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Hindi Essay on “Vartman Bharat me Gandhi ki Aprasangikta” , ”वर्तमान भारत में गान्धी की अप्रासंगिकता” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

वर्तमान भारत में गान्धी की अप्रासंगिकता

Vartman Bharat me Gandhi ki Aprasangikta 

गान्धी! महात्मा गान्धी! जी हाँ, मोहन दास कर्मचन्द गान्धी, जिन का नाम सत्तारूढ़ दल द्वारा अक्सर बार-बार, भूले-बिसरे रूप में अक्सर अन्य दलों द्वारा भी कभी-कभार लिया जाता है, सोचने की बात है कि आखिर आज उनकी प्रासंगिकता क्या रह गई है? अपने खून-पसीने से सींच कर खड़ी की गई उन्हीं की संस्था राष्ट्रीय कांग्रेस ने उन का नाम और नीतियाँ आज इतनी छीछलेदार कर दी हैं कि यह सोच कर एक वेदना से आहत हुए बिना नहीं रहा जाता कि यह सब देख-सुन कर उनकी आत्मा कितनी दुःखी एव पीड़ित होती होगी। एक दल-निरपेक्ष, राजनीति-निरपेक्ष गान्धी के नाम और काम सपरिचित व्यक्ति यह सोच कर स्वयं भी दुःखी एवं पीड़ित हो उठता है।

गान्धी नाम है एक महत मानवीय एवं राष्टीय निष्ठा का आम जन के जीवन को 3 एव समृद्ध बनाने-देखने की इच्छक आस्था का, सहज मानवीय चेतना और पीड़ा । गान्धी नाम है अपना सर्वस्व समर्पण करके भी दुःखी-पीड़ित मानवता के हित-साधन गान्धी नाम है सत्य, अहिंसा, प्रेम, भाईचारे, सच्चरित्रता और उन्नततम स्वतंत्र-स्वच्छन्द यता का। गान्धी नाम है किसी भी सहृदय, सच्चरित्र एवं धरती-समान विस्तृत-व्यापक हृदय वाली माता के सपने का उसकी कोख की पवित्रता और सफलता का। गान्धी नाम है उन उच्चतर से उच्चतम मानवीय मूल्यों एवं मानों का जो शताब्दियों बाद ही पूरे भी हुआ करते है। गान्धी को लेकर यहाँ तो और जितनी बातें भी कहीं गई हैं, आश्चर्यपूर्वक और विनम्रता से करना पड़ता है कि वे एक स्वपनद्रष्टा महामानव के जीवन का यथार्थ हैं; उनमें से क्या एक भी बात उनका नाम लेकर राजनीति करने वालों, अपना हलुवा-माण्डा सीधा करने वालों के चरित्र, व्यक्तित्व एवं व्यवहार में, उनकी शासन करने की रीति-नीति और कुर्सी से चिपकी तथा आकण्ठ भ्रष्टाचार में निमग्न मानसिकता में। यदि नहीं रह गई है और वास्तव में नहीं ही रह गई है, तो फिर क्या प्रासंगिकता है उसका नाम लेने की? क्या आवश्यकता है अपने स्वार्थ-पीडित कार्यों की अपवित्रता के बीच इस पवित्र एवं पुण्य श्लोक के नाम को घसीटने की? निश्चय ही कोई आवश्यकता नहीं, कोई प्रासंगिकता नहीं।

स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि उसे अप्रासंगिक बनाने वाले आखिर कौन लोग हैं? उन लोगों का अपना व्यक्तित्व, चरित्र और इतिहास क्या है कि जो अपने छल-छन्दों में उसे बार-बार घसीट कर और भी अप्रासंगिक बना देना चाहते हैं? कांग्रेस और उसके नेतागण ही न- न, तथाकथित नेतागण ही न । पर गान्धी ने तो स्वर्गारोहण से पहले कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता तक से त्यागपत्र दे दिया था। देश को स्वतंत्र करा लेने के बाद उसने तो तत्कालीन कांग्रेसियों को भी स्पष्ट परामर्श दिया था कि अपने त्याग और बलिदान से, सत्य, अहिंसा और प्रेम के मार्ग पर चल कर जिस राष्ट्रीय कांग्रेस ने देश को स्वतंत्र कराया है; इसे अब समाप्त कर दो। अपने कारनामों से, भ्रष्टाचारों से उसे दूषित एवं अपवित्र करके उसके पवित्र इतिहास को दूषित करने के लिए और जीवित मत रखो। तुम लोगों ने शासन ही करना है न, कुर्सियों से ही चिपकना है न, अपने निहित स्वार्थों को पूरा करना है, तो उन सब के लिए एक नया दल बना लो- शासक दल, हमेशा कुर्सियाँ या रहने की इच्छा से आक्रान्त दल। पर नहीं, गान्धी की इच्छा का पालन नहीं किया गया। कांग्रेस को एक शासन दल के रूप में बना रहने दिया गया ताकि वह अपने उच्चतम अमानवीय, लूट और ठगी भरे कामों से गान्धी के नाम को बदनाम कर निरन्तर अप्रासंगिक बनाती जाए।

जन-सेवा के नाम पर मोटी तनख्वाहें लेना, बड़े-बड़े भत्ते बनाना, भूतपूर्व होने वाले नेताओं और सांसदों के लिए मोटी-मोटी पैंशनें लगवाना, संसदों और विधान सभाओं में सारा-सारा दिन शोर मचाते रह-रहक बड़ी-बड़ी सुविधाएँ और भत्ते सीधे करते रहनाक्या यही गान्धीवाद और उसकी प्रासंगिकता है। परमिट राज और अफसरशाही चलाना, जनता को न्यूनतम सुविधा और कार्य के लिए भी दर-दर भटकाना, रिश्वत और भाई-भतीजावाद का सहारा लेकर मात्र निहित स्वार्थियों को ही लाभ पहुँचाने की हर चन्द चेष्टा करना, लूट-खसौट, बड़े-बड़े बफोर्स, प्रतिभूति और बैंक घोटाले करते जाना, भ्रष्टाचारियों को न्याय के सिंहासन पर बैठा कर हर संभव तरीके से इसे बचाना- क्या गान्धी के रामराज्य का यही आदर्श है, यही गान्धीवाद की प्रासंगिकता है? राजनेता, सांसद, मंत्री तथा अन्य उच्चाधिकारी बड़ी-बड़ी सुविधाएँ बटोर सुविधाओं भरा जीवन जिएँ, नहीं, यह गान्धी और उनकी विचारधारा की प्रासंगिकता कतई नहीं है। उसे तो उस आचार्य चाणक्य के व्यवहार में देखा-खोजा जा सकता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य को मगध राक्षस को उसका महामत्री बनाकर जो स्वयं कुटिया में रहने चला गया था।

हमें गर्व है कि हम गान्धी के देश में पैदा हुए हैं। हमें धिक्कार है कि अपने आचरण-व्यवहार  से हम उस महान् और पवित्र नाम की सार्थक प्रासंगिकता खोते जा रहे हैं। सब प्रकार के स्वार्थो से भरकर और आचरण से भ्रष्ट होकर भी हम गान्धी का लेते हैं, हमें लानत है। हमारे लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने की बात है। गान्धी और उनका नाम यों कभी मरने और मिटने वाला नहीं, यदि उसके मरने-मिटने का खतरा तो हम से- जो उसे अपना कहने वाले हैं। हाँ, हमारे भ्रष्ट आचरण से ही. अन्य किसी से नहीं।

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