Vyanjninda Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | व्याजनिंदा अलंकार की परिभाषा और उदाहरण
व्याजनिंदा अलंकार
Vyanjninda Alankar
बहाना हो निंदा का,
समझत में स्तुति हो ।
व्याजनिंदा अलंकार की,
बस वहीं प्रस्तुति हो ।
परिभाषा – जब कविता में इस तरह, वर्णन किया गया हो कि वह देखने पर प्रशंसा लगे किंतु वास्तव में वह निंदा हो, तो वहाँ पर व्याजनिंदा अलंकार होता है। जैसे-
तुम तो सखा श्याम सुंदर के,
सकल जोग के ईस।
सूर हमारे नंदनंदनु बिनु,
और नहीं जगदीस।
गोपियाँ प्रत्यक्ष में उद्धव की स्तुति कर रही है परोक्ष में निन्दा। गोपियाँ कहना यह चाहती है कि उद्धव जी प्रेममार्गी कृष्ण के मित्र हैं फिर वे योगों के ईश (ज्ञाता) कैसे हो गये? निर्गुण ब्रह्म के समर्थक क्यों हो गये?
नाक कान बिनु भगिनि तिहारी,
छमा कीन्ह तुम धर्म विचारी ।
लाजवंत तुम सहज सुभाऊ,
निज गुन निज मुख कहसि न काऊ।।
हनुमान जी के इस कथन से स्तुति-सी प्रतीत होती है, पर यथार्थ में इसमें कायर और निर्लज्ज होने का तात्पर्य निकलता है, जिसमें निन्दा है।
सेमर तेरे भाग को कहा सराहयो जाये।
पक्षी करि फल आस तोहि, निसिदिन सेवत जाय।।
प्रत्यक्ष रूप में सेमर के भाग्य की सराहना की गई है जिसकी सेवा, फल प्राप्त करने के उद्देश्य से पक्षी रात-दिन किया करते थे, परन्तु कवि सेमर पर तीखा व्यंग्य कर रहा है कि वह सेवा करने वाले पक्षियों को फल न देकर निराश कर देता है।
जो वरमाला लिये आप ही तुमको वरने आयी हो।
अपना तन-मन-धन सब तुमको अर्पण करने आयी हो।
मज्जागत लज्जा को तजकर तिस पर करे स्वयं प्रस्ताव।
कर सकते हो तुम किस मन से उससे भी ऐसा बर्ताव।।
सीता के इस कथन में शूर्पणखा की प्रशंसा झलकती है किन्तु इसमें उसकी निन्दा की गई है। वह इतनी निर्लज्ज है कि स्वयं नारी होकर लक्ष्मण से विवाह का प्रस्ताव करती है।