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Mere Jeevan ka ek Yadgaar Din “मेरे जीवन का एक यादगार दिन” Hindi Essay 400 Words for Class 10, 12.

मेरे जीवन का एक यादगार दिन

Mere Jeevan ka ek Yadgaar Din

4 अप्रैल, 1999 को सुबह में जल्दी जाग नहीं सका और अपने आपको उपेक्षित-सा पाया। बिस्तर से उठने के बाद भी किसी ने मुझे प्रभात या नमस्ते नहीं बोला। सरकारी महाविद्यालय के उस होस्टल में, जिसमें दो सौ विद्यार्थियों के रहने की व्यवस्था है, किसी ने भी गलियारे से गुजरते समय मेरे बारे में न सोचा। जबकि यह मेरी जिन्दगी का सबसे यादगार दिन बनने जा रहा था।

यह सब इस तरह हुआ कि मैं उस वक्त न तो जाना-पहचाना स्पिन गेंदबाज़ था, प्रतिभावान बल्लेबाज था जैसा कि अब मुझे समझा जा रहा है। मैं तो उस वक्त एक साधारण सा क्रिकेट खिलाड़ी था। अब मैं अपने महाविद्यालय टीम के कप्तान हरीराम के कमरे की ओर गलियारे में बढ़ रहा था। मुझे संक्षिप्त-सी सूचना मिली कि उस दिन महाविद्यालय टीम में मुझे ग्यारहवाँ खिलाड़ी चुना गया है। मेरा हृदय धड़कने लगा। उसके लिए मैं महत्वाकांक्षी था और किन्तु काफी समय से बेहतर प्रदर्शन का कोई अवसर भी नहीं मिला था।

हमें उस दिन शहर की सबसे शक्तिशाली मिनर्वा टीम के विरुद्ध खेलना था। हमारे अच्छे प्रदर्शन का कोई आभास नहीं था। उन्होंने पहले बल्लेबाजी की और दोपहर के भोजन तक छह विकेट पर 250 रन बनाकर अपनी पारी घोषित कर दी। शुरू से अन्त तक तूफानी बल्लेबाजी हुई और अनगिनत चौके और छक्के लगे। मोहन और राम की कसी गेंदबाजी के सामने हमारे धुरंधर जल्दी आऊट हो गये और हमारी हार में सिर्फ कुछ समय का ही फासला रह गया था।

जब हमारी नौ विकेटें गिर गईं तब हमारी रन संख्या केवल 63 ही थी। तब मैं अपने महाविद्यालय के कुछ अध्यापकों की तालियों और तानों के बीच बल्लेबाजी करने गया । साधारणतया मैं बहुत अधीर हो जाता हूँ । किन्तु उस दिन बहुत सारी अनोखी घटनाएँ हुई जिसमें मैं काफी आत्मविश्वास महसूस कर रहा था। मैच में कुछ भी हो सकता था। और कुछ होकर ही रहा।

घोष, जो दसवाँ खिलाड़ी था, एक नियमित और, साथ ही, विश्वस्त बल्लेबाज भी था। उसने तुरन्त ही यह भाँप लिया कि मैं एक बड़ा स्कोर बनाने मैदान में आया हूँ। उसने मुझे बार-बार बल्लेबाजी करने का मौका दिया। पहले ओवर में मैंने 13 रन बनाए जो कि अप्रत्याशित चीज थी। फिर मैं रन बनाता चला गया। क्या आप मुझ पर विश्वास करेंगे, मैंने 10 छक्के और 23 चौके लगाये। रन असाधारण गति से बनते जा रहे थे। चाय के समय तक मैंने 145 रन बना डाले थे।। पाँच बजे के कुछ पहले हम लोगों ने 251 रन के स्कोर को पा लिया और मैच समाप्त हो गया।

मैं बिल्कुल उन्मत्त था। मैंने निश्चित पराजय को विजय में बदल दिया था। मेरे लिए खूब तालियाँ बजीं, माला पहनाई गई और मुझे छात्रावास एक जुलूस के रूप में ले जाया गया। मैं गौरवान्वित तथा कुछ चकराने वाला था। संभवतः मैंने भाषण देने की कोशिश की। किन्तु समय के इस फासले पर मुझे ठीक से नहीं याद आता है कि मैंने अधीक्षक पर स्याही की दवात फेंकी थी या नहीं ? उन्होंने प्राचार्य को कुछ और बातें इस शिकायत में जोड़कर कह दी, किन्तु मुझे याद है कि प्राचार्य ने इसे जीत का उन्माद कहकर भूल जाने की बात कही। भुला दी गई। खैर, पता नहीं यह घटना मेरे घनिष्ठ मित्रों और सहपाठियों की मण्डली में याद रखी गई या

किन्तु दिन की समापन महिमा जो थी वह रात आठ बजे मुझे मिली तार थी। मेरी एक लाख रुपए की लाटरी निकली थी। मैं न तो बेहोश हुआ और न ही बड़बड़ाने लगा। सच्चाई यह है कि मेरे मित्र श्याम सुन्दर ने मेरे लिए बहुत फुर्ती दिखाई। उसने एक पानी से भरी बाल्टी मेरे सिर पर उड़ेल दी। इतने पानी का शान्त कराने वाला प्रभाव जल्दी लुप्त होने वाला नहीं था। वाह ! मैं प्रसन्न था। मैं उस दिन जितना कभी प्रसन्न नहीं था। ये सभी घटनाएँ अब एक धुंधला मोड़ ले रही हैं। किन्तु मैं पीछे मुड़कर उस दिन की ओर देख सकता हूँ और अपने आपको सांत्वना दे सकता हूँ कि कभी मेरा भी अपना समय था।

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