Sachi Upasana, “सच्ची उपासना” Hindi Moral Story, Essay of “Guru Nanak Dev Ji” for students of Class 8, 9, 10, 12.
सच्ची उपासना
Sachi Upasana
एक बार गुरु नानक सुल्तानपुर पहुँचे। वहाँ उनके प्रति लोगों की श्रद्धा देख वहाँ के काजी को ईर्ष्या हुई। उसने सूबेदार दौलतखाँ के खूब कान भरे और शिकायत की कि वह कोई पाखंडी है, इसीलिए आज तक नमाज पढ़ने कभी नहीं आया।”
सूबेदार ने नानकदेव को बुलावा भेजा, किन्तु उन्होंने उस ओर ध्यान नहीं दिया। जब सिपाही दुबारा बुलाने आया, तो वे उसके पास गए। उन्हें देखते ही सूबेदार ने डाँटते हुए पूछा, “पहली बार बुलाने पर क्यों नहीं आए ?”
“मैं खुदा का बंदा हूँ, तुम्हारा नहीं।” नानकदेव ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया ।
“अच्छा! तो तुम खुद को ‘खुदा का बंदा’ भी कहते हो। मगर क्या तुम्हें यह मालूम है कि किसी व्यक्ति से मिलने पर पहले उसे सलाम किया जाता है?”
“मैं के अलावा और किसी को सलाम नहीं करता।” खुदा
“तब फिर खुदा के बंदे! मेरे साथ नमाज पढ़ने चल ।” क्रोधित होकर सूबेदार बोला ।
और नानकदेव उसके साथ मस्जिद गए। सूबेदार और काजी तो नीचे बैठकर नमाज पढ़ने लगे, मगर गुरु नानक वैसे ही खड़े रहे। नमाज पढ़ते-पढ़ते काजी सोचने लगा कि आखिर उसने इस दंभी (नानकदेव) को झुका ही दिया, जबकि सूबेदार का ध्यान घर की ओर लगा हुआ था। बात यह थी कि उस दिन अरब का एक व्यापारी बढ़िया घोड़े लेकर उसके पास आने वाला था। वह सोचने लगा कि शायद व्यापारी उसका इंतजार करता होगा, इसलिए नमाज जल्दी खत्म हो, तो वह घर जाकर सौदा तय करे। नमाज खत्म होने पर वे दोनों जब उठ खड़े हुए, तो उन्होंने नानकदेव को चुपचाप खड़े पाया। सूबेदार को गुस्सा आया। बोला, “तुम सचमुच ढोंगी हो। खुदा का नाम लेते हो, मगर नमाज नहीं पढ़ते।” “नमाज पढ़ता भी तो किसके साथ?” नानकदेव बोले, “क्या आप लोगों के साथ, जिनका ध्यान खुदा की तरफ था ही नहीं? अब आप ही सोचिए, क्या आपका ध्यान उस समय बढ़िया घोड़े खरीदने की तरफ था या नहीं? और ये काजीजी तो उस समय मन-ही-मन खुश हो रहे थे कि उन्होंने मुझे मस्जिद में लाकर बड़ा तीर मार लिया है!”
यह सुनते ही दोनों झेंप गए और गुरु नानक के चरणों पर गिरकर उन्होंने क्षमा माँगी।