Hindi Essay, Moral Story “Bole so kundi khole” “बोले सो कुंडी खोले” Story on Hindi Kahavat for Students of Class 9, 10 and 12.
बोले सो कुंडी खोले
Bole so kundi khole
एक बार दो मंजिले मकान में कई किराएदार थे। मुख्य दरवाजा रात के लगभग ग्यारह बजे तक खुला रहता था। इस समय तक कुछ लोग जागते रहते और कुछ लोग सो जाते थे।
सर्दियों का समय था। जोर की सर्दी पड़ रही थी। रात के करीब डेढ़ बजे थे। हरभजन दरवाजे पर आवाज लगाने लगा। कुछ देर बाद जब दरवाजा नहीं खुला, तो कुंडी खटखटाने लगा।
दो परिवार नीचे रहते थे और तीन परिवार ऊपर। पांचों परिवार के लोग जाग गए थे, लेकिन कोई दरवाजा खोलने को तैयार नहीं था। कृष्णकांत नीचे रहता था। उससे अधिक देर तक खट-खट की आवाज सुनी नहीं गई। उसने लेटे-लेटे ही आवाज दी, “कौन है?”
हरभजन ने आवाज दी, “मैं हूं। दरवाजा खोल।” हरभजन का परिवार पहली मंजिल पर था। उसका लड़का और लड़के की बहू, दोनों जाग रहे थे। लड़के को बुरा लग रहा था कि मेरा बाप खड़ा-खड़ा चिल्ला रहा है।
वह किवाड़ खोलने के लिए जैसे ही उठा, उसकी औरत ने रोक लिया और कहा, “कहां जा रहे हो? कोई-न-कोई खोल ही देगा।” फिर वे दोनों बातें करने लगे।
पहली मंजिल पर दूसरा परिवार कायस्थ परिवार था। उसका भी पूरा परिवार जाग गया था। उसकी पत्नी ने कहा, “दरवाजा खोल आओ। कैसे जोर-जोर से कोई कुंडी बजा रहा है। मुन्ना जाग गया, तो उसे सुलाना मुश्किल हो जाएगा।”
“उसके परिवार वाले खोलेंगे। मैं क्यों खोलूं?” इतना कहकर कायस्थ लेट गया।
इसी मंजिल पर तीसरे कमरे में चार लड़के रहते थे। वे भी जाग रहे थे। उनमें से एक बोला, “इसके ऊपर पानी डालकर भिगोता हूँ।”
दूसरा बोला, “यार चुप-चाप सो जा। क्यों लड़ाई करवाना चाहता है? इसको चिल्लाने दो।”
तीसरा बोला, “कृष्णकांत ने आवाज लगाई थी। वही खोलेगा।”
अब वह कृष्णकांत का नाम ले-लेकर आवाजें लगाने लगा था। कृष्णकांत के बगल के कमरे में एक लाला रहता था। वह थका-हारा आया था और ऐसे सो रहा था, जैसे वह घोड़े बेचकर सो रहा हो।
जब देर तक वह कृष्णकांत का नाम लेकर आवाजें लगाता रहा, तो आस-पड़ोस के लोग भी जाग गए। पड़ोसियों ने भी कृष्णकांत का नाम लेकर आवाजें लगाना शुरू कर दिया। अब तो उसे उठना ही पड़ा।
अब कृष्णकांत सोचता रहा कि मैंने बेकार में आवाज लगा दी। उसके परिवार के लोगों में से कोई नहीं बोला। इस मकान में से कोई भी तो नहीं बोला। मुझे बोलने की क्या जरूरत थी? अब बाहर लोग मेरा नाम लेकर पुकार रहे हैं। मुझे ही उठना पड़ा। अब मैं कभी आवाज नहीं दूंगा। यह सोचते हुए कृष्णकांत ने कुंडी खोली। हरभजन अंदर आया और ऊपर चला गया।
कृष्णकांत कुंडी लगाकर बड़बड़ाता हुआ आया और बिस्तर पर लेटते हुए बोला, अच्छा जमाना आ गया-‘बोले सो कुंडी खोले।