Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Chatra Asantosh-Karan aur Samadhan”, “छात्र असंतोष- कारण और समाधान” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.
छात्र असंतोष- कारण और समाधान
Chatra Asantosh-Karan aur Samadhan
शिक्षा प्राप्ति के उद्देयस से विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने वालों को छात्र या छात्रा की संज्ञा दी जाती है। ये शिक्षालयों में विद्यार्जन के साथ-साथ जीविकोपार्जन में सहायक ज्ञान भी प्राप्त करना चाहते हैं। विद्या और जीविका को पाने के उद्देश्य से उत्साहपूर्वक आने वाले इन छात्रों को गम्भीर होकर पढ़ाई-लिखाई में लग जाना चाहिए किंतु बहुत बार ऐसा नहीं हो पाता। कुछ दिनों बाद वे उत्साहहीन और निरूद्देश्य होकर भटकते दिखाई देने लगते हैं। छात्र के रूप में प्रवेश लेते समय उनकी आँखों में जो चमक होती है वह पढ़ाई के दौरान बुझ जाती हैं। कुछ छात्र अवश्य सोत्साह दिखाई पड़ते हैं वे विद्यालय में मौज-मस्ती के लिए आने वाले युवक-युवती होते हैं, जो शिक्षा पाने नहीं, घर से बाहर की आजाद हवा खाने आते हैं। इन्हीं में कुछ युवक-युवती ऐसे भी होते हैं जो तोड़-फोड़ की राजनीति से जुड़ जाते हैं, उसी में रूचि लेने लगते हैं। जब-तब तोड़-फोड़, हड़ताल, मार-पीट करते और उद्दण्डता दिखाते छात्रों को देखकर कोई जिम्मेदार विचारशील व्यक्ति यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि इस अनुशासनहीनता का कारण क्या है? इनके भीतर किस असंतोष का लावा धधक रहा है, जो समाज में उथल-पुथल उत्पन्न कर देता है।
सबसे पहले इन छात्रों की पारिवारिक परिस्थितियों पर एक खोजी दृष्टि डालनी चाहिए। समाज के आर्थिक समुदायों से आये इन छात्रों में कुछ तो संपन्न घराने के होते हैं जिनके सामने जीविकोपार्जन की कोई समस्या नहीं होती। वे प्रायः मौज मस्ती के लिए या समय बिताने के लिए विद्यालय में आते हैं। छात्रों का यह वर्ग आथ्रिक दृष्टि से पिछड़े छात्रों में अनेक कुंठाएँ और असंतोष उत्पन्न करता है। कुछ मध्य वर्ग से आते हैं, जिनकी महत्त्वाकांक्षाएँ बहुत होती हैं। महंगी शिक्षा वे ले नहीं सकते, लेते भी है तो बड़े तनाव-पूर्ण वातावरण मंे, परिवार में उनकी शिक्षा पर होने वोले खर्च के कारण बड़ी आर्थिक कसमसाहट होती रहती है जिसका प्रभाव सीधे उनके मन पर पड़ता है। विपरीत आर्थिक परिस्थिति और महत्त्वाकांक्षाओं के द्वंद्व में फँसकर छात्रों का यह वर्ग दिशाहीन सा हो जाता है और भावनाओं में बहकर भटक जाता है। समाज के निम्न वर्ग से आए छात्र-समुदाय के सामने सरकारी विद्यालय अनुदान और छात्र-वृत्ति का एकमात्र मार्ग रह जाता है। उनके सामने कपड़ों, किताबों, पढ़ाई की सुविधाओं की समस्या रहती है। घर और विद्यालय दोनों जगह पर उन्हें असंतोष की छाया में रहना पड़ता है। घर का आर्थिक संघर्ष और विद्यालय में उपेक्षा तथा अभाव का निरंतर सामना करते रहने से उनके मन में क्रोध की गाँठें पनपने लगती हैं।
शिक्षा का संबंध जीविका से बहुत अधिक जुड़ा है। अधिकतर छात्र जीविका पाने के उद्देश्य से शिक्षा प्राप्त करते हैं, इसलिए जब उन्हें अनुकूल शिक्षा नहीं मिल पाती या उचित शिक्षा नहीं मिल पाती तो उनमें आक्रोश पनपने लगता है जिसे वह जिस-तिस रूप में व्यक्त करने लगते हैं। प्राचीन काल में शिक्षा व्यवसाय से जुड़ी हुई थी। अपने-अपने रूचि के अनुसार सभी को शिक्षा दी जाती थी, पर आज अधिकांश विद्यार्थी बिना सोचे-समझे शिक्षा लेकर महाविद्यालय से बाहर आकर बेरोजगारों की पंक्ति में आ खड़े होते हैं। उनको देखकर छात्रों को अपने अनिश्चित भविष्य का भय घेरने लगता है।
छात्र-असंतोष को बढ़ाने वाले दो प्रमुख तत्व और हैं। एक है, प्रतिभाशाली छात्रों की शिक्षा में आर्थिक कारणों से व्यवधान उत्पन्न होना और दूसरा है- आरक्षण की व्यवस्था। बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद महत्त्वाकांक्षा से प्रेरित होकर छात्र डाॅक्टरी, इंजीनियरी या अन्य ऐसी कोई पढ़ाई करना चाहते हैं, पर अच्छे अंक लेने पर भी उनका प्रवेश नहीं होता, इससे असंतोष आरम्भ होता है। यह असंतोष तब और भड़क उठता है जब उनसे अयोग्य छात्र आरक्षण की सहायता से प्रत्येक पाठ्यक्रम में सफलतापूर्वक प्रवेश पा लेते हैं। यदि वे निजी (प्राइवेट) संस्थाओं में प्रवेश लेने जाते हैं, तो ‘कैपीटेशन फीस’ का राक्षस उन्हें निगलने के लिए खड़ा मिलता है। अपने कैरियर के प्रति जागरूक छात्र इन स्थितियों में घुटकर रह जाता है।
इस समस्या को सुलझाने के लिए सरकार की ओर से गंभीर प्रयत्न किए जाने की आवश्यकता हैं उसका पहला काम यह होगा कि वह शिक्षा के क्षेत्र में व्यावसायियों को हटा दे। शिक्षा के क्षेत्र में पब्लिक और सरकारी विद्यालयों का भेदभाव मिटाना आवश्यक है। समाजवादी व्यवस्था में ऐसी भेदभाव वाली बातें सहन नहीं की जा सकतीं। देश के छात्रांे को ऐसे खेमों में बाँटना उचित नहीं है। दूसरा काम ‘कैपीटेशन फीस’ जैसे भद्र नाम के पीछे निहित रिश्वतखोरी को समाप्त करने का है। तीसरा काम, शिक्षा और रोजगार के मामले में आयोग्य व्यक्तियों को आरक्षण के कवच द्वारा आगे बढ़ने से रोकना होगा। आरक्षण केवल योग्य व्यक्तियों के लिए होना चाहिए। चैथा काम, चुनावों में छात्र शक्ति का दुरूपयोग रोकना है। पाँचवाँ काम, व्यवसाय आधारित सस्ती शिक्षा सुविधाएँ प्रदान करना हैं।