Hindi Essay, Moral Story “Ek se badhkar ek” “एक से बढ़कर एक” Story on Hindi Kahavat for Students of Class 9, 10 and 12.
एक से बढ़कर एक
Ek se badhkar ek
एक था सुनार और एक था अहीर। दोनों के चोरों और ठगों से संबंध थे। चोरी और लूट का सामान खरीदने और बिकवाने में इन दोनों का हाथ रहता था। कुछ दिनों बाद इन दोनों में मित्रता हो गई थी। कभी-कभार एक-दूसरे के यहां आते-जाते, तो मेहमानों जैसी खातिरदारी होती। चोरों का माल न आने से दोनों का काम ठप्प-सा हो गया था। फिर भी सुनार की दाल-रोटी का जुगाड़ होता रहता था।
एक दिन अहीर सुनार के नगर में आया। नगर में आया तो सुनार के घर भी गया। सुनार ने अहीर का आदर-सत्कार किया और शाम को सोने की थाली में भोजन कराया। अहीर खाना खाते समय स्वाद तो भूल गया, चमचमाती थाली को देखता रहा। अहीर की नजरें थाली पर गड़ी थीं और सुनार की नजरें अहीर के चेहरे पर।
सुनार ने सोचा कि अहीर है तो मित्र, फिर भी कहा जाता है कि चोर चोरी से जाए, हेरा-फेरी से न जाए, अहीर से बचके तो रहना ही पड़ेगा।
सुनार ने उसे रात को सामने वाले कमरे में लिटा दिया। अहीर थाली को हथियाने के तरीके सोचते-सोचत सो गया। सुनार ने सोते समय अपनी चारपाई पर छींका टांगा और उसमें थाली रख दी। उस थाली में एक लोटे की सहायता से ऊपर तक पानी भर दिया। उसके नीचे सुनार सो गया।
अहीर की रात को आंख खुली, तो उस थाली को तलाशने की सोचने लगा। उसकी नजर सीधी सुनार के ऊपर छींके पर रखी थाली पर पड़ी। वह आया और बड़ी सावधानी से थाली को हलके से छुआ और उचककर देखा-थाली पानी से लबालब है। थोड़ा-सा धक्का लगने से थाली का पानी छलककर सुनार के सीने पर गिरेगा।
अहीर के दिमाग में तुरंत एक बात आई। उसने चूल्हे की राख एक दूसरी थाली में भर ली। सुनार के कमरे में पहुंचकर वह छींके पर रखी थाली में राख डालता गया। राख थाली का सारा पानी सोख गई। उसने सावधानी से थाली उतारी और घर के बाहर निकल गया। थोड़ी दूर ही सामने एक गड्ढा था। अहीर ने थाली उसी गड्ढे में गाड़ी और आकर सो गया।
सुनार की आंख खुली, तो उसने ऊपर देखा-थाली गायब थी। वह उठा और दबे पांव अहीर की चारपाई के पास गया। उसने देखा कि अहीर के पैर गीले हैं। वह समझ गया कि अहीर थाली को सामने वाले गड्ढे में गाड़ आया है। सुनार गया और उसने गड्ढे की तली में टटोलना शुरू कर दिया। थाली मिल गई।
सुबह होते ही अहीर तैयार होकर घर जाने लगा। सुनार ने उससे एक दिन और रुकने के लिए कहा। अहीर रुक गया। अहीर को फिर उसी तरह की चमचमाती थाली में खाना दिया गया। अहीर ने उस थाली को ध्यान से देखा और पहचान गया। थाली के किनारे पर एक जगह निशान था। अहीर समझ गया कि सुनार वहां से थाली निकाल लाया है। सुनार भी उसकी नजरों से समझ गया कि इसने थाली पहचान ली है।
खाना खाते समय अहीर बोला, “मैं अपने को बहुत तीरंदाज मानता था, लेकिन तुम मेरे से भी चार कदम आगे निकले।” फिर काम-धंधे की बातें चलती रहीं। दोनों इस बात पर तैयार हो गए कि पैसे कमाने के लिए कहीं बाहर चलते हैं। दूसरे दिन दोनों चल दिए।
दोनों एक शहर में पहुंचकर घूमते रहे। घूमते-घूमते शहर के दूसरे छोर पर पहुंचे। वहां उन्हें सामने एक शवयात्रा आती नजर आई। दोनों पुण्य का काम समझकर उस शवयात्रा में शामिल हो गए। उन्हें पता चला कि यह शवयात्रा तो शहर के बहुत बड़े सेठ की है। दोनों इस शव से कुछ कमाने की सोचने लगे। सुनार बोला, “एक काम करते हैं।” अहीर बोला, ‘क्या?’
सुनार ने कहा, “थोड़ी देर में शव जलाने के बाद सेठ के लड़के घर जाएंगे। तुम इनके साथ जाकर घर देख लेना और फिर एक घंटे बाद जाकर सेठ के लड़कों से कहना कि सेठ को मैंने दस हजार रुपए रखने के लिए दिए थे। लेने आए हैं और वे मना करें, तो कहना कि मरघट पर चलकर सेठ जी से पूछ लो। यदि सेठजी हां में आवाज देते हैं, तो दे देना। इतना कहकर यहीं आ जाना। मैं तब तक एक सुरंग खोदना शुरू करता हूं।”
अहीर उनके साथ चला गया और एक घंटे बाद उनके लड़कों से उसी प्रकार बताकर दस हजार रुपए मांगे। उन्होंने खाते देखे। खाते में होते, तो मिलते। अहीर ने कहा, “कल आप फूल चुनने जाएंगे। वहीं सेठजी से पूछ लेना और उनकी आत्मा यदि कहती है, तो दे देना। नहीं तो मैं समझूँगा कि मेरे भाग्य में नहीं है। मैं सुबह आ जाऊंगा।” इतना कहकर वह चला आया और दोनों ने मिलकर रात में सुरंग खोद ली। फिर सुबह जाकर अहीर उनके साथ आ गया।
सेठ के लड़के तथा अहीर उसी जगह खड़े हो गए जहां सेठ का शव जलाया गया था। पहले उन्होंने सेठजी की जली हड़ियां इकट्ठी कर लीं। इसके बाद अहीर ने ऊंची आवाज में कहा, “सेठजी, मेरे दिए हुए, दस हजार रुपए आपके खातों में नहीं मिले। यदि आपको याद हो, तो हां कह दो और याद न हो तो मना कर दो।”
सुरंग से सुनार की आवाज आई, “यह दस हजार रुपए मेरे पास जमा कर गया था। इसके पैसे देने पर ही मेरी मुक्ति हो पाएगी, नहीं तो मैं नरक में पड़ा रहूंगा।” घर जाकर सेठ के लड़कों ने अहीर को दस हजार रुपए दे दिए। अहीर रुपयों की पोटली लेकर सीधा अपने घर चल दिया। सुनार भी जानता था कि वह सीधा घर जाएगा, इसलिए उसके जाते ही वह सुरंग से निकल आया और अहीर के घर को चल दिया। जब सुनार बाजार से निकल रहा था, तो उसने एक जोड़ी जूते बढ़िया वाले खरीदे और लेकर चल दिया। अब अहीर का घर करीब दो मील रह गया था। उसने वहीं रास्ते पर उसके आने का प्रतीक्षा की। दूर पर उसे अहीर आता दिखाई दिया। उसने एक जूता वहीं डाल दिया और आगे बढ़ गया। एक जूता उसने एक फलांग की दूरी पर डाल दिया। जूते डालकर वह एक पेड़ की आड़ में खड़ा हो गया।
जब अहीर पहले जूते के पास से निकला, तो उसका मन ललचाया, लेकिन एक जूता होने के कारण वह आगे बढ़ गया। आगे जाकर उसे उसी जूते के साथ का दूसरा जूता दिखाई दिया। उसका मन ललचाया। उसने इधर-उधर देखा, कोई दिखाई नहीं दिया। उसने पोटली वहीं रखी और तेज कदमों से पीछे वाला जूता लेने के लिए लौट गया। इधर सुनार ने रुपयों की पोटली सिर पर रखी और खेतों में छिपता-छिपाता गायब हो गया।
जब अहीर जूता लेकर वापस आया तो उसने देखा कि पोटली गायब है। उसने जूते वहीं फेंके और सुनार के घर को चल दिया।
सुनार ने घर आते ही अपनी पत्नी से कहा कि अहीर आता ही होगा। उससे कहना कि मैं अभी आया नहीं हूं। इतना समझाकर वह एक सूखे, गहरे व अंधेरे कुएं में छिप गया।
करीब एक घंटे बाद अहीर सुनार के घर आया। अहीर ने सुनार के आने के बारे में पूछा, तो उसकी पत्नी ने कहा, “वे तो तुम्हारे साथ ही गए थे। यहां तो आए नहीं। आप उन्हें कहां छोड़ आए हैं?”
अहीर समझ तो गया कि यह औरत भी खूब झूठ बोल रही है। उसने भी वहीं रुककर सुनार का पता लगाने की ठान ली। सुनारिन अब रोज अहीर को सुबह खाना खिलाती। फिर पानी भरने जाने के बहाने सुनार को कुएं में खाना पहुंचाती और दूसरे कुएं से पानी भरकर लाती।
एक दिन डोलची में कुछ रखते हुए अहीर ने देख लिया और उसे शक हो गया। सुनारिन जैसे ही पानी भरने घर से निकली, तो अहीर भी उसके पीछे-पीछे चला गया। उसने देखा कि सुनारिन ने डोलची कुएं में फांसकर आवाज लगाई, “रोटियां ले लो।” अहीर समझ गया कि सुनार इसी कुएं में छिपा है। अहीर वापस चला आया।
दूसरे दिन अहीर अपने कपड़ों के ऊपर सुनारिन के ही कपड़े पहनकर कुएं पर पहुंचा। डोलची में रोटियां रखकर कुएं में फांसी और सुनारिन की आवाज में कहा, “रोटियां ले लो।” फिर बोला, “अहीर ने तो घर में डेरा डाल रखा है। टलने का नाम ही नहीं लेता। मेरे पास पैसे खत्म हो गए हैं। कुछ पैसे दे दो।” सुनार ने कुएं में से कहा,” यहां मेरे पास क्या पैसे रखे हैं? पानी की घिनौची के नीचे रुपयों की पोटली गड़ी है। उसी में से निकाल लेना।”
इतना सुनते ही अहीर ने डोलची खींच ली। उसने लहंगा-फरिहा उतारकर डोलची में रखी और डोलची एक खेत में फेंककर तेजी से चल दिया। जैसे ही सुनारिन सुनार को खाना देने निकली, वह घर में घुस गया और घिनौची से रुपए निकालकर ले गया।
उधर सुनारिन ने डोलची फांसकर आवाज लगाई, “रोटियां ले लो।” तो सुनार ने कहा कि तू अभी तो रोटियां देकर गई है। तुरंत उसी क्षण उसके दिमाग में आया और बोला, “जल्दी निकाल कुएं से। अहीर सब रुपए लेकर चला गया होगा।”
दोनों घर पहुंचे, तो देखा कि पानी की घिनौची खुदी पड़ी है। उसमें एक रुपया भी नहीं निकला। सुनार बड़ा दुखी और उदास होकर बोला, “मैं अपने को ही सबसे अधिक होशियार समझता था, लेकिन दुनिया में ‘एक से बढ़कर एक‘ पड़े हैं।”