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Hindi Essay on “Rail Yatra, रेल-यात्रा ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

रेल-यात्रा

Rail Yatra

3 Best Essay on “Rail Yatra”

निबंध नंबर :- 01

‘‘यात्रा’’ शब्द आते ही लोगों के मन में रेल-यात्रा का ही ख्याल आ जाता है। भारत जैसे राष्ट्र में जहां की आबादी 139 करोड़ को लांघ चुकी है वहाँ रेल यात्रा का अत्यन्त महत्व है। वैसे तो यात्रा हेतू लोग हवाई जहाज, बस, कारों और पानी जहाजों का भी प्रयोग करते हैं, परन्तु जो आनन्द रेल-यात्रा का है वो किसी और में कहाँ? रेल यात्रा अन्य यात्राओं से सस्ता और आरामदेह भी तो है!

रेल यात्रा का ख्याल मन में शंकाएँ और उत्साह दोनों उत्पन्न कर देता है। यदि आपने पहले से अपनी सीट आरक्षित कर ली है तो रेल-यात्रा का ख्याल और यात्रा खुशनुमा बन जाता है, लेकिन यदि सामान्य डिब्बों में लम्बी यात्रा की बात हो तो एकबारगी मन सिहर उठता है। मन में ये ख्याल आने लगते हैं कि पता नहीं बैठने के लिए सीट मिलेगी या नहीं? लोगों में सामान्य कोटि एवं डिब्बों से यात्रा करने के दौरान तय समय से पूर्व स्टेशन पहुँचने की आपाधापी रहती है। वे चाहते हैं कि पहले पहुँचकर सीट प्राप्त करने का प्रयास करें। जब हम स्टेशन जाते हैं तो ऐसे अनेक लोग मिल जाएंगे, जो सामान्य टिकट अथवा वेटिंग टिकटों को टिकट कलेक्टर द्वारा आरक्षित करने के प्रयास में लगे दिखाई देंगे।

खैर, जैसे-तैसे यदि यात्रा शुरू हो भी गई तो आरक्षित डिब्बों में हम आसानी से पूरे डिब्बे में चहलकदमी कर सकते हैं। आरक्षित डिब्बों का माहौल बहुत अच्छा रहता है। इसके विपरीत सामान्य श्रेणी के डिब्बों में लोग जैसे-तैसे सफर करने को मजबूर हो जाते हैं। चार आदमी के बैठने के सीट पर 6-7 आदमी मजबूरन बैठ जाते हैं। अवैध हॉकरो का शोर तो आम बात है। भिखारियों का आना, शीतल पेय बेचने वाले, खाद्य सामग्रियों को बेचने वालों के शोर से पूरा डिब्बा गुलजार रहता है। बीच-बीच में लोगों के चिल्लाने, बच्चों में रोने की बातें तो हर यात्रा में मिल जाएंगी । इन सब से अलग उच्च श्रेणी के डिब्बों में खाने-पीने का भी प्रबंध रहता है। लेकिन भारत जैसे विकासशील देषों मे ज्यादातर लोग सामान्य श्रेणी में ही सफर करने को मजबूर हैं। इसका एक अन्य कारण रेल भाड़ा अन्य श्रेणियों से कम होना भी है।

मुझे रेल यात्रा पसंद है, लेकिन स्लीपर क्लास की । इससे कम से कम सीट के लिए मारामारी का ख्याल तो मन में नहीं आता। जब मैं अपने परिवार के साथ सफर करता हूँ तो खिड़की में बैठकर खिड़की से बाहर के प्राकृतिक सौन्दर्य का आनंद लेते हुए जाना बहुत आनंदित कर देता है। साथ में यदि कुछ खाने का सामान हो तो क्या कहना, पूरी यात्रा यादगार बन जाती है। छोटी यात्राओं में मुझे पैसेंजर रेलगाड़ी में सफर करना पसंद है। अतः यह कहना अत्योशक्ति न होगा कि रेलयात्रा सर्वाधिक रोचक यात्राओं में गिनी जा सकती है।

निबंध नंबर :- 02

रेल यात्रा

Rail Yatra

आज कुछ लोग हवाई जहाज से सफर करते हैं। शेष लोग बस, कार और स्कूटर से सफर करते हैं। कभी-कभी बहुत से देशों का सफर लोग पानी के जहाज से भी करते हैं, लेकिन मुझे रेल द्वारा सफर करना पसन्द है।

एक बार मेरे चचेरे भाई की शादी होनी थी। मुझे ट्रेन द्वारा अमृतसर तक का सफर करने का मौका मिला। बम्बई से अमृतसर की दूरी बहुत ज्यादा है। असल में मैं हवाई जहाज द्वारा दिल्ली गया और बारात के साथ ट्रेन द्वारा अमृतसर जाने का इरादा करने से पहले लगभग पन्द्रह दिनों तक वहीं अपने भाई के पास रुका।

हम नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से रवाना हुए। हमारी सीट दूसरे दर्जे के एक डिब्बे में पहले से ही सुरक्षित थी। हम बाराती लगभग चालीस की संख्या में थे। मेरा चचेरा भाई, जिसका विवाह होना था, भी हमारे ही डिब्बे में था। हमारे साथ बहुत-सा सामान था। हमारे साथ औरतें व बच्चे भी थे।

ट्रेन सुबह आठ बजे रवाना हुई और जल्दी ही हम दिल्ली छोड़कर पानीपत स्टेशन पहुंच गए, जहाँ ट्रेन आठ मिनट के लिए रुकी। हमने चाय का आदेश दिया और हममें से सभी ने एक-एक प्याला चाय पी। तभी पता चला कि ट्रेन लेट हो गई है, लेकिन क्या लेट हुई, यह मैं नहीं जानता। पानीपत से लगभग आधा घण्टा प्रतीक्षा करने के बाद नौ बजकर पैंतालीस मिनट पर हम रवाना हुए।

मैं डिब्बे से बाहर के दश्य देखना चाहता था। इसलिये मैंने इस बार खिडकी के पास की सीट चुनी। मैंने देखा कि पेड़ तेज रफ्तार से दौड़ने वाली ट्रेन की ही तरह मानो उड़ रहे हों। दिखाई देने वाली हर चीज चलती नजर आ रही थी।

मैंने आकाश की ओर देखा। सूरत भी तेजी के साथ दौड़ रहा था। मैंने अपने पिताजी से पूछा कि ऐसा क्यों है? पिताजी ने बताया कि चूंकि ट्रेन दौड़ रही है और हम ट्रेन में बैठे हैं इसीलिए हर चीज दौड़ती हुई महसूस हो रही है। जबकि वास्तव में वे चीजें क्रियाशील नहीं हैं। बल्कि हमारी ट्रेन गति में है।

निष्कर्षतः मेरे लिए यह एक रोचक अनुभव था और मैं ट्रेन से बाहर के लोगों को तेज दौड़ते देख रहा था। लोग ही नहीं, गाड़ियां भी दौड़ रही थीं।

तत्पश्चात् हमारी ट्रेन करनाल और अम्बाला में रुकी। अम्बाला में हमने थोड़ा-सा नाश्ता किया। ट्रेन फिर फर्राटे भरने लगी। अम्बाला के प्लेटफार्म पर बहुत सारे सिख भी इधर से उधर दौड़-भाग करते दिखाई दिए। वे भी अमृतसर जाना चाहते थे। सभी ने उसी गाड़ी को पकड़ा और हमारे साथ वाले डिब्बे में आ जमे । उनमें से जो व्यक्ति मेरे डिब्बे में आया उससे पता करने पर मालूम हुआ कि वे लोग भी एक विवाह में शामिल होने जा रहे हैं।

मुझे बड़ा अचरज हुआ कि दो बारातें एक ही ट्रेन में कैसे सफर कर रही हैं। उनमें से दो सिख नौजवान गाने गा रहे थे और उनके गाने हमें अच्छी तरह सुनाई दे रहे थे। अतः बगल वाले डिब्बे में होने के बावजूद हमने उनके गानों का पूरा-पूरा आनन्द उठाया।

अन्त में शाम को साढ़े पांच बजे हमारी ट्रेन अमृतसर पहुची। हम सभी ट्रेन से उतरकर नीचे आए और अपनी मंजिल की ओर चल पड़े। पास ही एक मंदिर और एक धर्मशाला हमारे रहने के लिये तय किए गए थे। हम धर्मशाला में ठहरे।

यहां एक विशेष बात वर्णन योग्य है। गाड़ी बहुत तेज रफ्तार से आई थी और हम कुछ ही घण्टों में अपनी मंजिल पर पहुंच गए थे। अब हमें थोड़ी-थोड़ी भूख महसूस हुई, प्लेटफार्म पर हर वस्तु उपलब्ध थी और इनकी दरें भी बहुत कम थीं। मुझे इस यात्रा का पूरा आनन्द मिला। रास्ते भर मैं अपने भाई और दोस्तों के साथ गप्पें मारता रहा।

रेल की यात्रा में बसों जैसी भीड़ का सामना हमें नहीं करना पड़ा। बैठने के लिए आरामदायक जगह मिल गई। बीच-बीच में हम झपकियां भी लेते रहे मगर अपनी जगह पर पूरे आराम और सुरक्षा से पहुंच गए। हमें अमृतसर पहुंचने की बहुत खुशी थी, जहां से चार घण्टे बाद हमारी बारात को वापस लौटना था।

 

रेल यात्रा

Rail Yatra

निबंध नंबर :- 03

हमारे जीवन में सैर-सपाटों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यात्रा करने से हमारे जीवन की एकरसता दूर होती है। ज्ञान की वृद्धि होती है। नए स्थानों को देखने का मौका मिलता है। यात्रा करते समय हम नए-नए लोगों से मिलते हैं। वहाँ की सभ्यता और संस्कृति का परिचय प्राप्त करते हैं।

मैं रेल से यात्रा करना पसंद करता हूँ। अभी मैं गोंडा में पढ़ाई कर रहा हूँ। मेरे पिता जी दिल्ली में नौकरी करते हैं। दुमका के पास कोई रेल लाइन नहीं है, अतः हम लोगों को रेल द्वारा यात्रा का कम ही मौका मिल पाता है। मैंने कई बार पिता जी से निवेदन किया तो इस दुर्गा पूजा की छुट्टी में पिता जी अपने साथ दिल्ली ले गए।

हम लोग रात में खाना खाकर बस अड्डे गए और बस द्वारा एक बजे रात्रि में गोंडा रेलवे स्टेशन पहुँचे। रेलवे स्टेशन पर यात्रियों की बड़ी भीड़ थी। कहीं लोग ऊँध रहे थे तो कहीं पर लोग सो रहे थे। टिकट खिडकियों पर भी लंबी लाइनें लगी थीं। हम टिकट लेकर प्लेटफार्म पर गाड़ी आने की प्रतीक्षा करने लगे। तभी दूर तेज रोशनी का गोला दिखाई दिया। चारों ओर हो-हल्ला मचने लगा-गाड़ी आ रही है, गाड़ी आ गई।’ देखते ही देखते गाड़ी प्लेटफार्म पर आ गई। कुछ लोग उतरना चाहते थे, पर चढ़ने वालों ने उनका रास्ता बंद कर दिया था। किसी तरह हम लोग रेलगाड़ी में सवार हुए। गाड़ी में भी सामान बेचने वाले चिल्ला-चिल्लाकर सामान बेच रहे थे। कुछ देर बाद सीटी बजी, घूमकर देखा तो गार्ड हरी रोशनी दिखा रहा था। इंजन ने हॉर्न बजाया और गाड़ी आगे बढ़ने लगी।

चाँदनी रात थी। मैं खिड़की के सामने बैठा था। रेल की गति धीरे-धीरे बढ़ रही थी। यह गाड़ी द्रुतगामी थी। चुपचाप खड़े पेड़-पौधे तेजी से पीछे छूटते जा रहे थे। गाड़ी जिस स्टेशन पर रुकती वहीं हो-हल्ला, फेरीवालों की चीख-पुकार सुनाई देती। गाड़ी कानपुर में रुकी। यह एक बड़ा जंक्शन है। इसके बाद मुझे नींद आ गई और उस समय जगा जब पिता जी ने झकझोर कर जगाया। हम लोग दिल्ली पहुँच गए थे। कुली से सामान उठवाकर हम लोग स्टेशन से बाहर आए। वहाँ से हमने टैक्सी ली और घर की ओर चल पड़े। यह रेल यात्रा मुझे हमेशा याद रहेगी।

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