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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Doordarhsan ke Karyakramo ka Prabhav”, “दूरदर्शन के कार्यकर्मों का प्रभाव” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.

दूरदर्शन के कार्यकर्मों का प्रभाव

Doordarhsan ke Karyakramo ka Prabhav

                दूरदर्शन के कार्यक्रम का प्रसारण केबल के माध्यम से हो रहा है। केबल संस्कृति के प्रभाव के फलस्वरूप महानगरों में सुंदर दिखने की होड़ में युवा ही नहीं बल्कि अधेड़ स्त्रियाँ भी युवितियों के समान ‘प्रदर्शन की वस्तु’ बनने में विश्वास करने लगी हैं। महानगरांे के पंचतारा होटलों में आए दिन डांस पार्टियाँ आयोजित होती हैं जिनमें धनी तथा उच्च मध्यम वर्ग के स्त्री-पुरूष मदीरापान कर नृत्य के नाम पर भौंडा प्रदर्शन करते हैं। आजकल कोई भी पार्टी शराब (काॅकटेल) के बिना सफल नहीं मानी जाती । इसका कारण एक सीमा तक केबल संस्कृति ही है।

                आजकल बड़े नगरों में अधिकांश युवतियाँ ब्वाॅयफ्रैंडस् तथा नवयुवक गर्लफ्रैंडस के साथ मटरगश्ती करते दिखाई पड़ते हैं। वे ‘फ्रैंडस’ चरित्र के विनाश के लिए मुख्यतः उत्तरादयी होते हैं। अधिकांश किशोरियाँ घंटों तक दूरभाष पर अपने तथाकथित मित्रों से बातें करती रहती हैं। तथ अर्द्धरात्री तक आवारगर्दी करती रहती हैं। समाज का अधिकांश हिस्सा ‘ईट, ड्रिंक एंड बी मैरी’ ष्म्ंजए कतपदा ंदक इम उमततलष् के सिद्धांत में विश्वास करने लगा है।

                समाज मंे व्यक्ति आत्मकेन्द्रित होता जा रहा है। लोग टेलीविजन पर विभिन्न कार्यक्रम देखने में इतने व्यस्त रहते हैं कि उनकी दुनिया केवल टेलीविजन तक सीमित हो गई है। बच्चे तथा किशोर भी टेलीविजन के कार्यक्रम घंटों तक देखते रहते हैं जिससे उनके शिक्षा और स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। बच्चों तथा किशोरों में भी स्वच्छंदता की प्रवृति बड़ती जा रही है। विद्यार्थियों को अपने पाठ्यक्रम की अपेक्षा टेलीविजन- प्रदर्शित कार्यक्रम अधिक याद रहते हैं।

                ‘कौन बनेगा करोड़पति’ कार्यक्रम ने लोगों के बीच में जबर्दस्त प्रभाव डाला था। टी.वी. चैनल ‘स्टार प्लस’ पर प्रदर्शित इस कार्यक्रम के प्रदर्शन के दौरान अन्य सभी गतिविधियाँ ठप्प हो जाती थीं। स्कूल, काॅलेजों, दफ्तरों व बाज़ार में अक्सर इसी कार्यक्रम की चर्चा होती थी। आजकल इसी चैनल पर मनोरंजक धारावाहिक ‘‘क्यांेकि सास भी कभी बहु थी’’ व ‘‘कहानी घर-घर की’’ इस समय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हंै। ऐसे कार्यक्रम लोगों के सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव डालने में समर्थ हैं। इस समय बहुत अधिक केबल चैनल प्रसारित हो रहे हैं। स्टार समूह के स्टार प्लस, स्टार स्पोट्र्स, स्टार मूवीज़, ई.एस.पी.एन., जी समूह, जी.टी.वी., जी सिनेमा, जी न्यूज व सोनी समूह के सैट मैक्स, सोनी टी.वी., सी.एन.बी. सब चैनल, डिस्कवरी चैनल, आस्था चैनल लोगों के बीच में लोकप्रिय हैं।

                केबल संस्कृति के कारण विवाहेत्तर संबंधांे में भी बहुत परिवर्तन दिखाई देता है। अधिकांश सीरियलों में विवाहेत्तर संबंधों को दिखाया जाता है। केबल संस्कृति ने समाज में विवाहित स्त्री-पुरूषों का अन्य लोगों से शारीरिक संबंध होना वैवाहिक जीवन के लिए खतरे की घंटी नहीं माना जाता। इसके अतिरिक्त समाज में प्रेम के नाम पर वासना-तृप्ति का प्रयास भी खुलेआम दिखाई देता है। काॅलेजों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएँ पढ़ने की बजाय घूमने फिरने मंे अधिक दिलचस्पी लेते हैं। इस प्रकार खुलेपन के नाम पर चरित्र को खोटा सिक्का समझा जाने लगा है।

                केबल संस्कृति के प्रभावस्परूप जल्दी-से-जल्दी धन-कुबेर बनने की भावना भी समाज में बलवती हुई है। अधिकांश युवक किसी प्रकार भी रातों-रात करोड़पति बन जाना चाहते हैं। इसके लिए वे अपराध की काँटों भरी राह पर भी चलने के लिए तैयार रहते हैं। समाज में अपराधों का ग्राफ निरंतर बढ़ाने में केबल संस्कृति का बहुत योगदान है। केबल संस्कृति के दोषों के बावजूद इससे कुछ फायदे भी हुए हैं। अब हम घर बैठे ही नई व पुरानी फिल्मों का आनन्द ले सकते हैं। केबल घर पर बैठे ही फिल्म देखरक हम सिनेमाहाॅल को जाने से बच जाते हैं। केबल टी.वी. पर अनेक समाचार चैनल इस समय लोकप्रिय हो रहे हैं। जैसे ‘आज तक’, ‘स्टार न्यूज’, ‘जी न्यूज’ व ‘सहारा समय’। इन सबसे उत्तम दर्जे के समाचार हमें प्राप्त होते हैं। विभिन्न राजनेताओं के समय-समय पर साक्षात्कार, चुनाव-प्रसारण आदि देखने को मिलते हैं। विभिन्न खेल चैनलांे से हम घर बैठे ही विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं का आनंद ले सकते हैं। कुछ अच्छे मनोरंजक व ज्ञानवर्धक कार्यक्रम भी हमें इन चैनलों पर देखने को मिल जाते हैं।

                इस प्रकार दूरदर्शन कार्यक्रमों के नुकसान और लाभ दोनों ही हैं। यह हमारे ऊपर है कि हम इसे किस प्रकार लेते हैं। अगर हम इसे शिक्षाप्रद व ज्ञानवर्धक के रूप में अंगीकार करते हैं तो ठीक है, अन्यथा मात्र देह-दर्शन व निम्न स्तर के फूहड़ कार्यक्रमों से हमारा नैतिक पतन ही होगा जो हमारे लिए बहुत नुकसानदायक है।

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