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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Naitik Shiksha ka Mulya”, “नैतिक शिक्षा का मूल्य” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.

नैतिक शिक्षा का मूल्य

Naitik Shiksha ka Mulya

                संसार के विभिन्न धर्मों के कर्मकांड या बाह्य विधिविधानों में भले ही भिन्नता हो, परंतु एक ऐसी बात है जिस पर सभी धर्म एक मत हैं नैतिक शिक्षा। सच बोलना, चोरी न करना, किसी की वस्तु पर बलात् अधिकार न करना, दुर्बलों को न सताना, बड़ों का आदर करना, मनुष्य-मात्र को ईश्वर की सन्तान समझना, प्राणिमात्र पर दया, न्याय भावना आदि बातें ऐसी हैं जिनका विरोध कोई भी धर्म-ग्रंथ नहीं करता। विश्व के सभी महापुरूषों के जीवन मंे उपर्युक्त गुणों की अधिकता देखने को मिलती है। धर्म प्रवत्र्तकों के जीवन की मुख्य घटनाएँ भी हमें नैतिकता की ही शिक्षा देती हैं। नैतिक शिक्षा व्यक्ति के संकुचित दृष्टिकोण को उदार बनाती है। वह कहती है- ‘जियो और जीने दो।’भारतीय विचारकांे ने उपनिषदों में यही मूलमंत्र मानव को दिया है- ‘वसुधैव-कुटुंबकम्’। गीता में कहा गया है- ‘‘विद्या विनय सम्पन्न ब्राह्मण में, गाय में, हाथी में, कुत्ते में और श्वमांस भेजी में समदर्शी व्यक्ति समान आत्मा के दर्शन करता है।’’ कुरान शरीफ में कहा गया है-‘‘अपने पड़ोसी से प्यार करो।’’ बाईबिल में कहा गया है- ‘‘दूसरों से वैसा ही व्यवहार करो, जैसा तुम उनसे चाहते हो।’’

                उपर्युक्त प्रकार की उक्तियाँ जीवन को संवारने में बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। यदि पाठ्यक्रम से इन बातों का सर्वथा बहिष्कार कर दिया जाए, तो छात्र भले ही ज्ञान-विज्ञान में कितनी प्रगति कर जाए, सामाजिक इकाई के रूप में उसका जीवन उन्नत नहीं कहा जा सकता।

                नैतिकता का अर्थ है मानवीय मूल्यों का सम्मान। जब तक मानवीय मूल्यों की अवहेलना की जाती रहेगी, तब तक समाज के अन्दर से हिंसा-वृत्ति का निराकरण नहीं हो सकता और हिंसा आखिर है क्या-अनैतिकता की ही पराकाष्ठा का नाम हिंसा है। अतएव यह नितान्त आवश्यक है कि विद्यालयों मंे शिक्षा के द्वारा नैतिक मूल्यों को छात्रों के मन में उभारा जाए। नैतिक शिक्षा के बिना स्वस्थ मानसिक विकास असम्भव है।

                जो राष्ट्र अपने को नैतिक गुणों से विमुख रखकर भौतिक साधनांे, चाहे वे कितने ही महत्त्वपूर्ण व बहुमूल्य हों, पर केन्द्रित करता है, वह आत्मरहित शरीर के समान है। अतएव इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि यह अत्यन्त वांछनीय है कि शैक्षणिक संस्थाओं में नैतिक एवं आध्यात्मिक गुणों के शिक्षण की व्यवस्था की जाए। यद्यपि यह कार्य अत्यन्त प्रयत्न साध्य है, तथापि यह असंभव नहीं है। यदि हम में इसके लिए तीव्र इच्छा विद्यमान हैं तो इसके मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को परास्त किया जा सकता है।

                वास्तव में हमारी संपूर्ण शैक्षणिक व्यवस्था नैतिक मूल्यों पर अभिस्थापित होनी चाहिए। कारण, आजकल सामाजिक जीवन में अनैतिकता की भयावह समस्या बन गई है। हमारी परम्परागत मान्यताओं का हृास हो रहा है और उनका स्थान लेने वाली नवीन मान्यताओं की स्थापना हम नहीं कर पाए। इसीलिए आज का विद्यार्थी-वर्ग अपने भीतर एक खोखलेपन का अनुभव करता है और लक्ष्य-भ्रष्ट हो जाता है।

                हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सबसे बड़ी न्यूनता यही है कि उसमें नैतिक शिक्षा का अभाव है। इस न्यूनता को हमंे दूर करना है। व्यक्तिगत चरित्र तथा राष्ट्रीय बल प्राप्त करने के लिए नैतिक शिक्षा प्रारंभिक शिक्षा स्तर से ही अनिवार्य होनी चाहिए क्योंकि बालक का कोमल और निर्मल हृदय गीली मिट्टी के समान होता है। उसे जिस सांचे में ढाला जाए, उसी साँचे में वह ढल जाता है।

                विद्यालयों में नैतिकता शिक्षण का उद्देश्य अन्य पाठ्यक्रमों के समान छात्रों का विषयज्ञान प्राप्त कराने या उपदेश देने मात्र से पूर्ण नहीं हो सकता। नैतिकता के व्यावहारिक पक्ष तथा राष्ट्रीय मूल्यों को जीवन में उतारना एक साधना है। इसके व्यावहारिक पक्ष की उपेक्षा होने पर यह शिक्षण तोता-रटंत ही रह जाता है। यह साधना तभी प्रभावशाली होगी, जब यह शिक्षा शिक्षक के जीवन में स्वतः अभिव्यक्त होगी। जब शिक्षक अपने जीवन में नैतिक गुणों को धारण करेंगे, तो उनका छात्रों पर भी प्रभाव पड़ना स्वाभाविक होगा।

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