Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Samaj ki Samasyaye”, “समाज की समस्याएँ” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
समाज की समस्याएँ
Samaj ki Samasyaye
आज का समाज दो वर्गाें में बँटकर रह गया है- शोषक और शोषित वर्ग। शोषक पूँजीपति वर्ग से संबंधित है। इसे केवल अपने स्वार्थ के सिद्ध होने से मतलब है। यह अपने श्रमिकों का भरपूर शोषण करता है। किसान-मजदूर शोषित वर्ग के अंतर्गत आते हैं। इस शोषित समाज की अनेक समस्याएँ हैं।
शोषित समाज को जीवन की मूलभूत सुविधाएँ तक उपलब्ध नहीं हंै। उनके पास न तो रहने का स्थान है, न पेट भरने के लिए पर्याप्त भोजन। इनके बच्चों के लिए शिक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। इस वर्ग के अधिकांश बच्चे बाल मजदूर हैं जिन्हें कानून की सीमा को लाँघकर पेट भरने के लिए काम करना पड़ता है। उनके अस्थिर सुख पर दुःख की छाया तैरती दिखाई देती है। संसार के लोगों के हृदय दग्ध (दुःखी) हैं। उन पर निर्दय विप्लव अर्थात् क्रांति की माया फैली हुई है। बादलों के गर्जन से पृथ्वी के गर्भ में सोए अंकुर बाहर निकल आते हंै अर्थात् शोषित वर्ग सावधान हो जाता है और आशा भरी दृष्टि से क्रांति की ओर देखने लगता है। उनकी आशा क्रांति पर ही टिकी है। बादलों की गर्जना और मूसलाधार वर्षा में बड़े-बड़े घबरा जाते हैं। क्रांति की हुंकार से पूँजीपति घबरा उठते हैं, वे दिल थाम कर रह जाते हैं। क्रांति को तो छोटे-छोटे लोग हँसकर बुलाते हैं। जिस प्रकार छोटे-छोटे पौधे हाथ हिलाकर बादलों के आगमन का स्वागत करते हैं वेसे ही शोषित वर्ग क्रांति के आगमन की स्वागत करता है।
पूँजीपतियों के ऊँचे-ऊँचे महल मजदूरों को आतंकित करने के केन्द्र बनकर रह गए हैं। छोटे लोग तो कमल के समान हैं जिनसे सदा नीर छलकता रहता है। पूँजीपति तो असीम धन-दौलत पाकर भी असंतुष्ट रहते हैं। वे तो सुख के क्षणों का आनंद भी नहीं भोग पाते। उनके सिर पर क्रांति का भय छाया रहता है। वे अपनी पत्नियों के साथ रहते हुए भी भयभीत रहते हैं। वे भयभीत दशा में अपनी आँखें और मुँह ढके रहते हैं। दुर्बल शरीर वाले श्रमिक का सारा खून इन्हीं पूँजीपतियों ने चूस लिया है अर्थात् उनका भरपूर शोषण किया है। अब तो वे हड्डियों का ढाँचा मात्र बनकर रह गए हैं। अब तो क्रांति ही उनके जीवन का एकमात्र आधार है।
शोषित समाज का जीवन अत्यंत दयनीय है। यह समाज नारकीय जीवन जीने को विवश है। इस समाज की आर्थिक दशा सुधारने की आवश्यकता है।
किसी का शोषण करना जघन्य पाप की श्रेणी में आता है। शोषित समाज उत्थान की जिम्मेदारी भी पूंजीपति वर्ग पर आती है। उन्होंने ही युग-युगों से समाज के इस हिस्से का शोषण किया किया है। शोषित समाज की दशा दयनीय है। उसकी परवाह करने वाला कोई नहीं है। सरकार भी घड़ियाली आँसू बहाकर अपने कत्र्तव्य की इति श्री मान बैठती है। भारत का एक बहुत बड़ा वर्ग शोषित समाज के अतंर्गत आता हैै। शोषित समाज की आर्थिक स्थिति को तुरंत सुधारने की बड़ी आवश्यकता है, क्योंकि धन के बिना उनकी किसी समस्या का इलाज नहीं हो सकता। उनके रहन-सहन का स्तर बहुत घटिया है। उनके आस-पास का वातावरण गंदगी भरा होता है। इस वातावरण में उनके स्वस्थ रहने की कल्पना तक नहीं की जा सकती। इसके बाद उनके घर परिवार की समस्याएँ आती हैं। उनके बच्चोें की पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था होनी आवश्यक है। अभी तक तो इस वर्ग के बच्चे छोटे-मोटे कामों में लगकर घर-परिवार की आर्थिक स्थिति को संभालने में माता-पिता की सहायता करते दिखाई देते हैं। उन्हें बाल-मजदूरी से बाहर निकालना अत्यंत आवश्यक है। वहाँ उनका भी शोषण होता है। यदि उनको इस शोषण से मुक्त नहीं कराया गया तो शोषित समाज का चक्र कभी भी टूट नहीं पाएगा। हमें इस वर्ग की समस्याओं को गंभीरता से लेना होगा और उनके समाधान का प्रयास पूरे मन से करना होगा।