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Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Henry Moore” , ”हेनरी मूर” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

हेनरी मूर

Henry Moore

 

यूरोपः बीसवीं सदी का शीर्षस्थ मूर्तिकार

जन्म : 1898 मृत्यु : 1986

 

बीसवीं सदी के महान मूर्तिकार हेनरी मूर का जन्म सन् 1898 में एक खान मजदुर के यहां हुआ था। वह अपने पिता की सातवीं संतान थे, किंतु मेधावी छात्र होने के कारण उन्होने सफलतापर्वक अपनी प्राथमिक शिक्षा पूर्ण कर ली। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद वह सन् 1919-21 तक लीड्स स्कूल ऑफ आर्ट्स के छात्र रहे। फिर उन्हें लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ आर्ट में प्रवेश मिल गया। यहां उन्हें काफी कुछ सीखने को मिला। सन् 1925 को हेनरी मूर पेरिस गए। यहां के विमे संग्रहालय में उन्हें भारतीय शिल्प कला ने काफी प्रभावित किया। फिर भी उनकी कला पर कहीं भी भारतीय प्रभाव नहीं था। यहां तक कि उनकी कृतियां यूरोप की पारंपरिक शैली से भी हटकर हैं। उनका देहांत सन् 1986 में अट्ठासी वर्ष की आयु में हुआ।

एक निर्धन परिवार में जन्मे हेनरी मूर कहते थे कि, ‘पत्थर, पत्थर लगना चाहिए। इसलिए वह बड़ी कुशलता के साथ पत्थर को तराशकर उसमें अपनी कल्पना को इस ढंग से साकार करते थे कि पत्थर के मूलरूप पर कोई आंच नहीं आ पाती थी। उनकी शिल्प कला की सबसे बड़ी विशेषता उसका स्मारकीय तत्त्व है, जबकि उनका प्रमुख विषय मनुष्य ही रहा है, जिसे उन्होंने बड़े स्वाभाविक तरीकों से प्रस्तुत किया है। वैसे उन्होंने प्रस्तर खंडों के अतिरिक्त लकड़ी और कांसे की भी कई मूर्तियां बनाई । ‘मदर एंड चाइल्ड’, ‘श्वान’, ‘थ्री पोएट्स’, ‘स्पिंडल पीस’, ‘नार्थ विंड’, ‘मेडोना एण्ड चाइल्ड’ आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं। इंग्लैंड के अलावा अमरीका, हालैंड एवं फ्रांस में भी उनकी कलाकृतियां देखी जा सकती हैं। भारत की राजधानी नई दिल्ली में भी सन् 1987 के नवंबर माह में उनकी कृतियां प्रदर्शित की जा चुकी हैं। सन् 1963 में ‘आर्डर ऑफ मेरिट’ से विभूषित हेनरी की एक मूर्ति अमरीका में सत्तर लाख पौंड में बिकी थी।

द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व हेनरी मूर अन्य आधुनिक शिल्पियों की तरह प्रबुद्ध वर्ग की जिज्ञासा और चर्चा का विषय थे, किंतु युद्ध के बाद उन्होंने जिस सहजता के साथ मानव जीवन और समाज की घटनाओं को रेखांकित किया, उससे वह विश्व के सबसे सम्माननीय एवं लोकप्रिय कलाकार बन गए। आज हेनरी मुर नहीं हैं, किंत चिरकाल तक उनका नाम विश्व के अग्रणी मूर्तिकारों में लिया जाता रहेगा।

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