Vibhavna Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | विभावना अलंकार की परिभाषा और उदाहरण
विभावना अलंकार
Vibhavna Alankar
न हो कारण जहाँ और, कार्य फिर भी संपन्न हो ।
या दिखे विपरीत कार्य तो, विभावना ही उत्पन्न हो।
परिभाषा – जहाँ कारण के बिना या कारण के विपरीत कार्य की उत्पत्ति का वर्णन किया जाये, वहाँ विभावना अलंकार होता है।
बिनु पद चलै, सुने बिनु काना,
कर बिनु करम करै विधि नाना।
आनन-रहित सकल रस भोगी,
बिनु बानी बकता बड़ जोगी ।।
चलना, सुनना, करना और खाना ये सब पैर, हाथ, कान, मुख के काम है। यहाँ बिना कारण के कार्य है।
सखि इन नैनन ते घन हारे,
बिनु ही ऋतु बरसत निसि-बासर, सदा मलिन दोऊ तारे।।
यहाँ पर वर्षा ऋतु के न होने पर भी नेत्रों से आँसुओं की वर्षा हो रही है।
निन्दक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ॥।
यहाँ पर साबुन और पानी के बिना ही कार्य होने का वर्णन किया गया है।
बिनु घनश्याम धामु धामु ब्रज मण्डल के
ऊधो नित बसति बहार वर्षा की।
वर्षा के लिये मेघों का कारण आवश्यक है परंतु यहाँ बिना बादलों के ही ब्रज के घर-घर में वर्षा होती है यहाँ घनश्याम से अर्थ श्रीकृष्ण तथा घने श्यामवर्ण बादल।
नाचि अचानक ही उठे, बिनु पावस वन मोर।
यहाँ मोरों का नाचना (कार्य) बादल (कारण) के बिना ही संपन्न होने का वर्णन है। अतः कारण के अभाव में कार्य की सम्पन्नता के वर्णन में ही विभावना अलंकार है।