Hindi Essay, Moral Story “Bicchu to Dank marta hi hai” “बिच्छू तो डंक मारता ही है” Story on Hindi Kahavat for Students of Class 9, 10 and 12.
बिच्छू तो डंक मारता ही है
Bicchu to Dank marta hi hai
फूलों की घाटी में एक गांव था। गांव के बाहर हरियाली और खेत थे। घाटी से उतरता हुआ एक पतला-सा झरना खेतों और मैदानों से होकर बह रहा था। दूर मैदान में चौपाए घास चर रहे थे। बहते पानी के पास चार-पांच लड़के खड़े थे और पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े पानी में फेंक रहे थे।
उधर ही एक साधु जा रहा था। बच्चों को पानी में पत्थर के टुकड़े फेंकते देखकर साधु ने पूछा, “बच्चो क्या है?”
“बाबा बिच्छू है। बहुत जहरीला। उसी को मार रहे हैं?” बच्चे बोले।
बच्चों को पत्थर मारने को मना करते हुए साधु उस ओर बढ़ा और पानी में बहते बिच्छू को निकालने लगा। साधु ने हाथों की अंजुली बनाकर पानी सहित बिच्छू को उठाया। पानी से थोड़ा ही ऊपर उठा पाया था कि बिच्छू ने डंक मार दिया। साधु का हाथ हिल गया और बिच्छू पानी में गिरकर फिर बहने लगा। साधु ने बिच्छू को फिर पकड़कर उठाया। पानी से थोड़ा ऊपर आते ही बिच्छू ने फिर डंक मार दिया। बिच्छू पानी में गिर गया और बहने लगा। साधु फिर हाथ झटककर रह गया। इस प्रकार साधु बार-बार को पकड़कर निकालता और वह बार-बार पानी में गिर जाता। अंत में साधु ने बिच्छू को निकालकर झाड़ी में फेंक दिया।
साधु को सब बच्चे भौंचक्के होकर देख रहे थे। एक बच्चे ने साधु से पूछा, “बाबा, बिच्छू आपको बार-बार डंक मारता रहा। आपके हाथ में दर्द होता रहा और आपने उसे बचाकर झाड़ी में फेंक दिया। उसे जान से मार देना चाहिए था।”
बच्चों की बात सुनकर साधु थोड़ा मुस्कराया, उसने अपनी झोली से बिच्छू का जहर उतारने की एक दवा निकाली और उसे हाथ पर मलता हुआ बोला, “बच्चो, ‘ बिच्छू तो डंक मारता ही है’। डंक मारना इसका स्वभाव है। मैं हूं एक साधु। मेरा धर्म है जान बचाना। जब यह एक छोटा जीव होकर अपने स्वभाव को नहीं छोड़ता, तो भला मैं मनुष्य होकर अपने धर्म को क्यों छोड़ दूं?”
इतना कहकर साधु आगे बढ़ गया।