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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Jo Toko Kanta Buve, Tahi Bove Tu Phool” , “जो तोको काँटा बुवै, ताहि बोव तू फूल” Complete Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.

जो तोको काँटा बुवै, ताहि बोव तू फूल

Jo Toko Kanta Buve, Tahi Bove Tu Phool

प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसका जीवन फल-सा सुंदर हो, उसमें आनंद की महक हो। वह नहीं चाहता कि जीवन इतना कष्टों और दुखों से भर जाए कि काँटों की सेज प्रतीत होने लगे। ऐसा जीवन तभी संभव है, जब हम अपने हृदय से घृणा, द्वेष, ईर्ष्या जैसे अवगुण त्यागकर: क्षमा सहनशीलता और परोपकार जैसे गुण अपनाएँ। यही धर्म है। तुलसीदास जी ने इस एक पंक्ति में जीवन का परम सत्य उजागर कर दिया है-

परहित सरिस धरम नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।

दूसरों में फूल खिलाने का प्रयत्न करेंगे तो न केवल उस व्यक्ति का जीवन आनंद से भर उठेगा, अपितु स्वयं भी प्रसन्नता का अनुभव करेंगे। दूसरों को कष्ट देकर, उनका दिल दुखाकर व्यक्ति स्वयं अपनी ही हानि करता है। यह प्रकृति का नियम है कि जैसा बीज होता है, वैसा ही फल प्राप्त होता है। करेला बोकर आम पाने की आशा करना मूर्खता है। इसी प्रकार दूसरों को पीड़ा पहुँचाकर अपना जीवन सुखी बनाने की आशा दुराशा मात्र है। यदि कोई दूसरा हमारी हानि करता है, हमारे रास्ते में को बोता है और उसे क्षमा करके यदि हम उसका भला करते हैं तो उसे अपनी भूल का अहसास होता है। उसका हृदय हमारे प्रति सद्भावना और आदर से भर उठता है। कहा भी गया है

अंत भले का भलायाकर भला तो हो भला

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