Karun Ras Ki Paribhasha, Bhed, Kitne Prakar ke hote hai aur Udahran | करुण रस की परिभाषा, भेद, कितने प्रकार के होते है और उदाहरण
करुण रस की परिभाषा
Karun Ras Ki Paribhasha
परिभाषा – सहृदय के हृदय में स्थित शोक नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है, तब करुण रस की निष्पत्ति होती है।
प्रिय वस्तु या प्रिय व्यक्ति का अनिष्ट या नाश होने तथा उसे फिर से पाने की आशा न रहने पर हृदय में शोक और दुःख के भाव जागने पर करुण
रस की सृष्टि होती है। इसमें दुःखी व्यक्ति आश्रय होता है।
स्थायी भाव – शोक।
आलम्बन विषय – मृत्यु, नाश, स्थायी वियोग ।
आश्रय – दुखी व्यक्ति ।
उद्दीपन विभाव – नष्ट वस्तु, मृत व्यक्ति अथवा सम्बन्धित वस्तु।
अनुभाव – रुदन, निश्वास, भाग्य निन्दा, प्रलाप आदि ।
संचारी भाव – मोह, उन्माद, चिन्ता, स्मृति, ग्लानि, विषाद, जड़ता।
उदाहरण –
अभी तो मुकुट बँधा था माथ,
हुए कल ही हल्दी के हाथ
खुले भी न थे लाज के बोल,
खिले न चुम्बन शून्य कपोल।
हाय रुक गया चले संसार,
बना सिंदूर अंगार ।
यहाँ स्थायी भाव – शोक। आलम्बन विभाव = आश्रय पत्नी, विषय – पति की मृत्यु। उद्दीपन विभाव – हल्दी के हाथ, सिंदूर। अनुभाव = रुदन, प्रलाप । संचारी भाव – दैन्य, उन्माद ।
“माँ, कहाँ गये वे पूज्य पिता।“
करके पुकार यों शोक-सिता,
उर्मिला सभी सुध-बुध त्यागे।
जा गिरी कैकेयी के आगे।
यहाँ स्थायी भाव शोक। आलम्बन विभाव – आश्रय – उर्मिला, विषय- दशरथ की मृत्यु। उद्दीपन विभाव – दशरथ का शव । अनुभाव चीखना, चिल्लाना। संचारी भाव – जड़ता, विषाद।
अन्य उदाहरण हैं –
प्रिय सुत वह मेरा प्राण-प्यारा कहाँ है,
इस दुख जलनिधि डूबी का सहारा कहाँ है?
लख मुख जिसका मैं, आज लौ जी सकी हूँ,
वह हृदय दुलारा, नेत्र-तारा कहाँ है?
सब बन्धुन को सोच तजि, तजि गुरुकुल की नेह।
हा सुशील सुत! किमि कियो अनंत लोक में गेह।