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Hindi Essay on “Television Shiksha me Sahayak ya Badhak”, “टेलीविज़न -शिक्षा में सहायक या बाधक” Complete Essay, Paragraph, Speech for Class 7, 8, 9, 10, 12 Students.

टेलीविज़नशिक्षा में सहायक या बाधक

Television Shiksha me Sahayak ya Badhak

 

आधुनिक युग विज्ञान का युग है। इस युग में टेलीविज़न (टी.वी.) विज्ञान की एक महत्वपूर्ण देन है। यह चल-चित्र का लघु-रूप है। दूरदर्शन द्वारा दूर-पास की घटनाओं का सीधा अवलोकन कर सकते हैं। दूरदर्शन में सिनेमा और रेडियो दोनों के गुण पाए जाते हैं। रेडियो की अपेक्षा दूरदर्शन मनोरंजन का सरल साधन है। रेडियो का सम्बन्ध केवल ध्वनि से है परन्तु दूरदर्शन ध्वनि और चित्र दोनों से जुड़ा है। टैलीविज़न अंग्रेज़ी भाषा का शब्द है। इसमें Tele शब्द ‘दूर’ के लिए तथा Vision ‘दृष्टि’ के लिए है अर्थात् दूर दर्शन या दृष्टि। हिन्दी में इसे दूरदर्शन कहते हैं । जो हमसे दूर है उसे प्रत्यक्ष में लाना दूर-दर्शन है। विश्व में घटने वाली हर घटना को हम अपने कमरे में बैठे-बैठ देख सकते हैं।

आधुनिक टेलीविज़न का जन्म इंग्लैंड के वैज्ञानिक जॉन. एल. बेयर्ड ने 1925 में किया। धीरे-धीरे अन्य वैज्ञानिकों के सहयोग से इसमें तकनीकी सुधार एवं परिवर्तन किए जाने लगे। 1951 में दिल्ली में प्रथम दूरदर्शन केंद्र स्थापित किए गया। 1965 में सार्वजनिक प्रसारण हुए लेकिन इसकी प्रसारण-क्षेत्र-सीमा बहुत

कम थी। 1975 में उपग्रह की सहायता से प्रसारण क्षेत्र में विस्तार हआ जो अन्य शहरों तक पहुंचा।टैलीविज़न का सम्बन्ध पहले मनोरंजन के साथ था, परन्तु अब यह शिक्षा के क्षेत्र में भी सहायक सिद्ध हो रहा है। ग्रामीण किसानों के लिए यह खेती-बाड़ी में सहायता कर रहा है। व्यापारियों, कलाकारों. अध्यापकों को अनेक विषयों की जानकारी देता है। कला-प्रेमियों को यह अनेक कलात्मक जानकारियां देता है। एक उपग्रह द्वारा 40% जनता को शिक्षित किया जा सकता है। इन्दिरा गांधी ओपन युनिवर्सिटी द्वारा जो शैक्षिक कार्यक्रम नैशनल चैनल पर प्रसारित होता है-विज्ञान, गणित तथा यू.जी.सी. परीक्षाओं के लिए बहुत लाभदायक है। पाश्चात्य देशों में भी दूरदर्शन द्वारा विभिन्न विषयों की शिक्षा दी जाती है। चिकित्सा के क्षेत्र में दूरदर्शन द्वारा विभिन्न विषयों की शिक्षा दी जाती है। चिकित्सा के क्षेत्र में दूरदर्शन का योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। दवाईयों का बनाना, उनके ‘साल्ट’, उन की मात्रा, उनके उपयोग, उनकी हानियों आदि का पूरा विवरण दिया जाता है। शल्य चिकित्सा क्षेत्र में दूरदर्शन पर बड़े-बड़े आप्रेशन दिखाये जाते हैं। मस्तिष्क, हृदय, गुर्दो का आप्रेशन भी सफलता से दिखाया जा चुका है।

कृषि के क्षेत्र में प्राप्त की जा रही सफलताओं को टी.वी. पर प्रदर्शित किया जाता है। किसानों को कषि की नई-नई मशीनों, औजारों से परिचित कराया जाता है। मौसम की जानकारी किसानों को पहले से दे दी जाती है, इसी के अनुसार किसान अपनी खेती की देखभाल करते हैं। फसल को कैसे कीड़ों से बचाना है, उत्पादन में कैसे वृद्धि करें आदि इन सब बातों का शिक्षण दूरदशन द्वारा दिया जाता है।

टी.वी. द्वारा राष्ट्रीय, सांस्कृतिक, भावात्मक एकता का प्रचार किया जाता। एक प्रदेश का नागरिक जब दूसरे प्रदेश के सांस्कृतिक कार्यक्रम देखता है तो उनके रहन-सहन, वेश-भूषा, खान-पान, आचार-विचार से प्रभावित होता है और उन्हें अपनाने की कोशिश करता है। इसलिए चेन्नई, गुजरात के पकवान पंजाब में लोकप्रिय हो रहे हैं और पंजाब के व्यंजन विदेशों तक जा पहुंचे हैं। राष्ट्रीय कार्यक्रमों के प्रसारणों जैसे 15 अगस्त, 26 जनवरी आदि समारोहों द्वारा राष्ट्रीय एवं भावात्मक एकता पैदा की जाती है।

टी.वी. मनोरंजन का महत्वपूर्ण साधन है। टी.वी. पर प्रसारित फिल्में, नाटक. कवि दरबार, लोक-गीत, नृत्य, कहानियां, भाषण, इन्टरव्यू, प्रश्नोत्तर प्रोग्राम मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान-वृद्धि भी करते हैं। ऐसे कार्यक्रमों द्वारा विद्यार्थियों में कलात्मक रुचियां जागती हैं। इनमें कुछ मौलिक रचनाएँ रचने की प्रवृत्ति पैदा होती है।

दूरदर्शन जहां शिक्षा में सहायक है, वहां इसके दोष भी हैं। इसका सर्वाधिक बुरा प्रभाव बच्चों तथा युवा वर्ग पर है। बच्चे स्कूल का कार्य करना छोड़ कर टी.वी. कार्यक्रमों को देखने में व्यस्त हो जाते हैं। इससे उनका शिक्षा का स्तर गिर रहा है। दूरदर्शन पर ऐसे कार्यक्रम प्रसारित होते हैं जिस में पाश्चात्य संस्कृति की झलक अधिक होती है। इससे उनका नैतिक स्तर भी गिर रहा है।

निरन्तर दूरदर्शन के कार्यक्रम देखने से बच्चों की आँखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उनकी नज़र कमजोर हो जाती है। टी.वी. का सबसे बड़ा दुष्परिणाम यह है कि बच्चों पर हर समय टी.वी. के कार्यक्रम अपना प्रभाव जमाए रखते हैं। वह पढ़ाई के विषयों को छोड़ कर उन्हीं की चर्चा करते हैं। उन्हीं की नकल में सारा दिन गंवा देते हैं। टी.वी. कार्यक्रमों की अत्यधिक भरमार के कारण विद्यार्थी इन्हीं में व्यस्त रहते हैं। इससे उनका आपस में सामाजिक मेल-जोल कम हो रहा है। टी.वी. में मारधाड़, लूट-मार, हत्याओं के दृश्य देख कर बच्चों की रूचि विकृत हो रही है।

कुछ भी हो इतना तो स्पष्ट है कि टी.वी. ने देश-विदेश की दूरियों को कम किया है। सारे देश को एक मंच पर लाकर बिठा दिया है, इससे मानव में जागति, चेतना आई है। मानव का दृष्टिकोण विशाल हुआ है। इसमें विश्व बन्धत्व तथा कल्याण की भावना जागी है। यह देन किसी भी तरह से कम नहीं है। अत: यदि इसके दोषों को अनदेखा कर दें तो उसके गुण बहुत अधिक हैं। हर वस्त के दो पक्ष होते हैं। हमें इसके उत्तम पक्ष की ओर ध्यान देना होगा तभी इससे अधिक लाभ उठा सकेंगे।

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