Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Vidyarthi aur Rajniti”, ”विद्यार्थी और राजनीति” Complete Hindi Anuched for Class 8, 9, 10, Class 12 and Graduation Classes
विद्यार्थी और राजनीति
Vidyarthi aur Rajniti
हमारे सामने यह समस्या है कि राजनीति में विद्यार्थियों को भाग लेना चाहिए या नहीं। देखना यह है कि यदि विद्यार्थी राजनीति में भाग लेते हैं, तो उन्हें क्या लाभ होता है, नहीं लेते हैं तो क्या हानि होती है। यह तो स्पष्ट है कि शिक्षा और राजनीति दो अलग अलग विषय हैं। जिस प्रकार कोई एक साथ दो घोड़ों की सवारी नहीं कर सकता उसी प्रकार विद्यार्जन और राजनीति दोनों में एक साथ भाग नहीं लिया जा सकता। दोनों में एक साथ भाग लेने से क्या परिणाम होगा –
“न खुदा ही मिला न विसाले सनम,
न इधर के रहे न उधर के रहे।”
आखिर छात्र विद्यार्जन क्यों करते हैं। विद्यार्जन उनके भविष्य के जीवन की तैयारी है। विद्या द्वारा छात्र के अपरिपक्व जीवन में परिपक्वता आती है। विद्या प्राप्त करके ही वह किसी समस्या की अच्छाई या बुराई समझ पाता है। पर देखा जाता है कि भावनाओं के आवेश में राजनीतिज्ञों के द्वारा भटकावे में आकर वे राजनीति में सम्मिलित हो जाते हैं।
विद्यार्थी एक बड़ी जन-शक्ति है। राजनीतिज्ञ अपने आंदोलनों में उन्हें खींच कर अपना उल्लू तो सीधाकर लेते हैं, उनका उपयोग करके उन्हें छोड़ देते हैं। इसमें विद्यार्थी को क्या लाभ मिला? उनका पढ़ने का समय नष्ट हुआ। ऐसा मूल्यवान समय जो कभी लौटकर नहीं आता। उनकी यह हानि जीवनभर उनको सालती रहती है। वे राजनीतिज्ञ, जो छात्रों का किसी दल विशेष के लिए आंदोलनों में उपयोग करते हैं, वे उनके जीवन को नष्ट करने के उत्तरदायी होते हैं।
पाठशालाओं में छात्र संघों का संगठन किया जाता है। यह छात्रों को राजनीति से परिचित कराने का एक साधन है। छात्रों की समस्याओं को ही लेकर ये संघ अपने क्रिया कलापों को चलाते हैं। उनका क्षेत्र सीमित रहता है। यहाँ वे चुनाव के दाँव पेचों से परिचित हो जाते हैं। नेता और उसके अनुयाइयों के अधिकार और कर्तव्यों से वे परिचित होते हैं। उन्हें यह भी अनुभव हो जाता है कि अच्छे नेता का चुनाव कर उन्हें क्या लाभ मिला, तथा गलत नेता के चुनाव से उनकी किती हानि हुई। विद्यार्थी संगठन उनके राजनीति में प्रवेश करने की पृष्ठभनि तैयार करते हैं।
इस प्रकार के प्रशिक्षण प्राप्त छात्र अपनी शिक्षा समाप्त करके जब राजनीति में प्रवेश करते हैं, तब उन्हें भले बुरे की पहचान रहती है। वे निर्णय कर सकते हैं कि किस नेता के पक्ष में रहने से उन्हें लाभ हो सकेगा। राजनीति भी आज के युग में अशंकालिक व्यवहार नहीं रह गई है। इसमें भाग लेने वाले को पूर्णकालिक कार्य करना होता है। राजनीति में कुशल नेता ही समाज को कुछ लाभ पहुँचा सकता है।
एक समय ऐसा आया था कि देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए त्याग और बलिदान देने के लिए छात्र वर्ग अपनी पढ़ाई छोड़कर राजनीति में कूद पड़ा। वह आपत्ति काल था। देश को गुलामी से मुक्ति दिलानी थी। देशाभिमान, आत्मगौरव की रक्षा के लिए छात्रों के त्याग और बलिदान की देश को आवश्यकता थी। छात्रों द्वारा आंदोलन में इस प्रकार भाग लेने से देश को स्वतंत्रता तो मिल गई। छात्रों का त्याग और बलिदान सफल हुआ। पर एक बार शिक्षा से सम्पर्क कट जाने कारण अनेकों छात्रों को शिक्षा पूरी करने का अवसर प्राप्त न हुआ। यह एक संकटकालीन व्यवस्था थी। सामान्य रूप से विद्यार्थी यदि राजनीति में भी भाग लेते रहें तो यह शिक्षा और राजनीति दोनों के प्रति अन्याय कहलाएगा।
इतनी समीक्षा करने के पश्चात हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते है कि विद्यार्थी को राजनीति में सक्रिय भाग लेने से उसकी हानि होती है। विद्यार्थी जीवन में वह राजनीति समझे, अपना राजनीति में ज्ञान बढाए। शिक्षा पूर्ण हो जाने पर ही वह चाहे तो राजनीति में कूद सकता है। एक परिपक्व राजनीतिज्ञ को पाकर राजनीति भी लाभान्वित हो सकेगी। ऐसा राजनीतिज्ञ देश की एक अपूर्वनिधि बन सकेगा।