लिया और पंडित से भी कहा कि वह बिल्कुल न डरे। नाई ने कहा कि अब मेरा कमाल देखो। पंडित सोचने लगा कि देखते हैं कि नाई क्या करता है?
उनके पास आकर शेर ठहाका मारकर हंसने लगा। नाई ने उससे भी अधिक जोर से ठहाका मारा और हंस दिया। शेर बड़े आश्चर्य में पड़ गया, कि आखिर यह क्यों हंसा?
शेर ने नाई से पूछा, “भाई, तुम क्यों हंसे?” नाई ने भी पूछा, “तुम क्यों हंसे?”
शेर ने कहा कि मनुष्य का शिकार किस्मत वालों को और कभी-कभी मिलता है। आज तो दो शिकार अपने आप मेरे पास ही आ गए हैं। इतना सुनते ही नाई ने जोर की आवाज में कहा, “पकड़ ले इसको। जाने मत देना।”
जैसे ही “पंडित ने थोड़ा शरीर हिलाया, तो शेर ने बड़े आश्चर्य से पूछा,” क्यों भैया? मुझे क्यों पकड़ रहे हो?”
नाई ने कहा, “हमारे राजा ने एक जैसे दो शेर पकड़कर लाने के लिए कहा है। एक मेरी जेब में है और दूसरा तुम हो। पकड़ लो। जाने मत देना।”
शेर को बड़ा आश्चर्य हुआ। शेर वह भी जेब में। शेर ने कहा, “दिखाओ तो जरा।”
नाई ने अपनी जेब से शीशा निकालकर उसके सामने कर दिया। उसमें उसी शेर की ही सूरत दिखाई दे रही थी। नाई ने कहा, “देख लिया। है बिल्कुल तेरे जैसा?”
शेर आ गया झांसे में। बोला, “लगता तो है मेरे जैसा।”
इतना कहना था कि नाई ने पंडित से कहा कि छोड़ना मत। पकड़ लो इसको। शेर डर गया। उसने कहा, “भैया मुझे छोड़ दो, तुम्हारी बड़ी मेहरबानी होगी।”
नाई बोला, “अगर तुझे छोड़ दिया, तो राजा हम दोनों को फांसी पर चढ़ा देगा।”
शेर फिर गिड़गिड़ाया और कहा, “इस जंगल में और भी शेर हैं, किसी को भी पकड़ लेना। मेरे साथ चलो। मेरी गुफा में बहुत-से सोने के गहने पड़े हैं। छोड़ने की एवज में मैं तुम्हें दे दूंगा।”
दोनों तैयार हो गए और शेर के साथ चल दिए। शेर उनको गहने देकर थोड़ा चला, फिर तेजी से जंगल में भाग गया।
पंडित बोला, “भाई, लाखों रुपयों के गहने होंगे। कैसे क्या होगा इसका? ” इतना धन न पंडित ने देखा था और न नाई ने। पंडित घबरा गया।
नाई बोला, “धीरज धरो। घबराते क्यों हो भाई, लौटकर तो वैसे भी नहीं आना है। जहां पहुंचेंगे, वहीं शानदार धंधा करेंगे।”
पंडित बोला, “ठीक कहते हो भाई। राजा वैसे ही नाराज रहता है और इतना पैसा देखकर किसी-न-किसी चक्कर में फंसाने का काम करेगा।” यह सब सोचते हुए वे आगे बढ़ते गए। चलते-चलते एक मोड़-सा मिला। थोड़ा मुड़ते ही देखा, तो दोनों की सांसें ऊपर-की-ऊपर और नीचे-की-नीचे रुक गईं। वहां बहुत-से शेर थे। शेरों की सभा हो रही थी। पंडित बोला, “अब नहीं बचने के? वहां तो एक शेर था, जो उल्लू बना दिया था। यहां कितने शेर हैं।”
नाई ने कहा कि चिंता मत करो। एक काम करते हैं। इन झोलों को इस झाड़ी में रख दो और इस पेड़ पर चढ़ जाते हैं। थोड़ी देर बाद ये सब यहां से चले जाएंगे और हम उतरकर अपने रास्ते पर निकल जाएंगे।
इसके अलावा कोई रास्ता भी नहीं था। उन्होंने दोनों झोले झाड़ी में रखे और आंख बचाकर दोनों पड़ पर चढ़ गए। जैसे-जैसे दिन चढ़ता जा रहा था। पेड़ की छाया सिमटती जा रही थी। सब शेर उसी पेड़ के पास आते जा रहे थे। दोपहर के बारह-एक बजते ही छाया सिमटकर सब पेड़ के नीचे आ गई। सब शेर भी उसी पेड़ के नीचे आ गए। अब तो दोनों की सिट्टी-पिट्टी गम हो गई। फिर भी नाई पंडित को हिम्मत बंधाता रहा।
शेरों का मुखिया बीच में बैठा था। उसके गले में घंटा बंधा था। उस शेर ने कड़ककर एक शेर से कहा, “तुम पागल बन गए उन दो आदमियों से। शेर कहीं जेब में होता है? तुमने आदमियों के शिकार छोड़े हैं, तुम्हें बिरादरी से बाहर निकाला जाता है।”
शेरों के मुखिया की बात सुनते ही पंडित की हिम्मत जवाब दे गई। अचानक उसके हाथ छूट गए और नीचे घंटे वाले शेर के ऊपर ही जा गिरा। नाई ने तुरंत अपनी बुद्धि का इस्तेमाल किया। वह बोला, “पकड़ ले इसी घंटे वाले को।”
इतना कहना था कि घंटा वाला शेर छलांग मार कर भागा। उसने सोचा कि वास्तव में ये आदमी कितने साहसी हैं कि शेरों की भरी सभा में कूद पड़े। घंटे वाले मुखिया के भागते ही सब शेर भाग खड़े हुए।
पेड़ के नीचे अकेला पंडित बेहोश पड़ा था। नाई ने पेड़ से दूर-दूर तक देखा। जब कहीं कोई शेर दिखाई नहीं दिया, तो वह पेड़ के नीचे उतर आया। पंडित को झकझोरा तो पंडित ऐं-ऐं करने लगा। जब पंडित की आंखें खुलीं, तो देखा कि नाई सामने खड़ा था।
पंडित की धोती खराब हो गई थी। उन्होंने झोले उठाए और चल दिए। पास में एक झील थी, वहीं दोनों ने स्नान किया और अपने-अपने कपड़े धोए। कपड़े सूखते ही पहने और चल दिए।
दिन डूबने से पहले वे जंगल पार करके दूसरी रियासत में आ गए, तो नाई ने कहा, चलो पंडित जी, यहीं कोई धंधा करेंगे।
जान बची, लाखों पाए।