Shabd Gun Ki Paribhasha aur Udahran | शब्द गुण की परिभाषा और उदाहरण
शब्द गुण
Shabd Gun
साहित्य-शास्त्र में शब्द के गुणों का भी निरूपण किया गया है। किसी शब्द में श्रुति- मधुरता तथा कोमलता होती है, तो कोई शब्द कर्णकटु और कर्कश होता है – जैसे ‘तरुन अरुन वारिज नयन’ की कोमलता के सामने ‘डगमगान महि दिग्गज डोले’, या ‘प्रबल प्रचण्ड बरिबंड बाहुदण्ड वीर’ की कर्कशता स्वयं सिद्ध होती है। इसी प्रकार कोई कथन समझने में सुगम और कोई क्लिष्ट होता है। किसी शब्द में ओजस्विता होती है, कोई नरम और मखमल ‘जैसा मुलायम होता है। इसी विवेचन के आधार पर शब्दों के तीन गुण माने गये हैं –
(1) माधुर्य गुण,
(2) प्रसाद गुण और
(3) ओज गुण।
माधुर्य गुण
कोमल वर्णों वाली सुगम पदावली में श्रुति-मधुरता, उच्चारण-सुगमता तथा हृदय को आनन्दित करने का गुण होता है। इसे ही साहित्य-शास्त्र में माधुर्य गुण कहते हैं। ऐसी पदावली में ट, ठ, ड, ढ, ण, त्र, ट्ठ, ड्ढ, ण्ण आदि वर्णों तथा दीर्घ सामासिक पदों का निषेध होता है। श्रृंगार, करुण और शान्त तथा हास्य रसों में माधुर्य गुण से युक्त शब्द तथा पद-समूह ही काम में लाये जाते हैं। जैसे-
आ जा, मेरी निंदिया गूँगी।
आ, मैं सिर आँखों पर लेकर चन्द खिलौनादूँगी।
प्रसाद गुण
सुगम सरल शब्दावली में, अभिधेयार्थवाची शब्दों द्वारा, जब कोई कथन अभिव्यक्त किया जाता है और बिना किसी दुरूहता के जब उसका बोध पाठक या श्रोता को होता है, तो एक विशेष प्रकार का मानसिक या बौद्धिक सन्तोष होता है। शब्दावली का यही सुबोधता का गुण प्रसाद गुण कहा जाता है। इसमें भी परुष, कर्कश, दुरूह, अनेकार्थी, क्लिष्ट शब्दों का बहिष्कार होता है। जैसे-
यदि मैं उकसाई गई भरत से होऊँ।
तो पति समान ही स्वयं पुत्र भी खोऊँ।
यह गुण सभी रसों में पाया जाता है।
ओज गुण
वीर तथा रौद्र रसों में ओजगुण से युक्त शब्दावली का ही प्रयोग अच्छा लगता है। क्योंकि वहाँ उत्साह, वीरता, तेजस्विता आदि का प्रदर्शन होता है। अतः कर्कश, परुष, संयुक्त वर्णात्मक, खड़खड़ाने-गड़गड़ाने वाले शब्दों का ही उपयोग किया जाता है। तेजस्विता, उत्साह आदि के शब्द ओज-गुण के परिचायक हैं। यथा-
प्रबल प्रचंड बरिबंड बाहु दंड वीर,
धाए जातुधान, हनुमान लियो घेरि कै।
महाबल पुंज कुंजरारि ज्यों गरजि झट,
जहाँ-तजां पटके लंगूर फेरि फेरि कै।।