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Harigatika Chhand Ki Paribhasha aur Udahran | हरिगीतिका छन्द की परिभाषाऔर उदाहरण

हरिगीतिका छन्द

Harigatika Chhand

यह सम मात्रिक छन्द है, जिसके चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में अट्ठाइस मात्राएँ होती हैं। सोलह और बारह मात्राओं पर यति तथा अंत में लघु गुरु का प्रयोग होता है।

श्रीकृष्ण के सुन वचन अर्जुन, क्रोध से जलने लगे।

सब शोक अपना भूलकर कर, तल युगल मलने लगे।

संसार देखे अब हमारे, शत्रु रण में मृत पड़े।

करते हुए यह घोषणा वे, हो गये उठकर खड़े।।

 

संसार की समरस्थली में, वीरता धारण करो ।

चलते हुए निज इष्ट पथ पर, संकटों से मत डरो।।

जीते हुए भी मृतक सम रह, कर न केवल दिन भरो।

वर वीर बनकर, आप अपनी, विघ्न बाधाएँ हरो ।।

 

अर्धसम मात्रिक छंद –

दोहा

दोहा मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रथम और तृतीय चरण में 13-13 और द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। अंत में गुरु-लघु (SI) होते हैं। जैसे-

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।

IIII                 SS      SIS       ।।    ऽऽ   ।।      ऽ।

पानी गये न ऊबरै, मोती मानस चून।।

SS       IS     I       SIS   SS       S II       SI

मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरि सोइ।

जा तन की झाई परै, श्याम हरित दुति होइ ।।

भूमि जीव संकुल रहे, गये सरद रितु पाइ।

सदगुरु मिले जाहि जिमि, संसय भ्रम समुदाइ।।

सोरठा

यह एक मात्रिक छंद है। इसके पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। पहला और तीसरा चरण तुकांत होता है। यह दोहे का उल्टा है। जैसे –

देख्यो रूप अपार, मोहन सुंदर श्याम कौ।

SS      SI      ISI      ऽ।।     SII           SI     S

वह ब्रज राजकुमार, हिय जिय नैननि में बस्यौ ।।

मूक होइ वाचाल, पंगु चढ़इ गिरिवर गहन।

जासु कृपा सुदयालु, द्रवहु सकल कलिमल दहन।।

बंदहु गुरु पद कंज, कृपा सिंधु नर-रूप हरि।

महा मोह तमपुंज, जासु वचन रविकर निकर।।

उल्लाला

यह अर्द्ध सम मात्रिक छन्द है। इसके पहले और तीसरे चरण में पंद्रह- पंद्रह मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में तेरह-तेरह मात्राएँ होती हैं।

करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की।

हे मातृभूमि, तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की।

सब भाँति सुशासित हो जहाँ, समता के सुखकर नियम।

बस यही स्वशासित देश में, जागें हे जगदीश हम।

विषम मात्रिक छंद –

कुंडलिया

यह विषम मात्रिक छंद है। इसके प्रथम चार चरण दोहे की मात्राओं वाले होते हैं अर्थात् कुंडलिया के पहले और तीसरे चरण में 13-13 मात्राएँ व दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। पाँचवें सातवें चरण में 11-11 मात्राएँ व छठवें आठवें चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। इसी तरह अंतिम दो पंक्तियाँ होती हैं। पहला शब्द पुनः अंत में प्रयुक्त किया जाता है। जैसे-

पानी बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम।

दोनों हाथ उलीचिये, यही सयानो काम।।

यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।

पर स्वारथ के काज, शीश आगे धरि दीजै।।

कह गिरधर कविराय, बड़ेन की याही बानी।

चलिये चाल सुचाल, राखिये अपनो पानी।।

 

रम्भा झूमत हौ कहा, थोरे ही दिन हेत।

तुमसे केते है गये, अरुह्वै हैं यहि खेत।।

अरु हैं यहि खेत, मूल लघु साखा हीने।

ताहू पै गज रहै दीठि, तुम पे नित दीने।।

खरनै दीन दयाल, हमैं लखि होत अचम्भा।

एक जनम के लागि, कहा झुकी झूमत रम्भा।।

छप्पय

यह विषम मात्रिक छंद है, जिसमें छः चरण होते हैं। इसके आदि में एक ‘रोला’ छंद और अंतिम दो चरणों में ‘उल्लाला’ छंद रहता है।

रोला छंद के प्रत्येक चरण में 11 और 13 के विराम से 24 मात्रायें होती हैं और उल्लाला छंद के पहले और तीसरे चरणों में 15 मात्रायें तथा दूसरे और चौथे चरणों में 13 मात्रायें होती हैं।

नीलांबर परिधान, हरित पट पर सुंदर है,

सूर्य-चंद्र युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर है।

नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मण्डप हैं,

बंदीजन खग-वृंद, शेष फन सिंहासन है।

करते अभिषेक पयोद, बलिहारी इस देश की,

हे मातृभूमि! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की

निर्मल तेरा नीर अमृत के सम उत्तम है,

शीतल मंद सुगंध पवन हर लेता श्रम है।

षट्-ऋतुओं का विविध दृश्ययुत अद्भुत क्रम है,

हरियाली का फर्श नहीं मखमल से कम है।

शुचि सुधा सींचता रात में, तुझ पर चंद्र प्रकाश,

हे मातृभूमि, दिन में तरणि करता तम का नाश।

सर्वभूतहित महामंत्र का सबल प्रचारक

सदय हृदय से एक-एक जन का उपकारक।।

सत्यभाव से विश्व-बंधुता का अनुरागी।

सकल सिद्धि सर्वस्व सर्वगत सच्चा त्यागी।।

उसकी विचारधारा धरा के धर्मो में है वही।

सब सार्वभौम सिद्धांत का आदि प्रर्वतक है वही।।

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