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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Ek Kamkaji Aurat”, “एक कामकाजी औरत” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.

एक कामकाजी औरत

Ek Kamkaji Aurat

                आज की औरत का कामकाजी होना जहाँ उसकी विवशता बनता जा रहा है, वहीं यह उसकी आर्थिक स्वतंत्रता के लिए आवश्यक भी है। कामकाजी औरत की दिनचर्या काफी व्यस्त रहती है। वह प्रातःकाल से लेकर रात्रि तक किसी-न-किसी काम में लगी रहती है। प्रातःकाल तो दफ्तर जाने की तैयारी में बीत जाता है और सारा दिन दफ्तर के काम के बोझ तले निकल जाता हैं पता ही नहीं चलता कि कब शाम हो गई। जब दफ्तर का समय समाप्त होता है, तभी पता चलता है कि शाम हो गई और घर लौटने का समय हो गया है। शाम होते-होते कामकाजी औरत बुरी तरह थक चुकी होती है। वह जैसे-तैसे घर लौटती है।

                घर पर बच्चे उसकी प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। जैसे ही वे माँ को आया देखते हैं, वे उससे लिपट जाते हैं। बच्चांे के बीच कामकाजी औरत की थकान मिट जाती है। यह उन्हें प्यार करती है, खाने-पीने की चीजें देती है। इसके बाद वह कुछ समय तक विश्राम करती है। तभी पति महोदय का आगमन हो जाता है। अब वह उसके स्वागत में जुट जाती है। उसका मुस्कराकर स्वागत करती है, उसे चाय-काॅफी पिलाती है तथा उसके साथ बैठकर प्रेम-प्यार की बातें करती है। आधा घंटे का यह समय घर के वातावरण को हल्का-फुल्का बना देता है और कामकाजी औरत अपना कामकाजी होने का चोला उतारकर पूरी तरह से घरेलू औरत बन जाती है। अब उसकी शाम डिनर की तैयारी में बीतने लगती है। बीच-बीच में वह बच्चों को स्कूल से मिले होमवर्क को भी पूरा कराती जाती है। उसका ध्यान सभी ओर रहता है। कभी-कभी वह हल्का संगीत सुनकर अपना मनोरंजन भी करती है। वह दूरदर्शन पर एकाध-कार्यक्रम भी देख लेती है तथा समाचार सुनकर दिनभर की घटनाओं से अवगत होती है। फिर सभी मिलकर रात्रि का भोजन करते हैं। यहीं बैठकर घर की गतिविधियों पर चर्चा की जाती है तथा अनेक समस्याएँ हल हो जाती हैं।

                किसी कामकाजी औरत की शाम इसके विपरीत ढंग से भी बीत सकती है। यह सही है कि कामकाजी औरत दफ्तर से थककर घर लौटती है, अतः उसका रूप कुछ चिड़चिड़ा भी हो सकता है। वह घर लौटकर पति पर, नौकरों पर तथा बच्चों पर नाराज भी हो सकती है। इससे उसकी शाम बिगड़ भी सकती है।

                वैसे एक कामकाजी औरत शाम के समय अपने घर ही लौटना पसंद करती है। कामकाज करके वह थक भले ही जाती हो, पर वह घर लौटकर स्वयं को सहज महसूस करती है। उसे अपने बच्चों की चिंता होती है। वह शीघ्र ही उनके पास पहुँच जाना चाहती है। बच्चों के बीच उसकी थकान जाती रहती है। घर पहुँचकर वह दफ्तर की बोझिल जिंदगी का लबादा उतार फेंकती और बच्चों की ममतालु माँ बन जाती है। उसे अपने प्रियतम की भी प्रतीक्षा होती है। शाम का यह समय उसके लिए सकून भरा होता है। शाम का एक घंटा ही उसकी सारी थकान उतार देता है। फिर वह तरोताजा होकर अपनी संध्याकालीन दिनचर्या में जुट जाती है। इस काम में उसे आनंद एवं संतोष की अनुभूति होती है। सामान्यतः कोई भी कामकाजी औरत अपनी शाम के आनंद को बिगाड़ना नहीं चाहती। यदि उसकी शाम शांत रहे तो रात तक की सारी गतिविधियाँ सुचारू रूप से चलती रहती हैं।

                कामकाजी औरत की शाम दिनभर की गतिविधियों से अलग हटकर होती है। यह उस कामकाजी औरत पर ही निर्भर करता है कि वह अपनी शाम को किस प्रकार बिताए। इसे वह रोचक एवं मनोरंजक भी बना सकती है और न चाहने पर बोर भी। पर प्रायः कामकाजी औरत इसे खराब नहीं करना चाहती। बस ऐसी ही होती है एक कामकाजी औरत की शाम।

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commentscomments

  1. Supriya says:

    Thanks for this essay

  2. Reet says:

    This was good but not so heart touching u should add 1 or 2 lines of poem in this too

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