Vatsalaya Rasa Ki Paribhasha, Bhed, Kitne Prakar ke hote hai aur Udahran | वात्सल्य रस की परिभाषा, भेद, कितने प्रकार के होते है और उदाहरण
वात्सल्य रस
Vatsalaya Rasa
परिभाषा – सहृदय के हृदय में जब वात्सल्य नामक स्थायी भाव का विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तो वहाँ पर वात्सल्य रस की निष्पत्ति होती है। शिशु या बालक की मनोहर, भोली-भाली चेष्टाओं को देखकर मन में उसके प्रति जो स्नेह उमड़ता है, वही वात्सल्य रस का आधार है।
स्थायी भाव – स्नेह या वात्सल्य का भाव।
आलम्बन विषय – शिशु, संतान आदि ।
आश्रय – माता-पिता, पालनकर्ता आदि।
उद्दीपन विभाव – विभिन्न बाल चेष्टाएँ, तुतलाना, हँसना, दौड़ना, गोद में आ बैठना आदि।
अनुभाव – गोद में लेना, चूमना आदि।
संचारी भाव – हर्ष, मोह, उत्सुकता, स्मृति आदि।
उदाहरण –
“मैं रूदूँ माँ और मना तू, कितनी अच्छी बात कही,
ले मैं सोता हूँ अब जाकर, बोलूँगा मैं आज नहीं।”
पके फलों से पेट भरा है, नींद नहीं खुलने वाली।
श्रद्धा चुम्बन ले प्रसन्न कुछ, कुछ विषाद से भरी रही।
यहाँ स्थायी भाव – वात्सल्य। आश्रय – माँ। विषय – पुत्र। उद्दीपन बनावटी गुस्सा। अनुभाव = चुम्बन लेना। संचारी भाव – हर्ष ।
मैं बचपन को बुला रही थी, बोल उठी बिटिया मेरी।
नंदन वन सी फूल उठी यह, छोटी-सी कुटिया मेरी।
‘माँ-ओ, कहकर बुला रही थी, मिट्टी खाकर आई थी।
कुछ मुँह में कुछ लिये हाथ में, मुझे खिलाने आई थी।
मुँह पर थी आह्लाद लालिमा, बोल उठी वह ‘माँ काओ’।
हुआ प्रफुल्लित हृदय खुशी से, मैंने कहा तुम्हीं खाओ। ‘
यहाँ स्थायी भाव – वात्सल्य। आश्रय- माता। विषय = बिटिया। उद्दीपन = माँ ओ कहकर बुलाना, मिट्टी खाना आदि। अनुभाव – माँ के मुख पर प्रसन्नता। संचारी भाव – हर्ष, स्मृति, मोह, चपलता आदि।
जसोदा हरि पालने झुलावैं
हलरावें, दुलरावें मल्हावें, जोई सोई कहु गावैं।
मेरे लाल को आऊ निंदरिया, काहे न आति सुलावै ।
तू काहे नहिं बेगहिं आवत, तो कौं कान्ह बुलावै।
कबहुँ पलक हरि मूँद लेत, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन है कै रहि, करि-करि सैन बतावै।
यहाँ स्थायी भाव = वात्सल्य। आश्रय = यशोदा। उद्दीपन = कृष्ण की सुलाना, पलक-मूँदना। अनुभाव = यशोदा की क्रियायें। संचारी भाव = शंका, हर्ष।