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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Yadi me Mathematician Hota”, ”यदि मैं गणितज्ञ होता” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes

यदि मैं गणितज्ञ होता

Yadi me Mathematician Hota

कल्पनाएँ करना, सपने देखना मनुष्य जाति का जन्मजात स्वभाव है। कई बार आदमी वह सब करने और होने के सपने देखा करता है कि जो वह नहीं है और न ही कर सक है। मैं यह स्वीकार करता हूँ कि गणित मुझे आज भी नहीं आता और बड़ा ही डरावना विषय लगता है। इस की चर्चा सुनने और नाम आते ही मैं भाग जाना चाहता हूँ| मझे पढ़ा-लिखा जान कर कई बार घर या आस-पड़ोस का कोई बच्चा जब मेरे पास गणित का कोई प्रश्न पूछने, समझने या हल करवाने आ जाता है, तब मैं विवश और असहाय-मा होकर उस की तरफ मात्र देखता रह जाता हूँ। तरह-तरह की बातें और बहाने कर उसे टालने का प्रयास किया करता हूँ। फिर किसी तरह बहला-फुसला कर उसे टरका कर छुटकारे की साँस लिया करता हूँ। लेकिन उसके चले जाने के बाद विवशता मुझे यह सोच घेर लिया करती है कि काश, मुझे गणित आता होता। काश, मैं भी गणितज्ञ होता।

मन-मस्तिष्क में इस प्रकार की कल्पनाएँ और व्यावहारिक बातें आते ही मुझे उन गणितज्ञों की अनेक महत्त्वपूर्ण बातें याद आने लगती हैं कि जो गणित के बल पर कई तरह की विषय समस्याओं के समाधान खोज कर विश्व के मानस-पटल पर अपनी विशेष छाप छोड़ गए हैं। उन ज्योतिषियों का ध्यान आने लगता है कि जो अपनी गणित की जानकारियों के बल पर हिसाब-किताब लगा कर मनुष्य के भूत, वर्तमान और भविष्यत्काल आदि के बारे में सब-कुछ बता दिया करते हैं। उस महान् वैज्ञानिक आर्यभट्ट, बराह, मिहर आदि की याद आने लगती है कि जिन्होंने गणित की जानकारी के बल पर ग्रह-नक्षत्रों के क्रिया-व्यापारों और व्यवहारों के बारे में कई तरह की जानकारियाँ हमें प्रदान की। यहाँ तक कि धरती से ग्रह-नक्षत्रों की दूरी, सूर्य के आस-पास पृथ्वी-समेत सभी ग्रह-नक्षत्रों के चक्कर लगा सकने के समय तक का ज्ञान करा दिया। यदि मैं भी गणितज्ञ होता, तो मान लो ऐसा कोई महान् एवं अविस्मरणीय माना जाने वाला कार्य न भी कर पाता, तो भी कम-से-कम घर-परिवार और आस-पास के बच्चों के प्रश्नों, गणित-सम्बंधी जिज्ञासाओं का समाधान कर टालू बनने से तो बच ही जाता।

आज का युग विज्ञान की खोजों, वैज्ञानिक प्रगतियों और विकास का युग है। यह भी सभी जानते हैं कि विज्ञान की अनेक गूढ गुत्थियाँ सुलझाने में गणित ने उसका बड़ा साथ दिया है। सच तो यह है कि विज्ञान उन्हीं विषयों में हाथ डाल सकता या हाथ डाला करता है कि जिन्हें नापा-तौला जा सकता और जिन की गणना कर पाना सम्भव हुआ करता है। यों भी आज के युग में, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आँकडों का खेल ही चला करता है। उपग्रह प्रक्षेपित करते समय उलटी गणना करना आवश्यक हुआ करता है। कम्प्यूटर जैसे नवीन पेच आँकड़ों का खेल ही खेलते हैं। स्पष्ट है कि इन सभी का सम्बन्ध सीधा गणित के आहार-व्यवहार से ही है। इसी कारण मैं अक्सर सोचने को विवश हो जाया करता हूँ कि यदि मैं भी गणितज्ञ होता, तो इसी प्रकार का कोई नया वैज्ञानिक आविष्कार कर के संसार को स्तब्ध चकित कर देता। न सही आविष्कार, कोई नई थ्योरी या सूत्र आविष्कृत के ही आने वाली वैज्ञानिक पीढ़ियों के लिए छोड़ जाता कि वे उस पर अपनी माथा-पच्ची करती रहें और करती रहें नए-नए आविष्कार।

यों भी, व्यावहारिक जीवन में उचित ही कहा और माना जाता है कि जो व्यक्ति जीवन-जीने का गणित नहीं जानता, गणितज्ञ की तरह हिसाब-किताब से अपनी गोटी बैठाना नहीं जानता, आम तौर पर उसे अव्यावहारिक माना जाता है। ऐसा व्यक्ति यों जीने को तो जिये जाता है, पर सफल-काम और सफल जीवन कभी नहीं हुआ करता या माना। जीवन का प्रत्येक कार्य छोटा हो या बड़ा, एक हिसाब से करने पर ही पूरा तो आ ही करता है। आज मैं अपने बारे में सोचने पर अपने आप को हर कदम पर, हर कार्य में असफल-जैसा ही पाता और अनुभव करता हूँ। समय पर ठीक ढंग से कार्य सम्पादित न कर पाने का बाद में हमेशा पछतावा लगा रहता है। बाद में सोचा करता हूँ कि यदि ऐसा करता तो ऐसे होता। या मुझे उस समय ऐसा करना चाहिए था, या इस बात का यह उत्तर देना चाहिए था। आप अपने आस-पास ध्यान से देखें, जो व्यक्ति गणितज्ञ होगा या फिर गणित में थोड़ी-सी भी रुचि रखता होगा, ठीक है वह कोई उपग्रह तो नहीं, उडा पाया होगा; पर जीवन के आम व्यवहारों में अवश्य ही उसे सफल समझा-कहा जाता होगा।

मेरे विचार में गणितज्ञ होने का अर्थ व्यावहारिक होना ही अधिक है। वैज्ञानिक होना भी है; पर यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि कलाकारों, साहित्यकारों आदि की तरह वैज्ञानिकों का जीवन भी अव्यस्थित-सा ही हुआ करता है। जीवन, समाज और संसार को व्यवस्था देकर भी स्वयं अव्यवस्थित बने रहना उनकी नियति है शायद ।

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