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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Pustak Mela”, “पुस्तक मेले” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.

पुस्तक मेले

Pustak Mela

                भारत में अन्य मेलों की भाँति प्रति वर्ष पुस्तक मेला आयोजित करने की एक परंपरा चल पड़ी है। केन्द्रीय स्तर पर प्रतिवर्ष ‘प्रगति मैदान’ में पुस्तक मेले का भव्यस्तर पर आयोजन किया जाता है। इसमें देश-विदेश के प्रमुख प्रकाशक एवं विक्रेता भाग लेते हैं। इस मेले के अतिरिक्त अनेक राज्यों में भी पुस्तक मेले लगाए जाते हैं। अब प्रश्न उठता है कि इन पुस्तक मेलों की सार्थकता कितनी है ?

                भारत में निरंतर पुस्तकों का प्रचार-प्रसार बढ़ता चला जा रहा है। इस प्रचार-प्रसार में पुस्तक मेलों की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। ये पुस्तक मेले पिछले एक दशक से काफी लोकप्रिय होते जा रहे हैं।

                कुछ लोगों का मत है कि ये पुस्तक मेले अन्य मेलों की तरह केवल देखने-दिखाने के साधन मात्र हैं। बुद्धिजीवी वर्ग इन मेलों में बहुत कम जाता है। इन मेलों से पुस्तकों का कोई भला नहीं होता। इन्हें प्रदर्शनी की कोटि में ही रखा जा सकता है।

                दूसरा वर्ग उन लोगों का है जो यह मानते हैं कि पुस्तक मेले बहुत उपयोगी हैं। इनसे लेखक, प्रकाशक, पाठक, विक्रेता आदि सभी लाभान्वित होते हैं। अब तो इन मेलों मंे लेखकों और पाठकों का आमना-सामना भी कराया जाता है। पाठक उनसे अपनी जिज्ञासा शांत करते हैं।

                अब हम इस पर निष्पक्ष रूप में विचार करेें तो हमें पता चलता है कि पुस्तक मेलांे की सार्थकता तो संदेह से परे है। हाँ, मात्रा में अंतर हो सकता है। अभी हमारे देश में पुस्तकों को खरीदकर पढ़ने वालों का वर्ग अच्छी-खासी मात्रा में तैयार नहीं हो पाया है। इसके लिए भी पुस्तक मेले बहुत उपयोगी हैं। पुस्तकों को लोगों से परिचित कराने में ये मेले काफी महत्त्वपूर्ण भमिका का निर्वाह कर सकते हैं।

                पुस्तक मेले एक ही स्थान पर केन्द्रित नहीं होने चाहिए। अभी तक ये मेले प्रगति मैदान में आयोजित होते हैं। यदि इन्हें देश और शहरों के कोने-कोने में लगाया जाये तो इनके देखने और पुस्तकें खरीदने वालों की संख्या मंे पर्याप्त वृद्धि संभव है।

                पुस्तक मेलों में पुस्तकंे रियायती मूल्य पर मिलनी चाहिएँ। विशेषकर नवप्रकाशित पुस्तकों को लोकप्रिय बनाने के लिए उन्हें कम कीमत पर बेचा जाना चाहिए। इससे पुस्तकों को लोकप्रिय बनाया जा सकेगा। इस समय पाठकों की संख्या में बढ़ोत्तरी करने की अधिक आवश्यकता है।

                पुस्तक मेलों को आकर्षण का केन्द्र बनाया जाना चाहिए। अभी तक सामान्य जन इनकी ओर आकर्षित नहीं हो पाए हैं। विद्यार्थी वर्ग भी इन मेलों में कम ही पहुँच पाता है। इन मेलों में विद्यालयों को सम्मिलित किया जाना आवश्यक हैं विद्यार्थीयों के लिए ज्ञानवर्धक एवं मनोरंजक पुस्तकें यहाँ प्रदर्शित की जानी चाहिए। पुस्तक मेलों में रखी जाने वाली पुस्तकों की कीमत सामान्य पाठक की क्रय-शक्ति के बाहर होती है, अतः कीमत कम करने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। हमारा पहला लक्ष्य तो यह होना चाहिए कि लोगों में पुस्तकें खरीदकर पढ़ने की प्रवृत्ति का विकास हो। एक बार जब यह प्रवृत्ति विकसित हो जाएगी, तब पुस्तकों की बिक्री स्वयं ही बढ़ जाएगी।

                पुस्तक मेले में विद्यार्थियों को लाने-ले जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। इससे उनका मेले में आना सुनिश्चित हो जाएगा। मेले के प्रति उत्साह उत्पन्न करना आवश्यक है। पुस्तक मेले में लेखकों को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाना चाहिए और इसका प्रचार भी होना चाहिए। पाठक अपने प्रिय लेखक से मिलने को उत्सुक रहते हैं। इससे मेले के प्रति लोगों का रूझान बढे़गा। लोगोें का इन मेलों में आना और अधिक से अधिक पुस्तकें खरीदना मेले को सार्थक बनाता है।

                पुस्तक मेले का अधिक से अधिक प्रचार किया जाना चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि मेले के लगने की सूचना तक लोगांे को नहीं होती। मेले को कुछ विशिष्ट व्यक्तियों तक सीमित कर दिया जाता है। इससे मेले का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है। पुस्तक मेले को सार्थक बनाने के भरपूर प्रयास किये जाने चाहिए।

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