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Hindi Essay, Paragraph, Speech on “Aadarsh Vidyarthi”, “आदर्श विद्यार्थी” Complete Hindi Essay for Class 10, Class 12 and Graduation Classes.

आदर्श विद्यार्थी

Aadarsh Vidyarthi

                विद्या प्राप्त करने वाला विद्यार्थी कहलाता है। आदर्श विद्यार्थी वह है जो स्वभाव से ही विद्यानुरागी और विद्या व्यसनी हो। पढ़ना उसका शौक हो और ज्ञानार्जन उसका लक्ष्य।

                इस शब्द से मन की आँखों के सामने एक ऐसे व्यक्ति का चित्र उभरता है जो विनम्र, सुशील, परिश्रमी, सत्यवादी और आज्ञाकारी हो। जो समय पर विद्यालय जाता हो, वहाँ मन लगाकर पढ़ता हो, पाठशाला से घर आकर अपने पाठों की आवृत्ति करता हो तथा शेष समय में दत्तचित्त होकर अध्ययन मनन करता हो। ऐसा बालक ही लोगों की दृष्टि में आदर्श विद्यार्थी होता है। आदर्श विद्यार्थी बनने के लिए उसे कठोर साधना करनी पड़ती हैं संस्कृति में कहा गया है-

‘‘काक चेष्टा बकोध्यानम् श्वाननिद्रा, संयमी, श्रमी,

अल्पाहारी, गृह-त्यागी, विद्यार्थिनः सप्तलक्षणम्’’

                विद्यार्थी जीवन में संयम का बहुत महत्त्व है। उसे ‘सादा जीवन और उच्च विचार’ के सिद्धाँत का पालन करना चाहिए। सदाचार और स्वावलंबन आदर्श विद्यार्थी के गुण हैं।

                केवल पाठ्य-पुस्तकों पर आश्रित रहने से ही ज्ञान का सर्वान्मुखी विकास नहीं होता। आदर्श विद्यार्थी पाठ्यक्रम से बाहर की पुस्तकंे और पत्र-पत्रिकाएँ भी पढ़ता है। इससे उसका सामान्य ज्ञान तो बढ़ता ही है, साथ ही वह विषय के विस्तार और गंभीरता से भी परिचित होता है। इस सबसे उसमें आत्मविश्वास आता है और वह कुपमंडूकता के दोष से बच जाता है।

                आदर्श विद्यार्थी का स्वस्थ होना आवश्यक है।  स्वस्थ मन और मस्तिष्क के बिना मनोयोगपूर्वक अध्ययन करना संभव नहीं है। इसलिए शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है। कहा भी गया है-श्। ेवनदक उपदक पद ं ेवनदक इवकलश् कालिदास ने भी कहा है- ‘शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्’। स्वस्थ्य शरीर से ही कार्य सम्पन्न होते हैं।

                आदर्श विद्यार्थी समाज के प्रति अपने कत्र्तव्य को भली प्रकार समझता है वह लड़ाई-झगड़ों से दूर रहता है और अनुशासन का पूरा-पूरा पालन करता है। वह समाज के किसी भी प्राणी के साथ अभद्र व्यवहार नहीं करता। समाज के उपेक्षित वर्ग की सहायता करना अपना कत्र्तव्य मानता है। वह समाज-सेवा के कार्यांे में रूचि लेता है। इस प्रकार के कार्यों से उसका सामाजिक दायरा बढ़ता है तथा उसे जीवन को भीतर से देखने का अवसर मिलता है।

                कहा गया है- ‘‘विद्या ददाति विनयम्।’’ विद्या निम्रता सिखाती है। कटुभाषी, उच्छृंखल, उद्दण्ड, स्वेच्छाचारी युवक कभी आदर्श विद्यार्थी नहीं हो सकते। आदर्श विद्यार्थी झूठ नहीं बोलता, क्रोध नहीं करता, ईष्र्या-द्वेष से दूर रहता है।

                आदर्श विद्यार्थी समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह भली प्रकार करता है। वह समाज-सेवा के कार्याें में बढ़-चढ़कर भाग लेता है। समाज के लिए चलाए जाने वाले विविध कार्यक्रमों यथा वृक्षारोपण, प्रदूषण मुक्ति अभियान, पल्स पोलियो अभियान,  साक्षरता कार्यक्रम आदि में बढ़-चढ़कर भाग लेता है। इस प्रकार वह अपने सामाजिक दायित्व का निर्वाह करता है।

                आदर्श विद्यार्थी से अपे्रक्षा की जाती है कि वह अपने निर्धन एवं असहाय साथियों की भरपूर सहायता करेगा। वह कुछ कष्ट झेलकर भी उनकी मदद करता है। हमारा समाज गरीबी और बेकारी की मार झेल रहा है। इसमें कितने ही बालक इसलिए नहीं पढ़ पाते क्योंकि उनके माता-पिता उनका व्यय-भार नहीं झेल पाते। इस उपेक्षित वर्ग के प्रति भी हमारा कुछ कर्तव्य बन जाता है।

                आदर्श विद्यार्थी देश के प्रति अपने कर्तव्य पालन में सदैव सचेष्ट रहता है। देश का हित उसके लिए सर्वोपरि होता है। देश की एकता एवं अखंडता की रक्षा के लिए वह अपना सर्वस्व बलिदान करने को तत्पर रहता है।

                उपर्युक्त गुणों से संपन्न विद्यार्थी ही आदर्श विद्यार्थी कहलाने का अधिकारी बनता है। एक आदर्श विद्यार्थी एक अच्छा नागरिक भी होता है। आदर्श विद्यार्थी का जीवन सभी के लिए अनुकरणीय होता है।  

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