Vakrokti Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | श्लेष अलंकार की परिभाषा और उदाहरण
वक्रोक्ति अलंकार
Vakrokti Alankar
वक्रोक्ति अलंकार तब होता है, जब वक्ता कुछ कहे और सुनने वाला जानबूझकर उसका अन्य अर्थ समझे। इसमे स्वर द्वारा भी अर्थ में विचित्रता उत्पन्न की जाती है। इस आधार पर इसके दो भेद हैं – श्लेष वक्रोक्ति और काकु वक्रोक्ति।
श्लेष वक्रोक्ति – जहाँ पर शब्द के अर्थ का दूसरा अर्थ लगाकर व्यंग या हास्य उत्पन्न किया जावे, वहाँ श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है। जैसे-
‘को तुम‘ ‘हरि, प्यारी‘ ‘न ह्याँ वानर को कछु काम‘
यहाँ कृष्ण राधा से द्वार खोलने कहते हैं। राधा पूछती हैं कि तुम कौन? कृष्ण कहते हैं कि प्रिये मैं हरि। राधा यहाँ जानबूझकर हरि का अर्थ वानर लगाती हैं और कहती हैं कि वानर का यहाँ क्या काम? हरि – कृष्ण, वानर ।
‘को तुम’? ‘घनश्याम‘ ‘तो बरसो कित जाय‘
यहाँ राधा जानबूझकर घनश्याम का अर्थ बादल लगाती हैं और कहती हैं कि कहीं और जाकर बरसो। घनश्याम – कृष्ण, बादल ।
काकु वक्रोक्ति – जहाँ वक्ता के कथन को ध्वनि द्वारा व्यंग या हास्य में लाया जावे, वहाँ काकु वक्रोक्ति अलंकार होता है। जैसे –
मैं सुकुमार नाथ बन जोगू ।
तुमहिं उचित तप मों कह भोगू ।
यहाँ राम सीता से वन की कठिनाई को बताते हुए कहते हैं कि तुम सुकुमारी हो, तो सीता उसी पंक्ति को दुहराकर अर्थ में भिन्नता उत्पन्न कर देती है।