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Hindi Essay, Moral Story “Ishwar jo kuch karta hai, Accha hi karta hai ” “ईश्वर जो कुछ करता है, अच्छा ही करता है” Story on Hindi Kahavat for Students

ईश्वर जो कुछ करता है, अच्छा ही करता है

Ishwar jo kuch karta hai, Accha hi karta hai 

एक बार एक राजा शिकार खेलने गया। उसके साथ सेनापति तथा कुछ सिपाही थे। शिकार करते समय थोड़ी असावधानी हो गई और राजा की एक उंगली कट गई। उंगली कटते ही राजा थोड़ा ठिठक गया और इतने में ही शिकार घायल अवस्था में ही निकलकर भाग गया। कुछ सिपाही शिकार के पीछे दौड़े भी, लेकिन राजा को रुकते देखकर वापस आ गए। राजा ने कटी हुई उंगली पर कपड़ा लपेटा। सबने दुख प्रकट किया। सेनापति ने भी दिलासा बंधाई और अंत में कहा, “ईश्वर जो कुछ करता है, अच्छा ही करता है।”

एक तो शिकार निकल जाने का दुख था और दूसरा उंगली कट जाने का। इस पर सेनापति के इन शब्दों ने आग में घी डालने का काम किया। राजा की आंखों से गुस्सा बरस पड़ा। राजा बोला, “मेरा हाथ लहू-लुहान हो गया। तेज दर्द हो रहा है और तुम जले पर नमक छिड़क रहे हो। चले जाओ आंखों के सामने से। तुम्हारा मुंह नहीं देखना चाहता मैं।”

वह था तो सेनापति, लेकिन राजा तो राजा ही होता है। फिर भी सेनापति खुद्दार था, उससे अपना अपमान सहा नहीं गया। उसने घोड़े की लगाम को झटका दिया, बैठकर घोड़े के एड़ लगाई और दौड़ा दिया घोड़ा।

सो दिन जब दरवार लगा, तब राजा ने सेनापति को बंदी बना लिया। बंदीगृह जाते समय भी सेनापति ने राजा से कहा, “ईश्वर जो कुछ करता है, अच्छा ही करता है।”

एक दिन बाद राजा दोबारा शिकार खेलने गया। घना जंगल था। जंगल में दूर जाकर शेर दिखाई दिया। राजा और उसके सिपाहियों ने उसका पीछा किया। व्यूह रच कर आगे बढ़ने लगे। किसी तरह शेर निकलकर भाग गया, लेकिन ये लोग पीछा करते-करते तितर-बितर होकर भटक गए। राजा भी जंगल से बाहर निकलने के लिए इधर-उधर भटकता रहा।

अंत में राजा को सामने से भीलों का झुंड आता दिखाई दिया। वे पूजा की बलि के लिए एक आदमी की तलाश में निकले थे। राजा स्वयं ही उनकी गिरफ्त में आ गया था। पास आते ही भीलों ने चारों ओर से राजा को घेर लिया। उनके हाथों में तीर-कमान, भाले और तलवारनुमा घूमे हुए तेज धारवाले हथियार ये। सबका निशाना राजा था। भीलों ने राजा के हथियार छीन लिए और पकड़कर ले चले। कुछ देर चलकर एक खुले मैदान में पहुंचे। राजा ने देखा कि तमाम फूस और बांस-लकड़ियों की झोंपड़ियां बनी थीं। झोंपड़ियों के बीच में एक चौड़ा मैदान था। मैदान में चबूतरे पर वेदी बनी हुई थी। पूजा हो रही थी। मैदान आदिवासियों में भरा था। राजा को लेकर वे लोग सीधे वेदी के पास पहुंचे। वेदी के पास ही तेज धारवाला हथियार लिए एक भील बैठा था।

यह सब देखकर राजा समझ गया कि भील उसे बलि चढ़ाने के लिए वेदी पर लाए हैं। राजा कुछ कर भी नहीं सकता था, क्योंकि सशस्त्र भीलों से घिरा हुआ था। बलि देने के पहले भीलों ने राजा के हाथ-पैर आदि को ध्यान से देखा। राजा की एक उंगली कटी हुई थी। पुजारी ने कहा, यह व्यक्ति तो खंडित है, इसलिए यह बलि के लिए ठीक नहीं है। अतः भीलों ने राजा को घोड़ा और उसके हथियार देकर आजाद कर दिया और हाथ का इशारा करते हुए जाने के लिए कहा। राजा ने उनके बताए हुए रास्ते पर घोड़ा दौड़ा दिया। जंगल में करीब आधा-पौने घंटे चलने के बाद खेत और गांव नजर आए। रात के समय राजा अकेला महल में पहुंचा।

रातभर राजा को नींद नहीं आई। पूरी रात सेनापति का चेहरा उसके सामने आता रहा और उसके कहे गए शब्द सुनाई पड़ते रहे। वह सोचता रहा यदि मेरी उंगली कटी न होती, तो भील मेरी बलि चढ़ा देते। सुबह होते ही राजा बंदीगृह गया और सेनापति को गले लगाया और साथ लेकर आया।

राजा ने सेनापति से बातों-बातों में पूछ लिया कि जो बात तुमने मेरी उंगली कटते समय कही थी, वही बात बंदीगृह जाते समय भी कही थी। उंगली कटने से तो मेरी जान बच गई, लेकिन बंदीगृह जाने से तुम्हारा क्या भला हुआ? बंदीगृह जाकर कष्ट ही मिला। सेनापति बोला, “नहीं राजन्, युद्ध और शिकार में हमेशा मैं आपके साथ छाया की तरह साथ रहता आया हूं। यदि कल मैं आपके साथ होता, तो भीलों द्वारा में भी पकड़ा जाता और मेरी बलि चढ़ जाती, क्योंकि मैं कहीं से भी अंग-भंग नहीं था। इसलिए मुझे बंदीगृह में डालना अच्छा रहा।

राजा शर्मिंदा होते हुए बोला, तुम ठीक कहते हो, ‘ईश्वर जो कुछ करता है, अच्छा ही करता है’।

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