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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Ek Akeli Budhiya”, “एक अकेली बुढ़िया” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.

एक अकेली बुढ़िया

Ek Akeli Budhiya

 

                मेरे पड़ोस में एक बुढ़िया रहती है। वह अकेली है। उसका बूढ़ा पति हरिद्वार में रहता है। बुढ़िया को अपना अकेलापन काटना बहुत दूभर प्रतीत होता है। पर उसने इसका उपाय सोच लिया है। वह गली-मोहल्ले में होने वाले उत्सव-समारोह में बिना बुलाए ही जा पहुँचती है और खूब काम करती है। वह अपना अनुभव भी उन्हें बताती है। इससे कई बार अपमानजनक स्थिति आने से कई परिवार बचे हैं। अतः उनका आना बुरा प्रतीत नहीं होता। वह हलवाइ के पास बैठकर खाने पर पूरी निगरानी रखती है। हाँ, जब कभी उसका बूढ़ा संन्यासी पति घर लौट आता है और उसके इस प्रकार बिन बुलाए जाने पर एतराज करता है तब उसे बहुत बुरा लगता है। तब वह सोचती है कि इससे तो आते ही नही ंतो अच्छा था। उसने अपने घर के ऊपर वाले कमरे मेें एक युवती को किराए पर रखा हुआ है। उसका नाम राधा है। राधा कभी-कभी बूढ़ी से बतिया लेती है तो उसे थोड़ा चैन मिल जाता है। एक बार की बात है कि उसी के शहर में किसी दूर के रिश्तेदार ने आकर अपनी लड़की की शादी की। बुढ़िया को पूरा विश्वास था कि उसे भी बुलाया जाएगा। उसने सभी प्रकार की तैयारियाँ भी कल लीं, पर अंत समय तक बुलावा नहीं आया तब वह बुढ़िया निराशा में डूब गई। वेसे वह अकेली रहकर भी खुश है।

                मेरे पड़ोस में रहने वाली उस अकेली बुढ़िया की आदतें बड़ी विचित्र हैं। वह अकेलेपन के अहसास को कभी अपने पास नहीं फटकने देती। पूरे मोहल्ले में उसको पूछा जाता है। इसका कारण है उसका पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार। वह पड़ोस के बच्चों को प्यार करती है, उन्हें खाने की चीजंे देती है तथा मुसीबत की घड़ी में पड़ोसियों के काम आती है। उसमें स्वार्थ की भावना नहीं है।

                हाँ, जब उसका वृद्ध पति एक मास से हरिद्वार से घर लौटता है तब उसके जीवन में बहार आने की जगह मुसीबत आ जाती हैं उसका कारण यह है कि उसका पति हर बात पर रोक-टोक करता है। उसे बुढ़िया का दूसरों के घर जाना अच्छा नहीं लगता। उसे इस बात का अहसास नहीं हैै कि उसके पीछे उसे साल के ग्यारह महीने काटने कितने कठिन होते हैं। एक अकेली बुढ़िया को अपना समय बिताना कितना मुश्किल होता होगा, इसका वह बूढ़ा संन्यासी पति अनुमान तक नहीं लगा पाता। यह तो उस बुढ़िया की ही हिम्मत है कि वह अपने दम पर जीवन के एकाकीपन को अपने पास नहीं फटकने देती।

                पड़ोस की यह बुुढ़िया देखने में अकेली भले ही हो, पर वह मन से अकेली नहीं है। इसके विपरीत पति का आगमन उसे अकेला कर देता है, क्योंकि उन दिनों वह पूरे समाज के कटकर एकाकी जीवन बिताने को विवश हो जाती है। वैसे यह बुढ़िया है बड़ी मजेदार। खूब रौनक लगाए रहती है और अपने एकाकीपन को दूर करने का हरसंभव प्रयास करती रहती है।

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