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Hindi Essay/Paragraph/Speech on “Eid – Bhaichare ka Tyohar ”, “ईद – भाईचारे का त्यौहार” Complete Essay, Speech for Class 10, Class 12 and Graduation and other classes.

ईद – भाईचारे का त्यौहार

Eid – Bhaichare ka Tyohar 

Essay No. 01

रमजान का महीना मुस्लिम भाइयों के लिए विशेष महत्व रखता है। माना जाता है कि यह महीना रहमतों व पाक से भरा हुआ होता है। ईद का अर्थ ही है खुशी जाहीर करना।

सबसे ज्यादा खुशी तो उनको होती है जो कठिन परीक्षा देते हुए अपने एक महीने का रोजा रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि महीने भर रोजा रखने वालों के सभी गुनाह अल्लाह माफ कर देता है। रमजान के पूरे माह के रोजे रखना हर मुसलमान का फर्ज है। बदले में खुदा भी अपने बंदों के लिए जन्नत के सारे दरवाजे खोल देता

ऐसा माना जाता है कि इस त्यौहार की शुरुआत अरब से हुई थी। पर सबसे ज्यादा उमंग व उत्साह तो भारतीय मुसलमानों में देखा जाता है। जहाँ दिन भर रोजा रखते हुए मुसलमान लोग अपना सारा वक्त खुदा की इबादत में बिताते हैं और शाम के समय नमाज अदा करके अपना रोजा खोलते हैं।

ईद का चाँद दिखते ही महीने भर के रोजे समाप्त हो जाते हैं। दूसरे दिन लोग खुदा की मेहरबानी के प्रति शुक्रिया अदा करते हैं कि खुदा ने उन्हें महीने भर के रोजे रखने की शक्ति दी। यह धन्यवाद सामूहिक रूप से नमाज अदा करके दी जाती है। साथ ही इस दिन अपनी सालाना आमदनी और जायदाद का एक हिस्सा मोहताजों और गरीबों में बाँटा जाता है। ईद की नमाज के पहले जकात और फितरा अदा करने का नियम है।

ईद के दिन सभी लोग सुबह के स्नान के बाद कुर्ता-पायजामा पहनकर ईद की नमाज में सम्मिलित होने के लिए जाने से पहले गरीबों में सदका देते हैं। ताकि वह गरीब लोग भी उनके ईद में शमिल हो सकें। ईद की नमाज के दिन ईदगाह, मस्जिद अथवा दरगाह आदि पर नमाज करने के लिए लोग एकत्र होते हैं।

इस पाक दिन पंक्ति बनाकर एक इमाम के नेतृत्व में ईद की नमाज अदा की जाती है। नमाज के बाद लोग एक दूसरे से गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देते हैं, यह सिलसिला लगभग पूरे दिन चलता रहता है।

अगर हम ईद की बात करें और हलीम (रोजा खोलने के समय खाने वाले एक पकवान का नाम) का जिक्र न करें तो यह नाइंसाफी होगी।

हलीम जिसे खाने के लिए साल भर लोग इंतजार करते हैं आजकल तो विदेशों में भी भेजा जा रहा है। इस पाक महीने में गली गली दुकानें लगती हैं और शाम को नमाज के समय के बाद से मेले के रूप में बदल जाता है। इस पाक त्यौहार में एकता व अपने पन को बनाए रखने के लिए कई लोग सामूहिक रूप से दावत भी देते हैं। जिसमें अपने भाइयों, इष्ट मित्रों को नमाज के बाद बुलाकर फल और हलीम की दावत देते हैं।

इस पाक त्यौहार के बाद निश्चित समय पर ईद-उल-जुहा या बकरीद त्यौहार मनाया जाता है इस पाक दिन बकरे को काट कर उसके माँस को अपने ईष्ट मित्रों में । बाँटा जाता है।

बकरीद का अपना महत्व है। इस दिन को कुर्बानी का दिन भी कहते हैं।

इस ईद के महीने में चाहे वह गरीब हो या अमीर सभी वर्ग के लोग नए नए कपड़े सिलवाते हैं जिसे पहनकर वे खुशी-खुशी मेलों में जाते हैं और मौज मस्ती करते हैं।

ईद के महीने में सभी मिठाइयों व खिलौनों की दुकानों में अच्छी खासी भीड़ देखी जाती है।

ईद के महीने में तो शुरुआत से ही कपड़ों के व्यापारी रात भर अपनी दुकाने खोल कर अपने कपड़े बेचते हैं।

ईद मन को पवित्र और आत्मा की शुद्धता का संदेश अपने साथ लाता है। सिवइयाँ (मीठी खीर फल-मेवे सहित) तो इस पर्व की पहचान है।।

ईद की नमाज के बाद कई लोग कब्रिस्तान जाते हैं जहाँ अपने दिवंगत बंधुओं को याद करते हैं। ।

ईद के मौके पर सामूहिक खुशियां, पारंपरिक प्रेम, भाई-चारे की भावना अलग से दिखाई पड़ती है।

 

ईद – भाईचारे का त्यौहार

Eid – Bhaichare ka Tyohar 

Essay No. 02

हिंदुओं के लिए जैसे होली, वैसे मुसलमानों के लिए ‘ईद’ है। दोनों आनंद के त्योहार हैं। मुसलमानों में चंद्रमास होता है। वे अपना महीना आकाश में चंद्रमा की स्थिति से जोड़ते हैं। चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह है और उसे उसका चक्कर लगाने में उसे पूरा एक वर्ष लगता है। उसे बाँटकर बारह महीने बनाए गए हैं। इन महीनों में एक महीना रमज़ान का होता है। यह बहुत पवित्र महीना माना जाता है। इस महीने में मुसलमान रोज़ा (उपवास) रखते हैं। रोज़े रखने वाले सभी मुसलमान व्यक्ति सूर्योदय से पहले खा-पी लेते हैं, फिर सारा दिन पानी भी नहीं पीते। शाम को नमाज़ पढ़ने के बाद वे रोज़ा खोलते हैं। रमजान के महीने में नियमपूर्वक नमाज पढ़ना, रोज़ा रखना, खैरात (दान) देना तथा नेक कार्यों में समय लगाना आवश्यक होता है।

तीस दिन विधिपूर्वक रोज़ा रखने के बाद अगले महीने की पहली तारीख को ईद का त्योहार मनाया जाता है। उसी दिन पहला ‘चाँद’ आकाश में दिखाई पड़ता है। इसे देखने की उत्सुकता बूढ़े, बच्चे सबमें होती है। ईद को ‘ईद-उल-फितर’ भी कहते हैं। रमजान  के महीने से ही ईद की तैयारियां शुरू हो जाती हैं-नए कपड़े सिलने लगते हैं। सेवइयाँ बनाई जाने लगती हैं।

ईद के दिन हर घर पर सुबह से ही चहल-पहल रहती है। स्नानादि करके बच्चे, बूढे, नौजवान ईदगाह के बड़े मैदान में जुटते हैं। कतारों में खड़े हो जाते है। यहाँ कोई मालिक या नौकर अथवा छोटा या बड़ा नहीं होता। खुदा के दरबार में सभी बराबर होते हैं। एक साथ झुकना, घुटने के बल बैठना, सिर नवाना बड़ा ही खूबसूरत अनुशासनात्मक दृश्य उपस्थित करता है।

गरीबों को उस दिन सभी अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान देते हैं। उनमें सेवइयाँ और कपड़े बाँटे जाते हैं।

पूरे एक महीने तक कष्ट झेलते हुए ईद के चाँद का बेसब्री से इंतज़ार किया जाता है। इसीलिए बहुत समय के बाद मिलने वाले को कहा जाता है ‘तुम तो ईद के चाँद हो गए हो’। चाँद का दर्शन करते ही लोग एक-दूसरे को मुबारकबाद देते हैं। बड़े-बूढ़े सभी एक-दूसरे के गले मिलते हैं। घर आने वाले लोगों का स्वागत तरह-तरह के पकवानों से जिसमें सेवइयाँ ज़रूर होती हैं, किया जाता है। जगह-जगह कव्वालियों और गजलों का जलसा देर तक चलता रहता है।

बड़े इंतजार के बाद हर साल ईद आती है और खुशियाँ लुटा जाती है। उसके पहले एक महीने तक का नियमित उपवास शरीर की भी शुद्धि करता है। ईद हमें समानता,भाईचारे और खुशी का संदेश देती है। यह पर्व हमें अनुशासित और नियमित जीवन बिताने का पाठ पढ़ाता है।

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