Hasya Ras Ki Paribhasha, Bhed, Kitne Prakar ke hote hai aur Udahran हास्य रस की परिभाषा, भेद, कितने प्रकार के होते है और उदाहरण।
हास्य रस की परिभाषा
परिभाषा – सहृदय के हृदय में स्थित हास नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है, तब हास्य रस की निष्पति होती है। विकृत, अनोखी, विचित्र या असंगत बात को देखकर विनोद का भाव उत्पन्न होता है।
स्थायी भाव – हास (विनोद का भाव)।
आलम्बन विषय – व्यक्ति या वस्तु की विकृत आकृति या विचित्र वेश ।
आश्रय – दर्शक ।
उद्दीपन विभाव – विचित्र चेष्टाएँ, असंगत आचार-विचार, अनोखी वाणी आदि।
अनुभाव – हँसना, खिलखिलाना, पेट पकड़ना, उछल पड़ना आदि।
संचारी भाव – हर्ष चपलता आदि का भाव।
उदाहरण
इस दौड़ धूप में क्या रखा है, आराम करो, आराम करो।
आराम जिंदगी की कुंजी, इससे न तपेदिक होती है।
आराम सुधा की एक बूँद, तन का दुबलापन खोती है।
आराम शब्द में राम छिपा, जो भव-बंधन को खोता है। आराम शब्द का ज्ञाता तो, बिरला ही योगी होता है। इसलिये तुम्हें समझाता हूँ, मेरे अनुभव से काम करो।
यहाँ स्थायी भाव – हास। आलंबन – आलसी व्यक्ति। उद्दीपन- व्यंगोक्तियाँ। अनुभाव -हँसना, खिलखिलाना आदि। संचारी भाव – हर्षोन्माद आदि।
जे नर माछी खात हैं, मूँडा-पूँछ समेत ।
ते नर सरगै जात हैं, नाती-पूत समेत ।।
आशय यह है कि जो मनुष्य मछली को सशरीर खा जाते हैं, वे सपरिवार स्वर्ग चले जाते हैं। अर्थ हास्यपूर्ण है। इसमें स्थायी भाव – हास, आलम्बन विषय मछली खाने वाले मनुष्य, आश्रय – पाठक या श्रोता, उद्दीपन – मूँड़-पूँछ, नाती-पूत जैसी व्यंगोक्तियाँ, अनुभाव – हँसना, मुस्कराना और संचारी भाव – हर्ष, उन्माद हैं।
विन्धय के वासी उदास तपोव्रतधारी महाबिनु नारी दुखारे।
गौतम-तिय तरी, तुलसी सो कथा सुति भे मुनि वृंद सुखारे।
ठहै हैं सिला सब चंद्रमुखी परसे पद मंजुल कंज तिहारे ।
कीन्हीं भली रघुनायक जू, करूना करि कानन को
पगु धारे। विंध्य के साधुओं ने जब सुना कि राम वहाँ पधार रहे हैं तो वे बहुत खुश हुए। बिना पलियों के वे अत्यंत दुखी थे। राम के चरण का स्पर्श पाकर एक शिला अहल्या बन गयी थी, यह खबर वे पा चुके थे। अतः सभी एक-एक शिला लेकर खड़े थे ताकि राम उन्हें छूए और वह शिला चंद्रमुखी स्त्री बन जाये। स्थायी भाव – हास, आलंबन विभाव = आश्रय – दर्शक, विषय – विंध्य के वासी, उद्दीपन विभाव उदासी, तपोव्रत, अनुभाव = दर्शकों की प्रसन्नता, संचारी भाव = हर्ष, उत्सुकता आदि ।
अन्य उदाहरण हैं –
कहा बंदरिया ने बंदर से, चलो नहायें गंगा ।
बच्चों को छोड़ेंगे घर में, होने दो हुड़दंगा ।
बीस इंच है कमर वजन भी बीस सेर है छैला का।
अपने को मजनूँ कहते हैं, मुझको शक है लैला का।