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Hindi Moral Story, Essay “करनी का फल” “Karni Ka Phal” of “Gauribai” for students of Class 8, 9, 10, 12.

करनी का फल

Karni Ka Phal

गुजरात की संत कवयित्री गौरीबाई की भक्ति एवं धार्मिक वृत्ति देख गिरिपुर के राजा शिवसिंह बड़े प्रभावित हुए और उन्होंने गौरीबाई के लिए एक अलग मंदिर बनवा दिया। अब वह अपना सारा समय भजन-पूजन और ध्यानावस्था में बिताने लगी। जब वह इतनी खो जाती कि बाहरी दुनिया की उसे कोई सुध ही नहीं रहती थी। कुछ लोग इसे ढोंग की संज्ञा देते। इन्हीं में से एक वृद्धा हरियन भी थी।

एक दिन सच्चाई मालूम करने की दृष्टि से ध्यानावस्था में लीन गौरीबाई के शरीर में हरियन ने बहुत सारी सुइयाँ चुभो दी और भाग गई। किन्तु इसका उस पर कोई असर न हुआ। दोपहर को स्नान करते समय जब एक दासी को गौरीबाई के शरीर में सुइयाँ चुभी दिखाई दीं, तो उसे बड़ा अचंभा हुआ। और फिर मंदिर में पूछताछ चालू हो गई कि यह दुष्कर्म किसने किया है।

हरियन सहित सभी ने अस्वीकार कर दिया, किन्तु सच्चाई तो भगवान् से छिपी नहीं रहती। कुछ दिनों बाद हरियन को उसकी करनी का फल कुष्ठ के रूप में मिल गया। वह गौरीबाई के पास जाकर उसके चरणों पर गिर पड़ी और उसने सारी बात बताते हुए क्षमा माँगी। तब गौरीबाई बोली, “चिंता न करो, बहन! इस रोग से तुम मुक्त हो जाओगी। यह रोग शरीर में फैल न पाएगा। हाँ, इसके दाग रह जाएँगे।” हुआ भी वैसा ही। कुष्ठ रोग से हरियन को मुक्ति मिली, किन्तु उसके दाग स्थायी रूप से शरीर पर रह गए।

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