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Hindi Essay on “Bharat ki Tatastha Niti” , ”भारत की तटस्थ नीति” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

भारत की तटस्थ नीति

Bharat ki Tatastha Niti

विश्व शान्ति के संदेशवाहक भारत ने अहिंसा के अमोघ अस्त्र के द्वारा मातृभूमि को विदेशियों के चंगुल से मुक्त कराया था। उसकी प्रबल इच्छा है कि विश्व के सभी बार की तरह मिल जुल कर रहें। उनमें पारस्परिक सहयोग, सद्भावना और संवेदना हो। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहे और हर एक क्षत्र में प्रगति करने का अवसर प्रदान करे।

हमारा देश भारत विश्व के राजनैतिक प्रांगण में तटस्थ खडा है जबकि आज उसी प्रांगण में बड़े-बड़े सशक्त राष्ट्र अभिनेता अपना-अपना खेल खेल रहे हैं। वे सामर्थ्य का ढोल पीटते हुए नहीं नहीं अघाते हैं। हमारे देश ने स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त यह निश्चय किया था कि यह विश्व की राजनीति में तटस्थ रहेगा और आज तक यह अपनी प्रतिमा को निभा रहा है। इसने विश्व की महान् शक्तियों के आगे सिर नहीं झुकाया है; पर उनसे मित्रता बनाए रखने की इच्छा अवश्य रही है। इसलिए इसके अमेरिका और सोवियत रूस से सदैव अच्छे सम्बन्ध रहे हैं। इतना ही नहीं, अन्य छोटे-छोटे राष्ट्रों के साथ भी यह सदभावना पार्ण मैती सम्बन्ध बनाए हुए है। यह सदैव सभी राष्ट्रों के हित में रहा है। वस्तुत: यह इसकी तटस्थ नीति का ही फल है। इसी कारण यह विश्व की अनेक विषम समस्या को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने में अपना सहयोग प्रदान करता रहा है। यह इसके उच्चादर्शी का ही फल है।

चार महान् राष्ट्रों की ओर से ‘शिखर सम्मेलन’ के रूप में विश्व शांति की दिशा में प्रयत्न किया गया था; किन्तु अमेरिका के अविवेक के कारण सोवियत रूस असंतुष्ट हो उठा और शिखर सम्मेलन विफल हो गया। फलतः तृतीय महायुद्ध की सम्भावनाएँ बलवती हो गईं। यह युद्ध सभी राष्ट्रों की प्रगति में बाधक बन सकता था। तभी लोकनायक पं० जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि महान् शक्तिशाली सभी राष्ट्रों को आपस में समझौता करना होगा। यों तो वर्तमान समय में विश्व का कोई राष्ट्र युद्ध से सहमत नहीं है, कोई भी राष्ट्र युद्ध नहीं चाहता है; किन्तु प्रत्येक राष्ट्र को इस की आशंका बनी रहती है कि कहीं दूसरे गुटवाला अचानक आक्रमण न कर दे। इस संदेह से शस्त्रों के निर्माण की स्पर्धा जारी रहती है। भारत ने निःशस्त्रीकरण की योजना का समर्थन किया है, किन्तु जब तक परस्पर युद्ध के भय की भावना का विश्व से अन्त नहीं होगा, तब तक निःशस्त्रीकरण की योजनाएँ कार्यान्वित न हो सकेंगी। इस से स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय नेता युद्ध के स्थान पर शांति के पक्षधर हैं। हमारी तटस्थ नीति किसी विशेष भय के कारण अथवा अपनी अकर्मण्यता के कारण नहीं है, बल्कि विश्व शांति और पारस्परिक सद्भावना स्थापित करने हेतु एक ठोस कदम है। आज हम अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में बापू के सिद्धान्तों का प्रयोग कर रहे हैं। हम केवल वाणी से ही शांति चाहते हों, ऐसी कोई बात नहीं है। हम इस विचारधारा पर अमल भी कर रहे हैं। इस पवित्र कार्य में हमें दूसरे राष्ट्रों का पूरा सहयोग मिल रहा है। फलतः हमने विश्व के सभी छोटे-बड़े राष्ट्रों को शांतिपूर्ण कार्य करने के लिए प्रेरित भी किया है।

यदि हम आज तटस्थ नीति को त्याग कर किसी विशेष गुट में सम्मिलित हो जाते। हैं, तो हमारी नीति परावलम्बी हो जाएगी और हमारे पग फिर परतंत्रता की ओर अग्रसर हो जाएँगे। परतंत्रता की पीड़ा हम कई शताब्दियों तक झेल चुके हैं। अब हम स्वतंत्रता को किसी कीमत पर खोने नहीं देंगे। हमारी तटस्थता की नीति का अनुसरण एशिया के अरब अफ्रीका आदि देश कर रहे हैं। इससे इसकी सफलता स्पष्ट हो जाती है। इस तटस्थता की नीति के कारण ही आज कोई भी राष्ट्र हम पर किसी प्रकार का दबाव नहीं दी हमारे देश में सामरिक अड्डे बना सकता है। हमारी तटस्थता व सार्वभौमिकता के लिए एक दृढ़ पदन्यास है। इसी के फलस्वरूप डाल सकता है और न ही की नीति हमारी स्वतंत्रता व सार्क से विश्व में सम्मान मिला है।

पाकिस्तान में हर्ड न में हुई क्रांति के परिणामस्वरूप बंगला देश के निर्माण और पाकिस्तान काम द्वारा किए गए नृशंस नरसंहार के कारण भारत में आए हुए एक करोड़ के लगभग शरणार्थियों की भयावह समस्या और अमेरिका से मिल कर पाकिस्तान का भारत पर आक्रमणकारी षड्यंत्र आदि पर दृष्टिपात करते हुए हमने अगस्त 1971 में यद्यपि सोवियत रूस के साथ बीस वर्ष के लिए संधि कर ली। तथापि इस संधि से हमारी तटस्थता की नीति पर प्रभाव नहीं पड़ता। इसके बाद भी भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व० राजीव गांधी निरपेक्ष राष्ट्रों के सम्मेलनों में भारत की तटस्थता और गुटों से पृथक रहने की नीति का समर्थन किया है। वर्तमान प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने भी तटस्थता और टनिरपेक्षता को ही भारत की विदेश नीति का प्रमुख आधार बनाया है। वर्तमान समय में हमारा देश भारत विश्व के तटस्थ देशों का मुखिया है। इसमें अपनी नीति पर चलते हुए विश्व के परतंत्र राष्ट्रों की स्वाधीनता का जोरदार समर्थन किया है और सुरक्षा व शांति की दिशा में सदैव विश्व का मार्ग प्रशस्त करता रहेगा।

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