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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Yadi me Pakshi Hota”, ”यदि मैं पक्षी होता” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes

यदि मैं पक्षी होता

Yadi me Pakshi Hota

शैशव के सुकुमार क्षणों में किसी को गाते हुए सुना था-“मै बन का पक्षी बनकर, बन-बन डोलूँ रे । तभी से मन-मस्तिष्क में अनजाने ही यह इच्छा उत्पन्न हो गई थी कि काश! मैं भी पक्षी बन कर पैदा हआ होता, तो कितना मजा आता। जब जी चाहता, पाव फैला कर आकाश में ऊँचे उड़ जाता। जब जी चाहता, लौट कर फिर वापिस वृक्ष का डाली पर आ बैठता। इच्छा होने पर चोंच ऊपर उठा कर अपने मधुर स्वर से पहचहाने-गाने लगता। किसी भी पेड़ के घने पत्तों में बैठ कर सुख से गाता-मुस्कराता रहता। किसी नदी, सरोवर या झरने के स्वच्छ पानी में चोंच डुबो कर पानी पीता और फिर पँख फडफडा कर चहक-लहक उठता। किसी भी बाग-बागीचे में पहुँच, वहाँ से रस भरे मीठे फल अपनी चोंच मार-मार कर फोड़ डालता और माली या किसी के भी आने की आहट से फुर्र से उड़ जाता। तब मुझे भी इस स्वतंत्रता से सारा व्यवहार करते और उड़ते हुए देख कर कोई अन्य वही गीत गा उठता जो मैनें सुना था-“मै बन का पक्षी बन कर, बन-बन डोलूँ रे।

किन्तु कहाँ पूर्ण हो पाती हैं सब की सभी तरह की इच्छाएँ। नहीं हो पाती ना सो मेरी भी वह इच्छा आज तक पूरी नहीं हो पाई। अर्थात् मैं आज तक तो पक्षी बन कर आकाश में ऊँचा और स्वतंत्र उड़ पाया नहीं। कभी उड़ पाऊँगा इस बात की कोई सम्भावना भी नहीं। फिर भी बचपन से उत्पन्न हुई वह इच्छा आज तक मरी नहीं कि काश मैं पक्षी बना होता। मान लो, यदि में पक्षी बन ही गया होता या आज ही अभी पक्षी बन जाऊँ, तो क्या करूँगा वैसा बन कर ? निश्चय ही वह सब तो करूँगा ही कि जिस की कल्पना बचपन से की थी और ऊपर लिख भी आया हूँ; और भी बहुत कुछ करने की इच्छा रह-रह कर मन-मस्तिष्क में अंगड़ाइयाँ लेती रहा करती है।

यदि मैं पक्षी होता, तो सब से पहले किसी घने वन में कल-कल कर बहती नदी, या झर-झर झरते झरने के आस-पास उगे किसी सघन और रसदार फलों वाले वृक्ष पर अपना नन्हा-सा नीड़ (घोसला) बनाता। वहाँ मेरे संग मेरी प्रिया एक विहगी (पक्षिणी) भी होती। हम दोनों उस वृक्ष पर लगे मधुर और रसदार फल खा कर अपना पेट भरते। नदी या झरने का ताजा निर्मल पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते। इस से हमारा स्वर और भी मधुर, सरस, तरल और सरल हो उठता। फिर हम दोनों स्वर-से-स्वर मिला कर स्वतंत्र जीवन की मधुरता और सुख-सौरभ से भरा ऐसा मोहक गीत गाते, जो सुनने वाले सभी का मन मोह लेता। सभी के मन मस्ती और सुख से भर उठते। परतंत्रों-पराधीनों के मन-मस्तिष्क में भी स्वाधीन-स्वतंत्र होने-रहने की इच्छा जाग उठती। सभी को जीवन जीने का सुख-संगीतमय सन्देश मिल पाता।

यदि मैं पक्षी होता, तो प्रति सूर्योदय के समय आस-पास की बस्तियों में पहुँच कर, अपने मधुर स्वरों से चहचहाकर लोगों को नींद से जगाया करता कि उठो ! कर्म करने का सन्देश लेकर एक नया दिन आ गया है। इस लिए आलस्य त्याग कर अब जाग जाओ। सुबह की सभी क्रियाओं से निवृत्त होकर अपने-अपने कार्य-पथ पर निकल चलो। और इसके साथ-साथ मैं स्वयं भी दाना-दुनका चुगने के लिए पँख पसार किसी दिशा में उड़ जाता। जाते हुए रास्ते में यदि मुझे कहीं कोई दीन-दुःखी और धूप से पीड़ित व्यक्ति दिखाई दे जाता, तो अपने नन्हें पँख पसार कर उसे छाया प्रदान करने की चेष्टा करता, ताकि उसे कुछ राहत मिल सके। यदि कहीं कोई भूख से व्याकुल व्यक्ति या जीवन दीख जाता, तो वह सारा दाना दुनका मैं उसे अर्पित कर देता कि जो मैंने अपने घोसले में ले जाने के लिए चोच में दबाया होता। इस प्रकार दुःखी एवं पीडित प्राणियों की अपनी शक्ति के अनुसार सेवा-सहायता करके मैं अपना जीवन सफल बनाता।

यदि मैं पक्षी होता, तो धरती-आकाश की लम्बाई-ऊँचाई और गहराई नाप कर, वहाँ के प्रत्येक प्राणी और पदार्थ से अपना निकट का सम्बन्ध जोड कर, उनके परिचय और रहस्यों से परिचित होकर उन्हें बताता कि धरती पर निवास कर रहे, पेड़ों पर रहने वाले, सागर के वासी, नगर-ग्रामवासी या वनवासी सभी प्राणियों में एक ही आत्मा एक ही चेतना काम कर रही है, इस कारण आत्म तत्त्व की दृष्टि से सभी एक ही हैं। अतः किसी को किसी से घृणा नहीं करनी चाहिए। किसी को भी अपने से अलग, छोटा-बड़ा या पराया नहीं माना चाहिए किसी को किसी का अधिकार नहीं छीनना चाहिए। किसी को कष्ट देना या कष्ट का कारण नहीं बनना चाहिए।

इस प्रकार यदि मैं पक्षी होता, तो कविवर राजेश शर्मा की एक कविता की यह पक्ति सभी के कानों में गुनगुना आता-“विश्व का इतिहास मेरा दास है, प्रेयसि; मैं हूँ विहंगम प्यार का।

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