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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Bharat aur China Sambandh ”, ”भारत और चीन सम्बन्ध” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes

भारत और चीन सम्बन्ध

Bharat aur China Sambandh 

 

एशिया के दो महान् देश हैं भारत और चीन जिन्होंने मौजूदा राजनीतिक समीकरण की आवश्यकता को भलीभाँति समझ लिया है। ऐसा लगता है कि अब ये दोनों सकारात्मक दायित्व निभाने, एक ध्रुवीय शक्ति से संत्रस्त मानवता और राष्ट्रों को बचाने, एक नया राजनीतिक समीकरण तथा संतुलन बनाने की दिशा में अग्रसर भी हो उठे हैं।

भारत और चीन दोनों ही पराधीनता और राजतंत्र, सामन्तशाही आदि के अनन्त झलते रहने के बाद थोडा आगे-पीछे स्वतंत्र भी हए हैं। बुनियादी विचारधारा अथवा प्रणाली अलग-अलग होते हुए भी दुःखी, शोषित और पीड़ित मानवता के प्रति मूल अवधारणा में कोई बुनियादी अन्तर नहीं है। निकट अतीत में दोनों देश एक दूसरे के मित्र एवं सहायक भी रह चुके हैं। चीन जब जापान के साथ निरन्तर युद्धों निरत था, तब स्वयं स्वतंत्रता संघर्ष में लीन होने के कारण, कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत करते हुए भी भारत ने चीन के जन संघर्ष को बल देने के लिए चन्दा इकट्ठा कर चीन को न केवल आर्थिक, चिकित्सा सम्बन्धी सम्बल भी भेजा था। डॉ० कोटनिस का नाम विशेष रूप से स्मरण किया जा सकता है। चीन के जन-संघर्ष को नेतृत्व करने वाले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का भी निरन्तर समर्थन करते रहे। दोनों राष्ट्रों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी अपने पारस्परिक सम्बन्ध और नए संदर्भो में राजनीतिक समीकरण एक करने के प्रयास किए। पंचशील के सिद्धान्त आज भी उस सारे सम्बन्ध-प्रयासों का जीवन्त उदाहरण हैं। कभी ‘हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा भी इन दो देशों की सीमाओं को पार करते हुए विश्व के कोने-कोने तक पहुँचा था। विश्व ने उसे चकित भाव से सुना और सराहा भी था। परन्तु तभी सीमा का विवाद बीच में आ गया और प्रेम-भाई चारे आदि के समस्त सम्बन्धों, मीठे नारों को एक ओर रख कर चीनी सेना ने उत्तर-पूर्वी सीमांचल प्रदेश के सहस्रों वर्ग मीटर भू-भाग पर अपना अधिकार जमा लिया। फलतः दोनों राष्ट्रों के सम्बन्धों में एक गहरी खाई खुद गई। तब तक (सन् 1962 के चीनी-आक्रमण) भारत ने सेना और शस्त्रों की आवश्यकता कभी महसूस नहीं की थी। सो भारत को चीन का आभारी होना चाहिए कि उसने भारत को सेना और शस्त्रों की आवश्यकता का अहसास कराकर आज इतना सुदृढ बना दिया है कि वह अपने अकेले बल पर अमेरिका के सातवें बेडे (सन् 1971) तक को ललकारने का साहस कर सकता है। चीन भी पहले से कहीं अधिक बलिष्ठ एवं उन्नत हुआ है। अब यदि एशिया की ये दोनों महाशक्तियाँ अतीत के अपने मैत्री सम्बन्धों को ताजा कर लेती हैं, तो एक ध्रुवीय शक्ति और उसका उन्माद अपने आप को नियंत्रित व संतुलित करने को बाध्य हो जाएगा। विश्व में शक्ति संतुलन का एक नया धुव सामने आकर राजनीति की वर्तमान धारा को मोड़ देगा।

पच्चीस-छब्बीस वर्षों तक एक दूसरे से कटे रहने के बाद दोनों ओर से सम्बन्धों में नवजागरण लाने के प्रयास होने लगे हैं। फलतः सन् 1988 ई० में भारत के प्रधान मंत्री और सन 1992 में भारत के राष्ट्रपति की चीन यात्रा सम्भव हो सकी है। बेशक दोनों राष्ट्रों में सीमा विवाद आज भी विद्यमान है; पर उसे दर किनार रख दोनों देशों के राष्ट्रपतियों ने सन् 1962 से पहली वाली भावना ‘हिन्दी-चीनी भाई-भाई’ की भावना को पुनर्जीवित करने का समान आग्रह किया और उत्साह दिखाया। भारतीय राष्ट्रपति की चीन यात्रा केवल सद्भावना की न रह कर, नए राजनीतिक समीकरण का उभार बन गई जो निश्चय ही शक्ति राजनीति की दष्टि से एक ध्रवीय बन कर रह गई। दनिया का एकमात्र उचित उत्तर और एक नया दसरा ध्रव हो सकता है। आज भी इस बात में तनिक संदेह या मतभेद नहीं कि एशिया के ये दोनों महान् देश यदि सच्चे हृदय से, मानवीय हित में आपस में एक समझदारी विकसित कर लेते हैं. एक राजनीतिक धुरी और साझेदारी बना लेते हैं, तो विश्व राजनीति का रंग-ढंग तो परिवर्तित हो ही सकता है, तख्ता पलट भी हो सकता है। दोनों राष्ट्रों के पास अपार जन शक्ति है, उसे खपाने के लिए सुविस्तृत क्षेत्र है, अपार प्राकृतिक सम्पदा भी है। उस सब के बल पर दोनों राष्ट्र अपनी जनता का जीवन तो सुखी, समद्ध और सुरक्षित बना ही सकते है, न केवल एशिया अपितु अफ्रीका और यूरोप के त्रस्त छोटे देशों की उन्नति तथा सुरक्षा गारण्टी भी बन सकते है. इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

भारत के राष्ट्रपति की चीन यात्रा से जिस नई मैत्री भावना का आरम्भ हुआ है, उसे सास्कृतिक,  व्यापारिक, आर्थिक आदान-प्रदान के द्वारा विस्तृत एवं सुदृढ किया सकता है। दोनों के प्रभाव वाले और साथी अन्य देश भी इनके साथ सहयोग करके बहुत कुछ साझा कर सकते हैं। उस साझेपन के बल पर अपने को उन्नत-विकसित मान कर पालन करने को बाध्य करने वाले दादाओं को मुक्ति भाव से अंगठा दिखा सकते भारत-चीन के राजनीतिक समीकरण की धुरी पर चल कर अनेक प्रकार के प्रतिबन्धों समस्त राष्ट्र अपना साझा व्यापार क्षेत्र, कार्य क्षेत्र विकसित करके आदेश देने वालों की समकक्षता कर सकते हैं। वास्तव में भारत-चीन के सम्बन्धों में आने वाले इस नए मेर ने आस-पास और दूर दराज के छोटे राष्ट्रों के मन में कई प्रकार के डर भर दिए है। अब देखना यह है कि निकट भविष्य में भारत-चीन के राजनीतिक समीकरण का यह ऊँट किस करवट बैठता है?

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