Hindi Essay, Moral Story “Aap hare, Bahu ko mare” “आप हारे, बहू को मारे” Story on Hindi Kahavat for Students of Class 9, 10 and 12.
आप हारे, बहू को मारे
Aap hare, Bahu ko mare
एक दर्जी था। उसका काम खूब चलता था। घर में सभी आनंदपूर्वक रहते थे। उसकी मां थी, पत्नी थी और दो बच्चे थे। वह सीधा-सादा व्यक्ति था। सुबह उठना और नहा-धोकर दुकान पर जाना। शाम को दुकान बंद करके आना। भोजन करना और सो जाना। छुट्टी के दिन घर पर रहना या बाहर कहीं जाना होता तो जाता।
एक बार दीवाली पर उसका मित्र आया और उसे ले गया। वहां वह जुआ खेला। कुछ पैसे जीतकर आया। अब कभी-कभार वह जुआ खेलने लगा। कभी हारता, तो कभी जीतता। धीरे-धीरे जुआ खेलने में उसकी दिलचस्पी बढ़ती चली गई।
अब दुकान कभी खुलती, तो कभी बंद रहती। ग्राहक टूटते गए और दुकानदारी खराब होती चली गई। वह अपने मोहल्ले वालों के साथ नहीं खेलता था, इसलिए उसके जुए के बारे में पड़ोसियों को कम मालूम था।
जुए की वजह से घर में धीरे-धीरे कलह शुरू हो गई। अब वह घर में शराब पीकर भी आने लगा। हालत यह हो गई कि वह रोज जुआ खेलता, प्रतिदिन घर में कलह होती और औरत को पीटता।
वैसे तो उससे कोई कुछ नहीं कहता था। जब रोज-रोज की कलह और मार-पीट से पड़ोसियों को नींद खराब होने लगी, तो उन्होंने मजबूरी में पुलिस को सूचना दी। पुलिस आने पर घर वालों ने तो जान-बूझकर बातें छिपा लीं। उसकी पत्नी भी नहीं चाहती थी कि पुलिस वाले उसके पति को पकड़कर ले जाएं और कुछ करें। अंत में पड़ोसियों को बताना पड़ा कि यह रोज जुआ खेलकर आता है और रोज अपनी पत्नी को मारता है। रोजाना दो-तीन घंटे हम लोगों की नींद खराब करता है।
दरोगा ने सबकी बातें बड़े ध्यान से सुनीं। उसको ले जाते समय दरोगा बोला, अच्छा यह बात है-‘आप हारे, बहू को मारे।’