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Hindi Essay on “Loktantra me Chunav Ka Mahatav”, “Chunav” , ”लोकतंत्र में चुनाव का महत्व”, “चुनाव” Complete Hindi Essay for Class 9, Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

लोकतंत्र में चुनाव का महत्व

Loktantra me Chunav Ka Mahatav

या 

चुनाव

Chunav

निबंध नंबर :01 

संसार में अनेक प्रकार की शासन-व्यवस्थांए प्रचलित हैं। उनमें से लोकतंत्र या जनतंत्र एक ऐसी शासन-व्यवस्था का नाम है, जिसमें जनता के हित के लिए, जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि ही सारी व्यवस्था का संचालन किया करते हैं। इसी कारण जिन देशों में इस प्रकार की सरकारों की व्यवस्था है, राजनीतिक शब्दावली में उन्हें लोक-कल्याणकारी राज्य और सरकार कहा जाता है। यदि लोक या जनता द्वारा निर्वाचित सरकार लोक-कल्याण के कार्य नहीं करती, तो उसे अधिक से अधिक पांच वर्षों के बाद बदला भी जा सकता है। पांच वर्षों में एक बार चुनाव कराना लोकतंत्र की पहली और आवश्यक शर्त है। चुनाव में प्रत्येक बालिग अपनी इच्छानुसार अपने मत (वोट) का प्रयोग करके  इच्छित व्यक्ति को जिता और अनिच्छित को पराजित करके सत्ता से हटा सकता है। इस प्रकार लोकतंत्र में मतदान और चुनाव का अधिकार होने के कारण प्रत्येक नागरिक परोक्ष रूप से सत्ता और शासन के संचालन में भागीदारी भी निभाया करता है। इन्हीं तथ्यों के आलोक में ‘लोकतंत्र में चुनाव का महत्व’ रेखांकित किया जाता और जा सकता है। यहां भी इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर विवेचन किया गया है।

लोकतंत्र में अब प्राय: सारी राजनीतिक गतिविधियों वोटों के गणित पर ही आधारित होकर संचालित होने लगी है। लोक-हित की बात पीछे छूट गई है। अब अक्सर चतुर-चालाक राजनीतिज्ञ जनता का मत चुनाव के अवसर पर पाने के लिए अने प्रकार के सब्जबाग दिखाया करते हैं। जनता को तरह-तरह के आश्वासन और झांसे भी दिया करते हैं। अब यह मतदाता पर निर्भर करता है कि वह उनके सफेद झांसे में आता है कि नहीं, इससे इस परंपरा की एक सीमा भी कहा जा सकता है। फिर भी निश्चय ही आज का मतदाता बड़ा ही जागरुक, सजग और सावधान है। वह लोतंत्र और चुनाव दोनों का अर्थ और महत्व भली प्रकार समझता है। अत: चुनाव के अवसर पर वह सही व्यक्ति को वोट देकर लोतंत्र की रखा तो कर ही समता है उसके जन-हित में, विकास में भी सहायता पहुचंा सकता है। अत: चुनाव के समय की घोषणाओं को ही उसे सामने नहीं रखना चाहिए, बल्कि नीर-क्षीर विवेक से काम लेकर उपयुक्त, ईमानदार और जन-हित के लिए प्रतिबद्ध व्यक्ति के पक्ष में ही मतदान करना चाहिए। तभी सच्चे अर्थों में वास्तविक लोकतंत्र की रक्षा संभव हो सकती है।

चुनाव, क्योंकि लोकतंत्र भी अनिवार्य शर्त और सफलता की कसौटी भी है, अत: प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य हो जाता है कि वह उसके प्रति सावधान रहे। कई बार ऐसा भी होता है कि कुछ लोग यह सोचकर चुनावों के समय मत का प्रयोग नहीं भी करते कि हमारे एक मत के न डलने से क्या बनने-बिगडऩे वाला है? पर वस्तुत: बात ऐसी नहीं। कई बार हार-जीत का निर्णय केवल एक ही वोट पर निर्भर हुआ करता है। हमारे एक वोट के न डलने से अच्छा उम्मीदवार हार और अयाचित उम्मीदवार जीत सकता है। मान लो, हमारी तरह यदि अन्य कई लोग भी वोट न डालने की मानसिकता बनाकर बैठ जांए तब चुनाव क्या एक खिलवाड़ बनकर नहीं रह जाएगा। सजग सावधान और जागरुक मतदाता ही चुनावों को सार्थक बनाने की भूमिका निभा सकता है। अत: अपने मत का प्रयोग अवश्य, परंतु सोच-समझकर करना चाहिए। यही इसका सदुपयोग सार्थकता और हमारी जागरुकता का परिचायक भी है।

चुनाव लोकतंत्र के नागरिकों को पांच वर्षों में एक बार अवसर देते हैं कि अयोज्य एंव स्वार्थी प्रशासकों या प्रशासक दलों को उखाड़ फेंका जाए। योज्य और ईमानदार लोगों या दलों को शासन-सूत्र संचालन की बागडोर सौंपी जा सके। राजनीतिक दलों और नेताओं को उनकी गफलत के लिए सबक सिखाया और जागरुकता के लिए विश्वास प्रदान किया जा सके। लोकतंत्र की सफलता के लिए सही राजनीति और लोगों का, उचित योजनाओं का चयन एंव विकास संभव हो सके। यह वह अवसर होता है कि जब विगत वर्षों की नीति और योजनागत सफलताओं-असफलताओं का लेखा-जोखा करके नवीन की भूमिका बांधी जा सके। यदि हम लोकतंत्र के वासी और मतदाता ऐसा कर पाते हैं, तब तो लोकतंत्र में चुनाव का महत्व असंदिज्ध बना रह सकता है, अन्यथा वह एक बेकार के नाटक से अधिक कुछ नहीं। जागरुक नागरिक होने के कारण हमें उन्हें केवल नाटक नहीं बनने देना है, बल्कि जन-जीवन का संरक्षक बनाना है। अब तक भारतीय लोकतंत्र च्यारह बार चुनाव का दृश्य देख चुका है। इनमें से सन 1996 में संपन्न चुनाव सर्वाधिक महत्वपूर्ण और स्वमरणीय कहा जाता है।

 

निबंध नंबर :02

लोकतंत्र में चुनाव

Loktantra me Chunav

लोक पर आधारित शासनलोकतंत्र ऐसी शासन-प्रणाली है जिसका सारा कार्यभार स्वयं ‘लोक’ के कंधों पर होता है। लोकतंत्र की सफलता-असफलता उन लोगों पर निर्भर करती है, जो कि सरकार चलाते हैं। उन लोगों को चुनना सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है।

चुनाव की निष्पक्षतास्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है कि चुनाव की प्रक्रिया निष्पक्ष, सरल और पारदर्शी हो। आम गरीब लोग भी चुनाव का अंग बन सकें। वे अपने मत का महत्त्व समझें तथा स्वतंत्र मत से मतदान कर सकें। देखने में आता है, कि भारत में 40 से 80 प्रतिशत तक मतदान होता है। चुनाव-प्रणाली में ऐसी व्यवस्था बननी चाहिए कि शत-प्रतिशत लोग मतदान करें। इसके लिए दंड और पुरस्कार की योजना की जानी चाहिए।

स्वतंत्र चुनाव के उपायस्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का अर्थ यही है कि चुनाव लड़ना सस्ता, सुरक्षित तथा सर्वसुलभ हो। इसके लिए जटिल कानूनी दाँवपेंच न हों। कोई गरीब समाजसेवी धन के अभाव में भी चुनाव लड़ सके। दूसरी ओर, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि धन-संपन्न लोग लोभ-लालच और प्रचार-प्रसार के बल पर लोगों को गमराह न कर सकें। यद्यपि इस विषय में कानूनों की कमी नहीं है, परंतु व्यवहार में इनकी पालना नहीं की जाती। बड़े-बड़े धनी लोग अपने धन-बल पर प्रचार-तंत्र, प्रशासन, पुलिस और प्रभावी लोगों को खरीद लेते हैं। कहीं-कहीं गुंडागर्दी का साम्राज्य होता है। वहाँ किसी कुख्यात गुंडे के सामने कोई चुनाव में खड़ा नहीं होता। यदि कोई साहस करे तो उसकी हत्या करवा दी जाती है। ऐसी स्थिति पर चुनाव आयोग की कड़ी निगाह होनी चाहिए। सौभाग्य से चुनाव-आयोग इस दिशा में जागरूक है। परंतु अभी और काम किया जाना बाकी है।

फिल्मी सितारों का प्रवेशआजकल देखने में यह आता है कि विभिन्न दल अपने चुनाव प्रचार में फिल्मी हस्तियों और क्रिकेट-सितारों को बुला लेते हैं। इस बहाने लोगों की भीड़ जमा हो जाती है। वास्तव में इन मेहमान कलाकारों का चुनावों से कोई लेना-देना नहीं होता। ये मदारी की डुगडुगी का काम करते हैं। ऐसे कामों से लोकतंत्र में भटकाव आता है। लोग लुभावनी और कच्ची बातों के झाँसे में आकर अपना कीमती मत बेकार कर बैठते हैं।

चुनावों का घिनौना रूप-भारत के चुनावी-परिदृश्य का एक घिनौना रूप भी है। चुनावी सभाओं में नेताओं के चमचे और बड़बोले वक्ता अपने विरोधियों के बारे में अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं। वे खुलकर एक-दूसरे पर लांछन लगाते हैं तथा उनका चरित्र-हनन करते हैं। यह चिंताजनक बात है।

वास्तव में स्वस्थ चुनाव का स्वस्थ रूप है-शांतिपूर्वक प्रचार करना। मतदाताओं के सामने अपनी कार्य-योजना रखना, न कि विरोधियों को उखाड़ना। इसके लिए इलैक्ट्रॉनिक मीडिया सबसे सशक्त माध्यम है। इसके सहारे पूरे परिवार के सदस्य चुनावी-चर्चा में सम्मिलित हो सकते हैं।

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commentscomments

  1. Raju yadav says:

    plz chunaw par nibandh likhe

  2. Narayan says:

    Nice

  3. Prakash Singh Mehta says:

    Can u write an article on chunav loktantra Ko majbut banata h

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