Utpreksha Alankar Ki Paribhasha aur Udahran | उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा और उदाहरण
उत्प्रेक्षा अलंकार
Utpreksha Alankar
उत्प्रेक्षा का अर्थ है – सम्भावना या कल्पना। जहाँ उपमेय में उपमान की संभावना व्यक्त किये जाने से चमत्कार प्रकट हो, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार माना जाता है। संभावना का भाव प्रकट करने के लिये जनु, मनु, मानो आदि वाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उत्प्रेक्षा अलंकार में एक वस्तु को दूसरी वस्तु मान लिया जाता है। उत्प्रेक्षा अलंकार के वाचक शब्द हैं- मानो, मनु, मनहुँ, जानो, जनु, ज्यों, इमि आदि। जैसे
बगुला बैठा ध्यान में, प्रातः जल के तीर ।
मानो तपसी तप करे, मल कर भस्म शरीर ।।
यहाँ बगुला उपमेय है तथा तपसी उपमान है। दोनों के बीच वास्तव में कोई सादृश्य नहीं है। अतएव उनमें सादृश्य की सम्भावना व्यक्त की गयी है। वाचक शब्द ‘मानो’ इसी का संकेत दे रहा है। अतः यह उत्प्रेक्षा का उदाहरण है।
सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात।
मनो नीलमणि शैल पर, आतप पर्यो प्रभात।।
भगवान् कृष्ण के श्याम वर्ण वाले शरीर पर पीताम्बर है। यह उपमेय भाग है। नीलम के पर्वत पर पड़ने वाली प्रात कालीन पीली-सी धूप उपमान है। इसी आधार पर भगवान कृष्ण में नीलमणि पर्वत की सम्भावना बतायी गयी है। वाचक शब्द ‘मनो’ है।
मानहुँ सूर काढ़ि डारी हैं, वारि मध्य ते मीना
इस उदाहरण में कृष्ण के वियोग में व्याकुल गायों को पानी से निकाली गई मछलियों के रूप में कल्पित किया गया है।
प्रासाद मानो चाहते हैं चूमना आकाश को।
यहाँ प्रासाद (महल) की आकाश चूमने की इच्छा व्यक्त की गई है, वाचक शब्द ‘मानो’ है, किन्तु यह कल्पना है।
नित्य ही नहाता है, चन्द्र क्षीर सागर में।
सुन्दरि ! मानो तुम्हारे मुख की समता के लिये।
रत्नाभरण भरे अंगों में ऐसे सुन्दर लगते थे।
ज्यों प्रफुल्ल ‘बल्ली पर सौ-सौ जुगनू जगमग जगते थे।