Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Uttarakhand me Jalpralay” , “उत्तराखंड में जलप्रलय” Complete Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
उत्तराखंड में जलप्रलय
Uttarakhand me Jalpralay
उत्तराखंड में जलप्रलय–16 जून, 2013 रात लगभग 8 बजे का समय था। केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के तीर्थयात्री अपने-अपने परिवारों के साथ हमेशा की तरह उत्साह और खुशी से चारों धामों की यात्रा में मग्न थे। अचानक बारिश शुरू हुई। कहीं बादल फटे। सवा आठ बजे पहाड़ टूट-टूट कर मानो धरती पर लुढ़कने की होड़ करने लगे। चारों ओर से पत्थर, चट्टानें और गाद-भरा पानी भयंकर बाढ़ की तरह सड़कों, मार्गों और जहाँ-तहाँ से बहने-उफनने लगा। इससे पहले कि लोग कुछ समझते और कहीं भागते, उन्होंने देखा कि गंदले पानी का एक सैलाब उनपर चढ़ आया है और उनके वाहन पानी में धंसते-धंसते कीचड़ से लबालब भर गए हैं। इधर देखा कि सड़कें कट गई हैं। कहीं पूरा-का-पूरा मकान नीचे की मिट्टी सरकने के कारण नदी में गिर गया है और उसमें रह रहे लोग मकान समेत नदी की बाढ़ में बहे चले जा रहे हैं। किसी की कार पानी के जलजले में बह गई। कोई बस यात्रियों समेत पहाड़ से नीचे घाटी में गिर गई। चारों ओर मानो महाप्रलय का विनाश छा गया। किसी का बच्चा छूटा तो किसी का पिता चट्टान के नीचे दब गया।
कारण–दो दिन पहले ही मौसम विभाग ने भयंकर बारिश की चेतावनी दे दी थी। परंतु यह चेतावनी लोगों ने आम चेतावनी की तरह समझी। किसी ने आज तक यह दृश्य नहीं देखा था कि मकान के मकान भडभडा कर नदी में बहते जा रहे हैं। इसलिए न तो कोई संभल पाया और न ही संभल पाने की कोई तैयारी थी। देश-भर से लगभग एक लाख पर्यटक इस समय उत्तराखंड की यात्रा पर थे। पर्यटन पूरे यौवन पर था। रास्ते, जो पहले ही कच्चे थे, या बनाए जा रहे थे, या भू-स्खलन के कारण टूटे-फूटे थे, वे भयंकर दरारों में बदल गए। कहीं रास्तों में भू-स्खलन के कारण रास्तों में चट्टानें आ गिरी जिससे आना-जाना बंद हो गया। लगभग सभी यात्री फस गए। अकेले चमोली में साठ हजार यात्री फंस गए। केदारनाथ में सब कछ ध्वस्त हो गया। एक मंदिर को छोड़कर सब कुछ स्वाहा हो गया। न दुकानें बची, न मकान और न होटल-धर्मशालाएँ न लोग। सब उस पथरीले गंदले सेलाव में नष्ट हो गया। अनुमान के अनुसार हज़ारों यात्री और स्थानीय लोग काल-कवलित हो गए।
विनाश के दृश्य–सैलाब उतरने के बाद एक सप्ताह तक फंसे लोगों को निकालने का सिलसिला जारी रहा। कुछ लोग 48 घंटे भखे रहे तो कुछ एक सप्ताह तक। इस आपात स्थिति की कल्पना न होने के कारण बचाव के उपाय भी नदारद थे। जहाँ देखो, लोगों की चीख-पुकार मची हुई थी। पहाड़ों पर बिजली और टेलीफोन की सविधा ध्वस्त हो गई थी। इस कारण लोगों का अपने सगे-संबंधियों से संपर्क तक टूट गया। न घर से संपर्क रहा और न ही अपने समह के साथियों के साथ संपर्क रहा। चारों ओर बदहवासी छाई रही। सभी न्यूज़ चैनल हफ्तों तक इस जलजले की हृदय-विदारक कहानी दिखाते रहे।
बचने के उपाय–इस बीच देश के लोग सकपकाए-से जागे। सामाजिक संगठनों ने अपने-अपने स्तर पर सहायता-सामग्री एकत्र की और पीड़ितों तक पहुँचाने की कोशिशु की। दुर्भाग्य से ऐसे कुकृत्य भी सामने आए जबकि पीड़ितों को न केवल लूटा गया, बल्कि हर प्रकार से अपमानित और प्रताड़ित किया गया। इस सैलाब ने देशवासियों को मानो झटके से जगा दिया और यह अहसास कराया कि देश की सुरक्षा-व्यवस्था कितनी कमज़ोर है। यहाँ की सरकारें जन-सुरक्षा और पर्यावरण के प्रति बिलकूल गंभीर नहीं है। अब समय आ गया है कि हम पहाड़ों, नदियों और वनस्पति को अपने सुख के लिए बर्बाद न करें वरना यह प्रकृति अपना बदला अपने हिसाब से लेने लगेगी तो हमारी यह शस्य श्यामला धरती और हमारे बंधु-बांधव हमसे छिन्न-भिन्न हो जाएंगे।