Hindi Essay, Paragraph on “फूल की आत्मकथा”, “Phool ki Atamakatha” 350 words Complete Essay for Students of Class 9, 10 and 12 Exam.
फूल की आत्मकथा
Phool ki Atamakatha
सुख-दुख में समान जीवन
प्रकृति की शोभा और सुंदरता का अंग
जीवन का अंत।
मैं फल हूँ। आकाश के नीचे मेरा आवास है। ग्रीष्म, वर्षा, शीत को सहन करने का मुझे अभ्यास है। मैं वायु के मंद-मंद झोकों से नाचता हूँ, परंतु प्रचंड पवन के झोंको को भी हँसते-हँसते सहन करता हूँ। दूसरों को अपने रूप सौंदर्य, गंध तथा कोमलता द्वारा प्रसन्न करना ही मेरा काम है। मेरे चारों ओर काँटे रहते हैं। वे मेरी रक्षा करते हैं किंतु वायु के झोंके आने पर कई बार वे मुझे चुभते भी हैं, परंतु मैं फिर भी ‘आह’ नहीं करता। मुझे तोड़ने के लिए जिसका हाथ बढ़ता है, मैं उस पर रुष्ट नहीं होता, बल्कि माला में पिरोया जाने पर उसके गले का हार बनता है। मैं अपने मित्रों में रहकर बहुत प्रसन्न होता हूँ। कोमलता के लिए कविगण सदा मुझे ही उपमान बनाते हैं। मैं सुख का प्रतीक हूँ। आज से दो दिन पहले मैं कली के रूप में पौधे पर इतरा रहा था। वहाँ मेरे और भी कई भाई-बहन प्रसन्नता से झूम रहे थे। इतने में प्राचीन दिशा में अरुणोदय हुआ। शीतल, मंद समीर का एक झोंका आया। उसके मादक स्पर्श ने मुझे गुदगुदा दिया। मैंने आँखें खोली। मेरा अंग-अंग पंखुड़ियों के रूप में खिल गया। मैंने अर्धविकसित फूल का रूप धारण कर लिया। मध्याहन का सूर्य गगन में चमक रहा था। उसकी प्यारी किरणों ने मुझे खुब हँसाया। अब मैं पूर्ण रूप से विकसित हो चुका था। जो भी स्त्री-पुरुष उद्यान में आते, वे मेरी ओर आकृष्ट हो जाते थे। वे मेरे रूप पर मुग्ध होकर एकटक मेरी ओर देखते रहते थे। मुझ पर यौवन का नशा छा गया। मधुमक्खियाँ आयीं। मैंने उदारतापूर्वक अपने मधुर मकरंद से उनका सत्कार किया। एक दिन एक सुंदरी आई। उसने आँखों-ही-आँखों में मेरे रूप की सराहना की। सचमुच, उस समय में हर्ष से रोमांचित हो गया। इतने में माली आया। उस निर्दय ने मुझे डाली से तोड़ लिया। प्रसन्नता इस बात की है कि उसने मुझे पूजा के बाद ईश्वर के चरणों में समर्पित कर दिया। मैं धन्य हो गया। यही मेरा इतिवृत्त है।