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Hindi Essay on “Bharat me Harit Kranti” , ”भारत में हरित क्रान्ति” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

भारत में हरित क्रान्ति

Bharat me Harit Kranti

 

कषि प्रधान देश भारत में खाद्य समस्या के अनेक कारण रहे हैं। इसकी राष्टीय आय का पचास प्रतिशत भाग कृषि पर आधारित है। स्वतंत्र भारत में उसकी प्रगति के लिए पंचवर्षीय योजनाएँ प्रारम्भ की गईं। उन पंचवर्षीय योजनाओं की पूर्ति के लिए विदेशों से कुछ लेना पड़ा और कुछ देना भी पड़ा। कृषि से हमें खाद्यानों की प्राप्ति हेतु अन्य उद्योगों के कच्चे माल का भी उत्पादन बढ़ाना पड़ा। कच्चा माल विदेशों को भेजा गया और उसके बदले में अन्य वस्तुएँ प्राप्त की। फलतः खाद्यानों के उत्पादन में कमी आने लगी। उत्पादन बढ़ाने के प्रयास किए गए। कुछ सफलता मिली।

विशाल संख्या वाले देश में प्रतिवर्ष दो प्रतिशत की वृद्धि भी वर्तमान खाद्य संकट का दूसरा मुख्य कारण है। धरा वही, उत्पादन वही; पर खाने वालों की संख्या प्रति वर्ष । बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में खाद्यान्न की पूर्ति के लिए हमें विदेशों से सहायता लेनी पड़ती है। खाद्यान्न संकट का तीसरा कारण हमारे देश पर दैवी प्रकोप है। कोई वर्ष ऐसा नहीं जाता जबकि हरी भरी लाखों एकड़ फसल बाढ़ का ग्रास न बन जाती हो। यदि एक प्रान्त में बाढ़ है, तो दूसरा सूखे से प्रभावित है। कहीं वर्षा है, तो कहीं ओले और कहीं फसल को नष्ट करने वाले कीटाणुओं की भरमार । इस प्रकार प्रकृति भी हमारे लिए खाद्यान्न का संकट बनी हुई है। अगस्त 1982 की बाढों ने बिहार और उत्तर प्रदेश के पचासों गाँव उजाड़ दिए तथा लाखों एकड़ भूमि की फसलों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया।

खाद्यान्न संकट का प्रमुख कारण भारतीयों का नैतिक पतन और उनमें राष्ट्रीयता का अभाव है। इन में व्यक्तिगत सुख व महत्त्वाकांक्षाओं का प्राधान्य है। इनमें सामाजिक लाभ व राष्ट्र हित की भावना का नितान्त अभाव है। फलतः मार्केट में कोई भी वस्तु उचित मूल्य पर प्राप्त नहीं हो सकती । वर्तमान खाद्य स्थिति की इस गम्भीरता का दायित्व मुनाफाखोर व काला बाजार में माल बेचने वाले वर्ग पर जाता है। देश में अन्न का अभाव कर देना, अकाल की स्थिति बना देना, भावों को चढ़ा देना आदि इनके बायें हाथ का खेल है।

भारत सरकार ने खाद्यान्न संकट को दूर करने और ऐसे भ्रष्ट लोगों से देश की। जनता को बचाने के लिए उत्पादन बढ़ाने के प्रयास किए हैं। सिंचाई के लिए नहरें, नलकूपो की व्यवस्था की है। कृषकों को रासायनिक खाद दी है। सरकारी भण्डारों से अच्छे बीज देने की व्यवस्था की गई है। बैंकों से ऋण दिलाया गया है ताकि वे कृषि के लिए नए-नए उपकरण ले सकें। इसके साथ ही जनसंख्या को रोकने के लिए भी प्रत्येक प्रान्त नगर जन केन्द्र खोले गए हैं जहाँ पर आत्म-संयम व कृत्रिम साधनों के प्रयोग जाती है। कीटनाशक औषधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। अन्न संग्रह के लिए सरकार के लिए सरकार की और से खाद्य निगम की स्थापना की गई है।

आज से लगभग तीन दशक पूर्व स्व० जगजीवन राम ने कृषि के क्षेत्र में हरित क्रान्ति आज बजा दिया था। इस में आशातीत सफलता मिली। पंजाब, हरियाणा और उततर प्रदेश के गोदामों में गेहूँ रखने के लिए स्थान नहीं रहा । फलतः गेहूँ बाजार में आधे आधे दामों बिकने लग गया। इस हरित क्रान्ति से देश हरा भरा हो गया। इसका श्रेय कृषि वैज्ञानिक उपकरणों, रासायनिक खादों, उत्तम बीजों, कृषक के प्रशिक्षण और उसके श्रम को जाता है। इस से देश को अन्न के क्षेत्र में आत्म-निर्भर बनाने के लिए एक सफल दिशा मिली है। स्व० श्रीमती इंदिरा गांधी ने मार्च 1973 में अन्न के थोक व्यापार का राष्ट्रीयकरण कर दिया। सन् 1980 के बाद से इनके अथक प्रयास से हरित क्रांति के क्षेत्र में आशा की स्वर्णिम रश्मियाँ प्रस्फुटित हुईं। तत्पश्चात् 88 में स्व० राजीव गांधी की उत्प्रेरक उदघोषणा और सरकार द्वारा कृषकों को सस्ता और अच्छी खाद, बीज और आधुनिक कृषि उपकरणों आदि देने से देश में निर्धारित लक्ष्य से भी अधिक उत्पादन बढ़ा है। तब से आज तक उत्पादन में किसी प्रकार की गिरावट नहीं आने दी है। इस से देश का स्वाभिमान भी बढ़ा है।

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